नुमाइंदा ख़ुसूसी-शहर हैदराबाद को तारीख़ी आसार, ख़ूबसूरत-ओ-फ़न तामीर की शाहकार इमारतों के लिहाज़ से ना सिर्फ हिंदूस्तान बल्कि दुनिया भर में क़दर-ओ-मंजिलत की निगाह से देखा जाता है। यहां एक से बढ़ कर एक ख़ूबसूरत-ओ-तारीख़ी इमारतें दुनिया को अपने शानदार माज़ी की दास्तानें सुनाती हैं। एसी ही इमारतों में गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही का शुमार होता है।
सात गुम्बद के नाम से मशहूर आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) का ये ख़ज़ाना मुल्क-ओ-बैरून मुल्क के सय्याहों के लिए कशिश का बाइस बना हुआ है। महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) क़ुतुब शाहों की इस ग़ैरमामूली यादगार की देख भाल और इस के तहफ़्फ़ुज़ का ज़िम्मेदार है, लेकिन लगता है कि इस महकमा(डिपार्टमेंट) ने अपने फ़र्ज़े मंसबी(ज़िम्मेदारी) को फ़रामोश कर दिया है।
कियों कि उस की नज़रों के सामने गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही के अंदरूनी हिस्सों पर भी नाजायज़ क़बज़े कर लिए गए हैं और महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) एक बेजान मुजस्समा की तरह ख़ामोशी इख़तियार किए हुए है। शहर में वाक़ै फ़न तामीर की शाहकार इमारतों को अपनी तहज़ीबी अलामतें तसव्वुर करने वाले शहरियों के ख़्याल में महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) जान बूझ कर क़ुतुब शाही और आसिफ़ जाहि हुकमरानों की यादगारों को तबाही-ओ-बर्बादी की जानिब धकेल रहा है।
कई तारीख़ी आसार तो खन्डरात में तब्दील होचुके हैं। इसके बावजूद महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) के मुतअस्सिब ओहदेदारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। एसा लगता है कि वो अंधे, बहरे और गूंगे होगए हैं। इन ओहदेदारों की मुजरिमाना ग़फ़लतका शिकार सात गुम्बद में वाक़ै मस्जिद रेज़ (Raize Mosque) बनी हुई है।
आप को ये जान कर हैरत होगी कि इस मस्जिद के रास्ते पर लोधे तबक़ा के अफ़राद ने ना सिर्फ क़बज़ा करलिया बल्कि वहां पुख़्ता मकानात भी तामीर करलिए हैं और ये सब कुछ महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) के ओहदादार ख़ामोशी से देखते रहे। गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही में जुमला 18 तारीख़ी-ओ-ख़ूबसूरत मसाजिद हैं।
कहा जाता है कि इन में सब से पहले मस्जिद रेज़ को तामीर किया गया। इस मस्जिद को क़ुतुब शाही हुकमरानों ने बहुत ज़्यादा अहमियत दी। इस की वजह ये है कि क़ुतुब शाही दौर में जो बादशाह भी क़िला में इंतिक़ाल करजाता तो इस की मैयत को इस मस्जिद के पीछे जो रास्ता बनाया गया था, उसी रास्ते से शाही गुसलखाना को ले जाया जाता था और वहीं बादशाहों की मय्यतों को ग़ुसल दिया जाता था। मस्जिद रेज़ के पीछे क़ुतुब शाहों ने उम्दा किस्म की कमानें तामीर करवाई थीं।
इस दौर में ये रिवायत और अक़ीदा था कि मय्यतों को इन कमानों के नीचे से गुसलखाना ले जाने पर बख़शिश होती है। एक तरह से उन कमानों और रास्तों को मुक़द्दस तसव्वुर किया जाता था। आप को बतादें कि गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही में एक शाही गुसलखाना भी है। इसी ग़ुसलख़ाने तक जाने के लिए मस्जिद के नीचे से ख़ुसूसी रास्ता बनाया गया था, लेकिन बद क़िस्मती से ये रास्ता आज लोधों के क़बज़े में है।
लवोधा तबक़ा के अफ़राद ने इस रास्ते को बंद करके एक हिस्सा में अपने मकानात तामीर करलिए । वाज़ेह रहे कि मस्जिद सात गुम्बद की बाउनडरी से लगी हुई है। मस्जिद की जो बाउनडरी है, इस के एक तरफ़ लोधे क़ाबिज़ हैं तो दूसरी तरफ़ आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया का दफ़्तर मौजूद है। सात गनबदों के बिलकुल आख़िरी कोने पर वाक़ै मस्जिद रेज़ की ग़ैरमामूली सीढ़ियों को बारिश की वजह से शदीद नुक़्सान भी पहुंचा है। जब भी बारिश होती है तो मस्जिद के पास गढ़े में बारिश का पानी जमा होजाता है जब कि मस्जिद बिलकुल कोने में होने से आशिकों के लिए भी ये महफ़ूज़ मुक़ाम बन गया है।
इस की मुक़द्दस दर-ओ-दीवार पर आशिकों और मनचले नौजवान जोड़े ने अपने नाम कुंदा करलिए हैं। जैसे ये तारीख़ी आसार नहीं बल्कि उन के आबा-ओ-अज्दाद की जागीर हो। क़ुतुब शाहों के दौर में जिस मस्जिद को काफ़ी अहमियत दी जाती थी, आज वो सिर्फ और सिर्फ महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) की लापरवाही, मुजरिमाना ग़फ़लत, बेहिसी और किसी क़दर तास्सुब के बाइस-ए-तबाही के दहाने पर पहुंच गई है।
इस तारीख़ी-ओ-फ़न तामीर की शाहकार मस्जिद को महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) ने बड़े ही ज़ालिमाना अंदाज़ में नज़र अंदाज कर दिया है और इस का मक़सद किया है? इस बारे में महकमा(डिपार्टमेंट) के ओहदादार ही बेहतर जानते हैं। मस्जिद की सीढ़ियां तबाह होचुकी हैं। ऐन रास्ते पर लोधों ने मकानात तामीर करलिए हैं। इस के बावजूद महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) के ओहदादार ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में पड़े तास्सुब-ओ-जांबदारी की नींद में मगन नज़र आते हैं।
इस ग़ैर मामूली तारीख़ी आसार पर लोधा तबक़ा के नाजायज़ क़बज़े को हटाने आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया, बलदिया और मंडल रेवन्यू ऑफीसर मजबूर-ओ-बेबस दिखाई देते हैं। यहां सवाल ये पैदा होता है कि इतने अहम तारीख़ी विरसा पर क़बज़ा कर लिया जाता है, इस पर पख़ते मकानात की तामीर अमल में लाई जाती है, इस के बावजूद ओहदादार आख़िर क्यों ख़ामोश हैं? यह फिर उन के हाथों को फ़िर्कापरस्ती-ओ-तास्सुब की ज़ंजीरों से जकड़ दिया गया है? क्या इन ही वजूहात के बाइस वो नाजायज़ क़ब्ज़ों को देखने से क़ासिर, इस के ख़िलाफ़ कुछ बोलने से आजिज़ और क़ाबज़ीन के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाने से कतरा रहे हैं? यहां सैंकड़ों की तादाद में स्याह आते हैं।
आख़िर इस तारीख़ी मस्जिद का रास्ता क्यों बंद कर दिया गया? इस की तहकीकात इंतिहाई ज़रूरी है, वर्ना आने वाले दिनों में गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही पर लैंड गिरा बरस और मुफ़ाद परस्त अनासिर बस्तियां बना सकते हैं। इस तारीख़ी आसार का रेकॉर्ड मौजूद होने के बावजूद आख़िर क़बज़े कैसे हुए? ये सब के लिए लम्हा फ़िक्र है। तारीख़ी कुतुब के मुताबिक़ एक दौर में इन गुंबदों में कीमती कालीनों का फ़र्श हुआ करता था। हर गुम्बद को फ़ानुस सेआरास्ता किया गया था। हर क़ब्र के सिरहाने कलाम मजीद रेहल पर रहा करती थी।क़ुरआन ख़वानी और मुजाविर मुतय्यन रहा करते थे और गुंबदों में इस वक़्त हर किस-ओ-नाक्स का गुज़र बहुत दुशवार था।
क़ुतुब शाही दौर में ये मुक़ाम लंगर फ़ैज़ के नाम से मशहूर था, जहां रोज़ाना चार बजे फ़ुक़रा-ओ-मसाकीन में खाना तक़सीम होता था लेकिन अब सब कुछ ख़त्म होगया। महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) इन गनबदों की देख भाल-ओ-निगहदाशत की ज़िम्मेदार है, जो इंतिहाई ग़फ़लत धा रही है। गुम्बदान-ए-क़ुतुब शाही की अक्सर मसाजिद की दर-ओ-दीवार को नाआक़बत अंदेश लोग और परागंदा ज़हन आशिक़ अपने नाम कुंदा करते हुए बेहुर्मती करते जा रहे हैं।
इस पर भी महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) कोई क़दम नहीं उठाता। जहां मस्जिद रेज़ का सवाल है, क़ुतुब शाह अव्वल के दौर में 1518-में तामीर हुई थी । अब महकमा(डिपार्टमेंट) आसार क़दीमा (आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ) के ओहदादार होश में आएं और इस तारीख़ी मुक़ाम को तबाह होने के साथ नाजायज़ क़ब्ज़ों से बचाएं।