यूं तो महिलाओं के लिए घर के साथ कार्यालय की भी जिम्मेदारी संभालना अब ऐसी बात नहीं रह गई है, जिस पर बहस की जाये, लेकिन जरूरत पड़ने पर कविता ने जिस पेशे को अपनाया, वह न केवल चर्चा का विषय बना बल्कि दूसरों के लिए प्रेरित कहानी भी बन गया है। एक ऐसी कहानी जो खराब से खराब परिस्थितियों का सामना करने और अपनी स्वाभिमान न छोड़ने का सबक देती है।
मराठवाड़ह के कहत प्रभावित क्षेत्र नांदेड़ के रहने वाली कविता शादी के बाद मुंबई चली आई। इस बड़े शहर को अपनाने में थोड़ा समय लगा। इससे पहले कविता ने कभी अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा था। गृहस्थी की गाड़ी ठीक ठाक चल रही थी, लेकिन बेटे के जन्म के बाद घर के हालात बिगड़ने लगे। बेटे के मानसिक रूप से बीमार होने की वजह से पति की ज्यादातर कमाई अस्पताल के बिल भरने में ही खर्च हो जाती थी। बिटिया की पढ़ाई और घर के बाकी खर्च चलाने के लिए पैसे की चिंता सताने लगी। दसवीं तक पढ़ी कविता चाहती तो कोई छोटी मोटी नौकरी कर लेती लेकिन बच्चे की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे घर छोड़कर वह आठ से दस घंटे की नौकरी कर लेती। दूसरा विकल्प था झाड़ू पोछा का काम, यह कविता नहीं करना चाहती थी। ऐसे मुश्किल हालात में ऑटो ड्राइवर पति रिक्शा चलाने का सुझाव दिया। लेकिन मुंबई जैसे शहर में रिक्शा चलाना, कविता के लिए एवरेस्ट जीत से कम नहीं था।
कविता कहती है,
“मैंने कभी अपने गांव से बाहर कदम नहीं रखा था। मुझे साइकिल चलाना नहीं आता था। अपने गांव की गलियों के रास्ते, मुझे ठीक से याद नहीं थे। आज मुंबई की सड़कों पर बेधड़क ऑटो चलाता हूँ। घर की लागत में पति का साथ देती हूँ। अपने बेटे के इलाज की जिम्मेदारी है मेरे कंधों पर। मैंने हालात से समझौता नहीं किया। बल्कि उसका साहस के साथ सामना किया। ”
मुंबई से सटे ठाणे शहर के वर्तक नगर के आसपास के क्षेत्र में सुबह से ही आप कविता का ऑटो नजरर आजाए । सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक कविता यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है। उनका घर भी इसी क्षेत्र में है। दोपहर कविता घर जाती है, बच्चों के साथ खाना खाती हैं और फिर ऑटो लेकर निकल पड़ती हैं। कविता को ऑटो चलाते लगभग एक साल हो गया है। शुरुआती दिनों को याद कर कविता आज भी भावुक हो जाती है,
“इतने बड़े शहर में ऑटो रिक्शा चलाने के विचार से ही मुझे डर लगता था। लेकिन धीरे धीरे मैंने खुद को तैयार किया। अपने अंदर के डर का सामना किया और 6 महीने में ही रिक्शा चलाना सीखा।”
कविता के सामने ऐसी कई कठिनाइयां आईं, जो किसी की भी हिम्मत तोड़ सकती थी। कविता ने जब अपना फैसला पक्का कर लिया तब उनके पति उन्हें रिक्शा चलाना सिखाने लगे। लेकिन यह भी कुछ लोगों से देखा नहीं गया। यह तय है कि ट्रेक से हटकर जब भी कोई काम करेगा, उसके पैर खींचने वालों की बड़ी संख्या होगी। कविता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। पति का ऑटो किराए का था और किसी ने जाकर ऑटो मालिक के कान भरे। फिर क्या था मालिक ने ऑटो वापस ले लिया। फिर कविता के पति ने दूसरे मालिक से बात की, लेकिन जैसे ही उसे इस बात का पता चला कि ऑटो का उपयोग कविता के पति उसे सिखाने के लिए भी करते हैं, उसने भी अपना ऑटो वापस ले लिया। पर इस खींचतान में कविता का विश्वास और पक्का होता गया। स्वाभिमान से जीने और पति के साथ काम करने के लिए कविता ने मन ही मन खुद को तैयार कर लिया। उनके पति ने तीसरा ऑटो किराए पर लिया और इस बार कविता को सिखाने में सफल रहे। महज 6 महीने में ही कविता ने रिक्शा चलाना सीखा। लेकिन कविता की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई थीं। उसका असली परीक्षा तो अब शुरू हुआ था ..
कविता कहती है,
“जब मैं अपना ऑटो लेकर सड़कों पर निकली तो मैं एक ऐसे पेशे में कदम रख रही थी , जिस पर अब तक केवल पुरुषों का ही कब्जा था। ऐसे में कई बार मेरा मजाक भी उड़ाया जाता था। कुछ रिक्शा चालक कहते थे कि हमारे धंधे में महिलाओं की कोई जगह नहीं है। यह हमारा अधिकार छीन रही हैं। कुछ देखकर हंसते थे। कुछ ताने कसते थे। लेकिन कुछ यात्री ऐसे भी मिले जिन्होंने शाबाशी दी। सराहना की और कहा। अच्छा काम कर रही है। ”
आज कविता घर के खर्च में पति का साथ देती है। उसकी बड़ी लड़की 8 साल की है और स्कूल जाती है। माँ बाहर रहने पर वह छोटे भाई की देखभाल भी करती है। कविता समय निकालकर दोपहर में घर आ जाती हैं और बच्चों को एक समय देती है। ऐसे में बच्चों को माँ के साथ भी मिल जाता है और वह छोटे बेटे का भी हालचाल जान लेती हैं। घर में न रहने पर कविता के पड़ोसी भी बच्चों की थोड़ी बहुत देखभाल कर लेते हैं। पहले कविता के पास किराए का रिक्शा था, लेकिन अब उन्हें परमिट मिल गया है और थोड़े दिनों बाद रिक्शा उनका अपना हो जाएगा।
मनोबल और आत्मविश्वास से भरी कविता की कहानी, सभी के लिए एक उदाहरण है। उसने बताया है कि खराब से खराब हालात का सामना कैसे किया जा सकता है। बस जरूरी है आप अपने विश्वास और हिम्मत को बनाए रखें। कविता की जीवन एक सबक है उनके लिए जो बुरे समय में गलत कदम उठा लेते हैं या टूट जाते हैं। आज कविता अपने परिवार के साथ खुश है और ऑटो स्टीयरिंग के साथ साथ वह अपनी गृहस्थी की गाड़ी भी बखूबी चला रही हैं।