गोधरा मुक़द्दमा : हुकूमत की अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट में नाक़ाबिल-ए-क़बूल

सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी की हुकूमत की दरख़ास्त कुबूल करने से इनकार कर दिया, जिस में उन्होंने गुजरात हाइकोर्ट के 8 फ़रवरी के हुक्मनामा पर हुक्म इलतिवा (रोक) जारी करने की दरख़ास्त की थी।

गुजरात हाइकोर्ट ने हुक्म दिया था कि 2002 के बदनाम-ए-ज़माना फ़सादाद में 500 से ज़्यादा दरगाहों और इबादतगाहों को नुक़्सान पहुंचा है, जिस का मुआवज़ा हुकूमत को अदा करना होगा।

दरख़ास्त समाअत (आवेदन की सुनवायी ) के लिए कुबूल करने से इनकार करते हुए जस्टिस के एस राधा कृष्णन और जस्टिस दीपक मिश्रा पर मुश्तमिल (सम्मिलित) बंच ने रियास्ती हुकूमत ( राज्य सरकार) से मज़हबी इमारतों की तादाद जिन्हें नुक़्सान पहुंचा है और उनकी तामीर जदीद (नये तामीर) के लिए अख़राजात की लागत की तफ़सीलात तलब की हैं।

सुप्रीम कोर्ट जानना चाहती थी कि क्या कोई सर्वे या जायज़ा हक़ीक़ी नुक़्सान और मुक़द्दस मुक़ामात को पहुंचने वाले नुक़्सान के बारे में जो फ़सादाद के दौरान हुआ, किया गया है या नहीं। अदालत ने इस वज़ाहत तलबी के बाद मुआमला की समाअत (सुनवायी) 9 जुलाई तक मुल्तवी ( स्थगित/ रोक) कर दी। एडीशनल एडवोकेट जनरल तुषार महित और मुशीर ( सलाहकार) क़ानूनी हेमन्त कावाही ने कहा कि हाइकोर्ट का हुक्म ग़लत है क्योंकि दस्तूर के सैक्यूलर (धर्म निर्पेक्ष) उसूलों के तहत मज़हबी मुक़ामात की किसी भी हुकूमत की जानिब से माली मदद नहीं की जा सकती