बैनुल अकवामी (अंतर्राष्ट्रीय) मज़हबी आज़ादी से जुड़ी अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट में 2002 के गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा देने के सुस्त ( धीमी गति) अमल (प्रक्रिया/ Process) पर चिंता जताते हुए कहा गया है कि इस राज्य में मुसलमान अब भी डर के माहौल में जी रहा है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कांग्रेस केंद्र सरकार की ओर से ‘हिंदुत्व’ के एजेंडे को खारिज किए जाने के बावजूद देश के भाजपा शासित कई राज्य इसी नज़रिया (विचारधारा) से मुतास्सिर (प्रभावित) हैं।
अमेरिकी कांग्रेस समर्थित इस रिपोर्ट में यहां के विदेश मंत्रालय ने कहा है, सरकारी अधिकारियों, एन जी ओ और धार्मिक नेताओं की ओर से 2002 की हिंसा (तसद्दुद) में शामिल लोगों को इंसाफ (न्याय) की जद में जाने की मंद गति को लेकर चिंता जताई गई है। अमेरिकी सरकार की इस रिपोर्ट में गुजरात दंगों पर एक बड़ा हिस्सा केंद्रित है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि गुजरात हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों को पकड़ने में राज्य सरकार की नाकामी को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता निरंतर चिंता जता रहे हैं। इस हिंसा में 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोग थे।
इसमें कहा गया है कि मीडिया की खबरों में इशारा ( संकेत) दिया गया कि गुजरात में मुसलमान अपने हिंदू पड़ोसियों से अब भी डरते हैं क्योंकि वे अदालत के मामलों के निपटने का इंतेज़ार कर रहे हैं।
अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगा पीड़ितों ने मार्च 2008 में उच्चतम न्यायालय की ओर से गठित विशेष जांच दल (एस आई टी) पर आरोप लगाया है कि वह उन पर अपने बयानों को बदलने के लिए दबाव बना रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात की निचली अदालतों में चलाए गए कई मामलों में आरोपी सबूतों के अभाव अथवा बयानों के बदलने के ( सबब) कारण रिहा हो गए। गुजरात दंगों के नौ बड़े मामलों में से सिर्फ तीन की सुनवाई में आंशिक प्रगति हुई।
अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत सरकार की ओर से हिंदुत्व को लगातार खारिज किए जाने के बावजूद कुछ राज्य ( रीयासत) और स्थानीय ( मुकामी) सरकारें हिंदुत्व से ही प्रभावित हैं।
इसमें कुछ रियास्तो (राज्यों) में गोहत्या के खिलाफ कानूनों का हवाला देते हुए कहा गया है, कुछ रियासतो (राज्यों) ने हिंदू विश्वास के आधार पर कानून लागू (पारित) किए जो अल्पसंख्यकों की मजहबी आजादी मे रुकावटें डालते हैं ।