नई दिल्ली, 01 मार्च: सुप्रीम कोर्ट ने आज गै़रक़ानूनी तामीरात को बाक़ायदा बनाने बदली हुक्काम के अमल पर इज़हारे अफ़सोस किया और कहा कि बड़े शहरों में बेतहाशा गै़रक़ानूनी तामीरात को रोकने में सरकारी ओहदेदार अफ़सोसनाक तौर पर नाकाम हो रहे हैं,बल्कि गै़रक़ानूनी तामीरात को बाक़ायदा बनाया जा रहा है। जस्टिस जी एस सिंघवी और एस जे मुख उपाध्याय पर मुश्तमिल बेंच ने कहा कि सरकारी ओहदेदार दानिस्ता तौर पर म्यूनसिंपल क़वानीन को शहरों के लिए बनाए गए तरक़्क़ियाती मंसूबों पर अमल आवरी करने में नाकाम हैं।
ये ओहदेदार फ़र्ज़शनासी का मुज़ाहिरा नहीं कर रहे हैं। गुज़िश्ता 5 दहों के दौरान मुख़्तलिफ़ म्यूनसिंपल क़वानीन में दफ़आत को शामिल किया गया है,और इलाक़ों को तरक़्क़ी देने के लिए कई मंसूबे बनाए गए हैं। ऐसे क़वानीन क़ाबिले अमल हैं और जो ख़िलाफ़वरज़ी कर रहे हैं,उन को जुर्माना अदा करना पड़ेगा,लेकिन तमाम बड़े शहरों में छोटा या बड़ा हर शख़्स गै़रक़ानूनी तामीरात को फ़रोग़ देते हुए उसे बाक़ायदा बना रहा है।
मास्टर प्लान को रूबा अमल लाने को यक़ीनी बनाने पर ज़ोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मास्टर प्लान पर अमल करने वाले दानिस्ता या ग़ैर दानिस्ता तौर पर अपने फ़राइज़ से पहलूतिही कर रहे हैं। बेंच ने मज़ीद कहा कि इस अदालत की जानिब से शहरी इलाक़ों के माहौलियाती उसूलों का तहफ़्फ़ुज़ करने के लिए हिदायत देने के बावजूद इस पर अमल नहीं किया जा रहा है।
शहरियों के हुक़ूक़ का तहफ़्फ़ुज़ करना सरकार की ज़िम्मेदारी है,लेकिन हुक्काम उजलत में गै़रक़ानूनी तामीरात को बाक़ायदा बना रहे हैं। बेंच ने मुंबई की एक कवापरीटीव हाउज़िंग सोसाइटी की दरख़ास्त को मुस्तर्द कर दिया जिस ने गै़रक़ानूनी तौर पर तामीरकरदा अपनी मंज़िलों को बाक़ायदा बनाने की दरख़ास्त की थी।