“गौ रक्षा” के नाम पर “गौ आतंकवाद”

मशहूर फनकार जावेद जाफरी की एक शायरी हमारे वतन के मौजूदा हालात को बड़े सही तरीके से बयां करती है

“नफरतों का असर देखो, जानवरों का भी बटवारा हो गया ,
गाय हिन्दू हो गयी, और बकरा मुस्लमान हो गया”।

पिछले दो साल में गौ रक्षा अौर बीफ के नाम पे मानव हत्या और अत्याचार की वारदातों में ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है और कानून के निज़ाम को चुनौती देनेवाले इन तंज़ीमों को आईन की खिलाफ-वर्ज़ी करने का मानो एक लाइसेंस मिल गया है. कभी नौमान , कभी जाहिद, कभी दादरी , कभी लातेहार । गाय तो सिर्फ़ बहाना है, दरअसल मुसलमान असली निशाना है। अौर गुजरात की घटना के बाद अब इसी उग्र हिंदुत्व अौर मनुवादी सियासत की डायरेक्ट झपेट में एक नया बकरा फँसा है- वह है दलित ।

पर पहला सवाल यह पैदा होता है कि आख़िरकार गाय को ख़तरा किससे है? हमारे वतन में ज़्यादातर सूबों में गौ-हत्या पर पाबंदी पहले से ही है। हाँ बीजेपी की हुकूमतवाली गोवा में नहीं है अौर कुछ उत्तर पूर्व के सूबों में नहीं है पर वहाँ की सियासत कुछ इस क़दर है कि बीजेपी के भी स्थानीय रहनुमा , चाहे वह किरन रिजुजू हो या मनोहर पर्रीकर, बीफ बैन के मुद्दे पर पार्टी से अलग राय रखते हैं। पिछले दो सालों में भारत का बीफ एक्सपोर्ट्स पहले से भी ज़्यादा रफ़्तार से बढ़ा है। सबसे बड़े कतलखाने/बूचडखाने किसी मुसलमान या दलित के नहीं है। बल्कि कई ऐसी कंपनियों के मालिक जैन अौर हिंदू हैं। क्या वजह है कि लाचार, कमज़ोर मुसलमान अौर दलित पे यह गौ-अातंकवादी हावी होते हैं पर किसी बीफ एक्सपोर्ट कंपनी के मालिक तक नहीं पहुँच पाते?

वैसे किसी को यह तकलीफ़ नहीं है किसी की मज़हबी भावना गाय से जुड़ी हुई है। मुसलमान अौर दलित इसकी क़दर करते हैं तब जाकर सर्वसम्मति से गौ-कशी के ख़िलाफ़ लघबघ पूरे वतन में क़ानून क़ायम हुए। पर क्या उन क़ानूनों ने किसी को यह हक़ दिया है कि वह क़ानून को अपने हाथों में लेकर, किसी को महज़ एक अफ़वाह पर जान से मार दे? अख़लाक़ की हत्या अौर मंदसौर में मुस्लिम ख्वाहातीनों की पिटाई क्या उन क़ानूनों के नज़रिए से जायझ ठहराई जा सकती है? अकसर कुछ संघ से जुड़े लोग यह दलील देते हैं कि आईन तक में गौ कशी के ख़िलाफ़ “Article 48” में झिक्र किया गया है । “Article 48” एक Directive Principle है अौर उसकी अहमियत है पर अाईन में ही दिए बुनियादी हक़ूक से ज़्यादा नहीं है । मिनरवा मिल्स केस में सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया था कि articles 14, 19,21 , 25 के तहत बुनियादी अधिकार जिस में राइट टू लाइफ़, क़ानून के निझाम अौर धर्म की अाझादी को सुनिश्चित किया गया है उनकी अहमियत directive principles से ज़्यादा है । “Article 48” का सहारा लेकर किसी मुस्लिम या दलित के “article 21” के तहत दिए गए बुनियादी हक़ूक पर हमला नहीं किया जा सकता।

शहजाद पूनावाला  लेखक  महाराष्ट्र राज्य कांग्रेस  यूनिट के महासचिव  है
शहजाद पूनावाला
लेखक महाराष्ट्र राज्य कांग्रेस यूनिट के महासचिव है

वैसे मुसलमानों के लिए सुवर खाना हराम है पर क्या मुस्लिम तंझीमो को यह हक़ है कि वह किसी के डिब्बे या फ्रिज में तलाशी ले या किसी को सुवर का माँस खाने या रखने के लिए मारा?

फिर हिन्दुत्व के ठेकेदारों को यह स्पेशल हक़ क्यूं मिलना चाहिए? एक तरफ तो यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करते हैं और दुसरी ओर कानून में अलग अलग पैमाने बनवाने का दोहरा मापदंड भी दिखाई देता है।
आजकल जो तंजीमे इस गौ रझा का ऐजेंडा चला रही है, शायद वो बेईल्म है कि इन्ही के सबसे बड़े हिन्दुत्व आइकॉन वीर सावरकर ने गाय और गौ रझा के बारे में क्या कहा था।

विज्ञान निश्था निबंध, पार्ट 1और 2 जिसे स्वतंत्रतवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक प्रकाशन, मुम्बई ने पब्लिशिंग किया है उसमें चैप्टर 1.5 “गोपालन हाव्य, गो पूजन नाव्य” में सवारक ने कहा है कि गाय का ख्याल तो रखे पर उसकी पूजा ना करें। सावरकर ने आगे कहा कि “जब गाय से हमारे हीत पुरे ना हो और हमें गाय से नुकसान हो तो गाय को त्याग देना चाहिए”।

” When humanitarian interests are not served and in fact harmed by the cow and when humanism is shamed cow protection should be rejected…(Samagra Savarkar vangmaya,(Vol. 3, p.341)”

क्या गौ रक्षक सावरकर को देश द्रोही कहकर उसका बहिष्कार करेंगे?
महात्मा गांधी के ख्यालात और दिलचस्प है, उन्होंने 25 जुलाई 1947 को सम्बंध में प्रार्थना सभा में कहा था- यह सोचना की भारत हिन्दुओं की भूमि है, यह बिल्कुल गलत है। भारत यहां के सभी बाशिंदों का है। अगर हम गौ कशी पर पाबंदी लगाए और उसके उलट पाकिस्तान में हो तब? वो कहे कि पाकिस्तान में हिंदुओं मंदिर जाना मना है क्योंकि मुर्ति पूजा शरिया के खिलाफ है तब? फिर वो आगे कहते हैं- कुछ अमीर हिंदू भी गौ कशी को बढ़ावा देते हैं। गाय को आस्ट्रेलिया और दुसरे देश भिजवाते है, जहां उनसे चमड़े के जूते बनते हैं और उन्हें वापस भेज दिया जाता है। मैं एक वैश्नव हिन्दू को जानता हूं जो अपने बच्चों को बीफ सूप खिलाता है। कस्बों में कई हिंदू धर्म के मानने वाले गाय और बैल से भारी भरकम काम कराते हैं जिसके बोझ में जानवर दब जाते हैं… क्या यह एक तरह का गौ कशी नहीं है?

आमूमन यह गौ-आतंक मचाने वाले तंज़ीमों के वैचारिक तार संघ परिवार से जुड़े हुए पाए जाते है। दादरी में तो अख़लाक़ को मरनेवालों में एक बीजेपी नेता के बेटे का नाम सामने आया और तताकथित हथ्यारों के कूकृत्यों को जायज़ ठैरानें का काम योगी बीजेपी के आदित्यनाथ और संगीत सोम जैसे लोगों ने किया। प्रोपागेंडा के तहद यह बताया जाता है कि मुसलमान गौ कशी करते हैं, पर इतिहास गवाह है कि मुगल बादशाह बाबर ने इस पर पाबंदी लगाई थी। अकबर, जहांगीर के वक्त में भी बढावा नहीं दिया गया। बहादुर शाह जफर ने भी इस पर रोक लगाई थी। आज जो महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार ने बीफ पर पाबंदी लगाई है, उस पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए बीफ खाने पर से पाबंदी उठा दी। वैसे हुकूमत के इस फैसले का असर सिर्फ मुस्लिम कसाई नहीं बल्कि 10000 करोड़ के कारोबार जिसमें चमड़े का धंधा करने वाले दलित और गरीब किसानों पर भी बोझ पड़ा है।

वैसे देखा जाए तो इन गौ आतंकियों को गाय से कोई लेना-देना नहीं है। अगर होता तो सड़क पर आवारा घूमती बुढी गाय जिन्हें किसान रख नहीं पाते उनको गौशाला में क्यों नहीं ले जाते? सड़क पर ये प्लास्टिक और कचरा खाने पर मजबूर है जिससे वह गाय बिमार होकर मर जाती है। मगर इनकी परवाह उन्हें नहीं है। गौ रक्षा और गौ सेवा में बहुत फर्क है। गौ सेवा सकारात्मक भाव है और गौ रक्षा सियासत से प्रेरित नकारात्मक भाव जिसमें दलित और मुसलमान को गाय जैसे जानवरों से भी कम आका जाता है। गौ रक्षा के नाम पर समाज को बांटने से आज इंसानों की रक्षा खतरे में है। जरुरी है कि “उना” में जिस तरह सभी आईन पसंद लोग ऐसी तंजीमो के खिलाफ आवाज उठाए और कानूनी राज को बरकरार रखने के लिए कमर कस लें।

शहजाद पूनावाला
लेखक – महाराष्ट्र राज्य कांग्रेस यूनिट के महासचिव है

लेखक के निज़ी विचार है सिआसत हिंदी का लेखक के विचारों से सहमत होना आवश्यक नही है