गैर आबाद 7 मसाजिद की आबादकारी का अमल मुकम्मल

नुमाइंदा ख़ुसूसी— हिंदूस्तान भर में जितनी ओक़ाफ़ी जायदाद मुस्लमानों के पास हैं शायद मुल्क के किसी और तबक़े के पास होँ । ये जायदाद औक़ाफ़ हिंदूस्तानी मुस्लमानों के बहुत बड़े मुआविन की हैसियत रखती हैं । अगर इन मौक़ूफ़ा जायदादों का सही सिम्त में इस्तिमाल होता रहे तो मुस्लमान तालीमी , मआशी , तिब्बी और ज़िंदगी के दीगर तमाम शोबा जात में किसी के मुहताज बाक़ी नहीं रहेंगे लेकिन आज से कब्ल अख़बारात के ज़रीया आए दिन वक़्फ़ जायदादों के इस्तिहसाल की खबरें आती रहती थीं और इस के नतीजा में मुस्लिम औक़ाफ़ का मुहाफ़िज़ और निगरान इदारा वक़्फ़ बोर्ड को तरह तरह से तन्क़ीदों का निशाना बनाया जाता था । कभी बेहिस , बेबस , अक़लीयतोंका ना अहल इदारा से तो कभीग़फ़लतशिआर , उज़ू मफ़लूज , नाकारा और मुफ़ाद परस्त इदारा जैसे चुभते हुए अलफ़ाज़ इस पर दागे़ जाते थे । जिस की वजह से ये इदारा अपनी अवामी मक़बूलियत और एतिमाद तक़रीबन गंवा बैठा था । मगर आप को हैरत-ओ-इस्तिजाब के साथ साथ ख़ुशी महसूस होगी कि पिछले कुछ महीनों से इस इदारा में नई जान , नया वलवला और ग़ैरमामूली हरकत देखने में आरही है ।

मुख़्तलिफ़ मैदानों में इस ने अपनी सलाहियत का इस्तिमाल कर के अपना हक़ हासिल करने की बहतरीन कोशिशें की हैं और उन तमाम कामयाबियों के पीछे इस के रूह रवां और अब तक के सब से कमउमर वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन जनाब ख़ुसरो पाशा अफ़ज़ल ब्याबानी का अहम और कलीदी किरदार है । उन्हों ने इस इदारा के मुर्दा ढांचा में एक नई रूह फूंक दी है । उन की दानिशमंदी आला तदब्बुर-ओ-तफ़क्कुर , बलंद निगाही , और जां सोज़ी ने अर्सा से साकित-ओ-ख़ामोश और बेहिस इदारा को मुतहर्रिक-ओ-फ़आल और रवां दवां बना दिया है और बड़ी हद तक इदारा अवाम का एतिमाद और मक़बूलियत हासिल करने में कामयाब रहा है । अभी चंद रोज़ कब्ल वक़्फ़ बोर्ड के हस्सास चियरमैन ने क़ादयानयों के ताल्लुक़ से जो क़तई फैसला सादर फ़रमाया है उसे मुल्क भर में बहुत ज़्यादा पज़ीराई हासिल हुई है ।

उल्मा और अवाम के तहनेयती ब्यानातपूरे मुल्क के मुख़्तलिफ़ अख़बारात में शाय हुए । इस अहम और तारीख़ी फैसले के बाद दूसरा बड़ा कारनामा वक़्फ़ बोर्ड की जानिब से ये हुवा है कि लाल दरवाज़ा , छतरी नाका और गोली पूरा के इलाक़ा में जुमला 17 मसाजिद गैर आबाद थीं जिन में से अल्हम्दुलिल्ला 7 मसाजिद की आबादकारी का अमल तक़रीबन तकमील को पहुंच गया है । वाज़ेह रहे कि ये क़दीम गैर आबाद मसाजिद बिलकुल ख़सता हाल बल्कि खन्डरात में तब्दील होचुकी थीं । लेकिन अब मुरम्मत और साफ़ सफ़ाई के बाद पंजवक़्ता नमाज़ के काबिल हो चुकी हैं ।मज़कूरा बाला सात मसाजिद इस तरह हैं : मस्जिद जाम बाउली , मस्जिद चम्बेली का मंडवा , मस्जिद आलमगीर , मस्जिद फूलबाग , खेत की मस्जिद , मस्जिद हमाम बाउली और मस्जिद गुंबद ।

अब तक वक़्फ़ बोर्ड ने इन मसाजिद की मुरम्मत और आबादकारी के लिए पहले मरहले ( फ़रस्ट फेस ) में 9 लाख रुपये की ख़तीर रक़म मंज़ूर की है जब कि दूसरे मरहले ( सेकंड फेस ) का काम बाक़ी है । ये मसाजिद दिसंबर 1990 यानी तक़रीबन 22 सालों से गैर आबाद थीं । इन तमाम मसाजिद को सियासत अख़बार ने मुस्लमानों के लिए लम्हा फ़िक्र कालम के ज़रीया तसावीर और वक़्फ़ तफ़सीलात के साथ अवाम को मतला कर दिया था । जिस का असर ये हुवा कि वक़्फ़ बोर्ड ने उन्हें संजीदगी से लेते हुए बर वक़्त कार्रवाई की और अपनी टास्क फ़ोर्स टीम रवाना कर के इन मसाजिद की मुकम्मल रिपोर्ट हासिल की और उन की आबाद कारी के लिए फ़ंडज़ जारी किए । मसला मस्जिद चम्बेली का मुंडवा के ले 3 लाख 75 हज़ार रुपये मुख़तस किए गए । ख़ा नहाए ख़ुदा की आबादकारी और बाज़याबी के ताल्लुक़ से बोर्ड की फ़र्ज़शनास को जितना सराहा जाय कम है । इस तरह एक और काबिल-ए-ज़िकर इक़दाम बोर्ड ने ये किया कि क़दीम क़ब्रिस्तान जिन पर लैंड गराबरस की बुरी निगाहें लगी होती थीं और जिन का तहफ़्फ़ुज़ निशाने पर था ।

बोर्ड एसे क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी का अमल कर चुका है और उन के तहफ़्फ़ुज़ को यक़ीनी बनाया जा चुका है । ये क़ब्रिस्तान हसब ज़ैल हैं : क़ुतुब शाही क़ब्रिस्तान , शमस उद्दीन फ़ैज़ क़ब्रिस्तान , जहांगीर बी का तकिया और राजना बाउली क़ब्रिस्तान । इन क़ब्रिस्तानों की चहार जानिब गेनट की मज़बूत-ओ-मुस्तहकम और बुलंद दीवार खड़ी की जा चुकी हैं । वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन ने जिस तरह क़ादयानयों के ख़िलाफ़ फैसला सुनाया अक्सरीयती तबक़ा की कसीर आबादी के हामिल इलाक़ों में गैर आबाद मसाजिद की दाग़ दोज़ी और क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी का जो बीड़ा उठाया है इस सुनहरे सिलसिला को अगर इस नहज पर बरक़रार रखते हुए आगे बढ़ाया जाय और औक़ाफ़ के हवाले से अवाम की जानिब से मौसूल होने वाली शिकायात पर बर वक़्त अमल आवरी हो तो उन तमाम के लिए मुस्लमान हुकूमती इमदाद से बेनियाज़ हो जाएगा और ना सिर्फ हैदराबाद बल्कि पूरी रियासत आंधरा प्रदेश में मुस्लमानों की मौजूदा हालत में तबदीली आसकती है ।

रोज़नामा सियासत के मशहूर कालम मुस्लमानों के लिए लम्हा फ़िक्र और इस की तहक़ीक़ी रिपोर्टों को संजीदगी से लेते हुए गैर मुस्लिम कसीर आबादी वाले इलाक़ों में एक अर्सा से बेहुर्मती की शिकार इन मसाजिद और क़ब्रिस्तानों के हवाले से वक़्फ़ बोर्ड ने जो फ़आल कारनामा अंजाम दिया है उसे नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता । वक़्फ़ बोर्ड के जफ़ा कश चियरमैन ने इन इलाक़ों के तफ़सीली दौरा और गहरे जायज़े के बाद वहां का नक़्शा ही बदल दिया । ख़ास बात ये है कि इन गैर आबाद मसाजिद की बाज़याबी , मुरम्मत , सफ़ाई और आबाद कारी और क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी में मुक़ामी गैर मुस्लिम भाईयों का मुकम्मल तआवुन हासिल रहा।

शहर की अमन-ओ-सलामती और बाशिंदगान शहर की आपसी भाई चारगी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मसाजिद की आबाद कारी और क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी में ना सिर्फ ये कि किसी भी गैर मुस्लिम भाई रुकावट नहीं बना बल्कि सब ने पूरा पूरा साथ दिया । काबिले मुबारकबाद वक़्फ़ बोर्ड चियरमैन से उम्मीद की जाती है कि जिस तरह छतरी नाका , गोली पूरा और लाल दरवाज़ा की इन ख़सता हाल मसाजिद को आबाद और क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी की गई है इस तरह इस अमल को मुस्तक़बिल में जारी रखा जाएगा । अगर एसा हुवा तो उन की रोशन ख़िदमात को मिल्लत इस्लामीया बरसहा बरस तक याद रखेगी और ये तारीख का एक रोशन बाब होगा ।