गुजरात फ़साद की दसवीं बरसी मुतासरीन इंसाफ़ के तलबगार

मुल़्क की तारीख के बदतरीन फ़िर्कावाराना फ़सादाद के सैंकड़ों मुतासरीन अपने इज़हार ग़म में मुत्तहिद होकर आज यहां जमा हुए जब गुजरात के मुस्लिम कश फ़सादाद की दसवीं बरसी का एहतिमाम किया गया । इस मौक़ा पर इन्साफ़ रसानी के लिए दुबारा अपीलें की गई थीं।

रियासती दार-उल-हकूमत के इलावा गोधरा टाउन में सिक्योरीटी इंतिहाई सख़्त कर दी गई थी की उनका यहां मुतासरीन जमा हो रहे थे और अपने रंज-ओ-ग़म का इज़हार कर रहे थे । स्टेट रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स की यूनिटों को किसी भी हंगामी सूरत-ए-हाल से निमटने के लिए तैयार रहने का हुक्म दिया गया था ।

पुलिस ज़राए ने ये बात बताई । गुजरात में 28 फरवरी 2002 को एक ट्रेन वाक़्या को बुनियाद बनाकर बपा किए गए मुस्लिम कश फ़सादाद के नतीजा में सरकारी अंदाज़ों के मुताबिक़ 1,200 अफ़राद को हलाक कर दिया गया था जिनमें अक्सरियत मुस्लमानों की है ।

इसके इलावा बेतहाशा लूट मार और आगज़नी भी की गई थी । विश्वा हिन्दू परिषद ने आज अहमदाबाद और गोधरा में ट्रेन वाक़्या के महलोकेन की याद में दुआइया इजतिमाआत का एहतिमाम किया था । मुस्लिम कश फ़सादाद के मुतासरीन के सैंकड़ों अफ़राद ख़ानदान रियासत भर के मुख़्तलिफ़ शहरों और टाउंस में जमा हुए और उन्हों ने अपने रिश्तेदारों के ख़ून पर इंसाफ़ का मुतालिबा किया ।

गुलबर्ग सोसायटी में सब से अहम दुआंए ( प्रार्थना) इजतिमा चमन पूरा इलाक़ा में मुनाक़िद हुआ । यहां साबिक़ कांग्रेस रुकन पार्लियामेंट मिस्टर एहसान जाफरी को ब्रहम हिन्दू हुजूम ने दीगर 68 अफ़राद के साथ ज़िंदा जला दिया था । फ़सादाद के मुतासरीन ने नरोडा पाटिया नरोडा गाम सरदार पूरा और ओडे के मुक़ामात पर भी इजतिमाआत मुनाक़िद किए और गुलबर्ग सोसायटी में भी जमा होकर उन्हों ने क़ुरआन ख़वानी का एहतिमाम किया ।

कुछ अफ़राद ने कुछ दाएं और ख़ाहिशात को कपड़ों के छोटे टुकड़ों पर तहरीर करते हुए एक दरख़्त पर बांधे जिसे उम्मीद का शजर का नाम दिया गया है । एहसान जाफरी की बेवा मुहतरमा ज़किया जाफरी औरा नून के फ़र्ज़ंद तनवीर भी इस मौक़ा पर मौजूद थे । ज़किया जाफरी ने इंतिहाई जज़बाती अंदाज़ में कहा कि ये उन की ज़िंदगी की सब से नाक़ाबिल फ़रामोश याद है ।

तक़रीबा 45 गैर सरकारी तनज़ीमों ने दस रोज़ा प्रोग्राम इंसाफ़ की डगर पर का एहतिमाम किया जिसके दौरान 2002 के मुस्लिम कश फ़सादाद और इस के बाद इंसाफ़ के हुसूल की जद्द-ओ-जहद को उजागर किया जाएगा। मुहतरमा ज़किया जाफरी हर साल गुजरात फ़सादाद की बरसी के दिन बिलानाग़ा गुज़श्ता दस साल से गुलबर्ग सोसाइटी का दौरा करती हैं।

इनके फ़र्ज़ंद तनवीर ने बताया कि गुलबर्ग सोसाइटी में एक यादगार तामीर करने का मंसूबा है । कई अफ़राद यहां ऐसे थे जो हालाँकि वो अल्फ़ाज़ में अपने एहसासात का इज़हार नहीं कर पा रहे थे लेकिन वो इंतिहाई जज़बाती थे । समाजी कारकुन टीसटा सीतलावाद और उनकी तंज़ीम ने दीगर 40 तनज़ीमों के साथ इस इजतिमा का एहतिमाम किया था ।

साबिक़ सुप्रीम कोर्ट जज होशेत सुरेश ने इस मौक़ा पर कहा कि मुतासरीन के लिए इंसाफ़ के बगैर कोई मुसालहत नहीं हो सकती । मिस्टर होशेत सुरेश इस अवामी ट्रब्यूनल का हिस्सा थे जिस ने 2002 के फ़सादाद की तहकीकात की थी । उन्होंने सहाफ़ीयों से बात चीत करते हुए कहा कि कुछ अफ़राद कहते हैं कि अब वक़्त मुसालहत का है ।

क्या मुसालहत का मतलब ये है कि आया ख़ातियों को छोड़ दिया जाये । जिन्होंने इजतिमाई क़त्ल किए इजतिमाई इस्मत रेज़ियां कीं और बड़े पैमाने पर तबाही मचाई वो आज़ाद हैं और उनमें किसी तरह का अफ़सोस यह तास्सुफ़ तक नहीं है । क्या ऐसी सूरत में कोई मुसालहत हो सकती है ।

साबिक़ गुजरात डी जी पी मिस्टर सिरी कुमार ने कहा कि एसा नहीं है कि गुजरात में सारी ब्यूरोक्रेसी और पुलिस नाकाम हुई है । कुछ पुलीस अहलकार और ब्यूरोक्रेटस ने हौसला दिखाया है और तशद्दुद को मुम्किना हद तक घटाने में कामयाब हुए हैं । लेकिन इन तमाम को सज़ाएं दी गयी और उनका तबादला कर दिया गया है ।