सुप्रीम कोर्ट ने आज रियासत गुजरात में 2002 फ़सादाद के दौरान तबाह मज़हबी मुक़ामात ( जगहो/ स्थानों) की सर्वे रिपोर्ट पेश करने की हुकूमत गुजरात को हिदायत दी। जस्टिस के एस राधा कृष्णन और जस्टिस दीपक मिश्रा पर मुश्तमिल ( सम्मिलित) बंच ने फ़सादाद में मुतास्सिरा (प्रभावित) इन मज़हबी इमारतों की तामीर और मरम्मत के लिए दरकार ( वांछित) रक़म की भी सर अहित करने का हुक्म दिया है ।
अदालत ने हुकूमत गुजरात की दायर कर्दा अपील पर ये हिदायत जारी की जिस में गुजरात हाइकोर्ट के हुक्म को चैलेंज किया गया था । गुजरात हाइकोर्ट ने रियास्ती हुकूमत को मज़हबी मुक़ामात की तबाही और नुक़्सानात का मुआवज़ा अदा करने की हिदायत दी थी ।
मुक़द्दमा की समाअत ( सुनवायी) शुरू होते ही हुकूमत गुजरात ने कहा कि रियास्ती सरकारी ख़ज़ाना को मज़हबी मुक़ामात की तामीर और मरम्मत के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता ।
बंच ने कहा कि वो इस बात का जायज़ा लेगी कि तबाह मुक़ामात की बहाली के लिए अवामी फंड्स इस्तेमाल किए जा सकते हैं या नहीं । बंच ने कहा कि सैलाब में जब कोई मकान बह जाय या ज़लज़ला की वजह से तबाह हो जाए तो आप मुआवज़ा अदा करते हैं फिर मज़हबी मुक़ाम के मुआमला में ऐसा क्यों नहीं किया जाता ? अदालत ने रियास्ती हुकूमत को फ़सादाद में मुतास्सिरा मज़हबी मुक़ामात की तफ़सीली रिपोर्ट हलफनामा के साथ पेश करने की हिदायत दी और मुआमला की समाअत 30 जुलाई को मुक़र्रर ( तय) की है ।
गुजरात हाइकोर्ट ने 8 फ़रवरी को रियास्ती हुकूमत की माबाद 2002 गोधरा फ़सादाद बे अमली व लापरवाही पर शदीद हदफ़ तन्क़ीद ( शख्त निशाना) बनाया था । इन फ़सादाद में बड़े पैमाने पर मज़हबी मुक़ामात को तबाह-ओ-ताराज किया गया था ।
हाइकोर्ट डीवीजन बंच ने इस्लामिक रीलीफ़ कमेटी आफ़ गुजरात एन जी ओ की दरख़ास्त पर रियास्ती हुकूमत को 500से ज़ाइद (ज्यादा) मज़हबी मुक़ामात को मुआवज़ा अदा करने का हुक्म दिया था । इस हुक्मनामा को चैलेंज करते हुए हुकूमत गुजरात के वकील तुषार महित ने ये दलील पेश की कि 1984 मुख़ालिफ़ सिख फ़सादाद के दौरान जिन मज़हबी मुक़ामात को नुक़्सान पहुंचा सिख मज़हबी ग्रुप्स इसके लिए भी मुआवज़ा तलब कर रहे हैं ।