हज़रत ज़ुन्नून मिस्री रह० फ़रमाते हैं कि मैंने बस्रा के बाज़ार में लोगों का एक हुजूम देखा तो मैं भी हुजूम में शामिल हो गया। फिर आगे बढ़ कर देखा तो एक पुरोक़ार शख़्स बैठा हुआ लोगों को मुख़्तलिफ़ अमराज़ के नुस्खे़ लिख कर दे रहा है। हज़रत ज़ुन्नून मिस्री ( रह०) फ़रमाते हैं कि मैंने उस शख़्स से दरयाफ्त किया क्या तुम्हारे पास गुनाहों से बचने की दवा है?।
इस तबीब ने मुझे ब ग़ौर देखा और कहा हाँ है। मैंने कहा तो मुझे भी वो नुस्ख़ा लिखवा दो। तबीब ने कहा लो लिख लो। फिर इस ने जो नुस्ख़ा लिखवाया वो इस तरह है:
ईमान के बाग़ में जाकर नीयत-ओ-यक़ीन और तवक्कुल की चंद टहनियां ले आओ, शर्म-ओ-नदामत के बीज और ज़हद-ओ-वरा के कुछ पत्ते भी ले लो। नीज़ इख़लास का मग़्ज़, इजतिहाद का छिलका और फेक़्ह के कुछ फल लेकर अनाबत-ओ-तवाज़ो के तिरयाक में डाल दो।
फिर तौफ़ीक़ के हाथ और तसदीक़ की उंगलीयों से इन चीज़ों को तहक़ीक़ के तबक़ में डाल कर इन सब चीज़ों को आंसुओं के पानी से ख़ूब धो डालो। फिर इन चीज़ों को उम्मीद की हांडी में डाल कर शौक़ की आग से ख़ूब पकाओ, यहां तक की कि हिर्स-ओ-हआ की मैल कुचैल अलग हो जाये, जिसे दस्त हिम्मत से निकाल कर फिर रज़ा के प्याला में डाल लो और इस्तिग़फ़ार के पंखे से उसे ठंडा कर लो।
इसके बाद ये एक मज़ेदार शरबत बन जाएगा, जिसके पीने की तरकीब ये है कि एक ऐसी जगह पिया जाये, जहां ख़ुदा के सिवा-ए-कोई ना देखता हो। पस इसके पीते ही गुनाहों का मर्ज़ जाता रहेगा। (रोज़ुल रयाहीन।२९)
वाज़िह रहे कि अल्लाह तआला के नेक और महबूब बंदों की ज़िंदगी इसी किस्म के अमली नुस्खे़ से इबारत रही। इन हज़रात ने अपनी ज़िंदगी को तमाम ममनूआत से बचाकर रखा और हुक्म ख़ुदा-ओ-रसूल की पाबंदी में पेश पेश रहे, जिस के नतीजे में अल्लाह तआला ने इन बर्गज़ीदा हस्तीयों को दुनिया के ख़ौफ़-ओ-डर और हज़न-ओ-मलाल से बे परवाह कर दिया।