गैर कानूनी मज़हबी ढाँचों की तामीर के लिए हुसैन सागर पर नज़र

हमारे शहर हैदराबाद में गुज़िश्ता पंद्रह बीस बरसों के दौरान कई तब्दीलियां आई हैं। शहर को हाईटेक सिटी, मेडिकल सिटी बनने का एज़ाज़ हासिल हुआ। बेशुमार मल्टीनेशनल कंपनियों ने यहां अपनी ब्रांच्स क़ायम करते हुए अपने अपने नेटवर्क को वुसअत दी। शहर की आबादी में भी इज़ाफ़ा हुआ। सहूलतें भी बढ़ गईं। दीगर अज़ला और बैरूनी रियासतों से रोज़गार की तलाश में लोगों की आमद तेज़ी से बढ़ती गई।

शायद इन तब्दीलियों का असर ज़िंदगी के दीगर शोबों पर भी पड़ा है। इन तब्दीलियों के साथ शहर में गैर कानूनी तौर पर सरकारी आराज़ीयात, सरकारी दफ़ातिर, सरकारी इदारों हुकूमत की जानिब से क़ायम कर्दा पार्क्स, स्टेडीयम्स, उबूरी पुलों (उन पलों के नीचे और ऊपर) पर तामीर कर्दा मज़हबी ढाँचों की तादाद में भी इज़ाफ़ा हुआ।

और ऐसा महसूस होता है कि ये सब कुछ एक सोचे समझे मंसूबा के तहत हो रहा है और उन गैर कानूनी ढाँचों के अचानक नमूदार होने पर क़ानून नाफ़िज़ करने वाली एजेंसियां भी ख़ामूशी अख़्तियार कर रही हैं।

मिसाल के तौर पर विक्टरी प्ले ग्राउंड चादर घाट से इमली बन बस डीपू आने वाली रोड पर सिर्फ़ एक दरगाह और विक्टरी प्ले ग्राउंड की दीवार से मुत्तसिल एक छिल्ला और झंडा हुआ करता था लेकिन एक मुख़्तसर से अर्सा में मूसा नदी के दामन में मिट्टी भर कर इस अराज़ी पर मुतअद्दिद मज़हबी ढांचा तामीर कर दीए गए।

इस मुआमला में हुकूमत हरकत में आई और ना ही बल्दिया के आला हुक्काम को इन गैर कानूनी मज़हबी ढाँचों के बारे में कोई फैसला लेने की फ़ुर्सत नसीब हुई।

दूसरी तरफ़ तक़रीबन सरकारी दफ़ातिर में मूर्तियां बिठा कर रातों रात गैर कानूनी मज़हबी ढाँचे तामीर कर दीए गए। ताहम किसी ओहदादार ने इसे रोकने की हिम्मत नहीं की। तारीख़ी मूसा नदी में गैर कानूनी मज़हबी ढाँचों की भरमार हो गई है।

बहरहाल हुक्काम इस जानिब तवज्जा दें तो बेहतर रहेगा वर्ना आज वहां एक मज़हब के मानने वाले अपना मज़हबी ढांचा तामीर करने की कोशिश कर रहे हैं कल कोई और आकर कुछ और नसब कर देगा। इस तरह की हरकतों का इंसिदाद क़ानून नाफ़िज़ करने वाली एजेंसियों की ज़िम्मेदारी है।