ग्राउंड् ज़ीरो गुजरात

10 साल की तकालीफ़ हमारे ब्यान से बाहर , जो कुछ हमारे साथ हुआ हम भूल नहीं सकते । में पढ़ना चाहता था लेकिन आज मज़दूरी करने पर मजबूर हूँ । मुस्लमान आज ख़ौफ़ के माहौल में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं । जिनके घर से एक मय्यत निकलती है उनकी क्या हालत होती है ये वही जानते हैं मेरे घर से 8 मय्यतें एक साथ निकली हैं । में इन हालात को कैसे फ़रामोश करूं ? अगर नरेंद्र मोदी एक मर्तबा बिलकीस बानो के बारे में दरयाफ्त कर लें और उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो तो शायद हालात बेहतर हो सकते हैं । 10 साल हमें 10 दिन लग रहे हैं । चूँकि 10 साल बगै़र सुकून के ज़िंदगी गुज़ारना कोई मामूली बात नहीं । इन एहसासात का इज़हार सुन कर सी एन एन आई बी उन के एडीटर इन चीफ़ राजदीप सरदेसाई भी रो पड़े ।

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बैन-उल-अक़वामी न्यूज़ चैनल सी एन एन आई बी एन ने गुजरात फ़सादाद की एक दहाई की तकमील पर ग्राउंड ज़ीरो गुजरात स्टोरी पेश की जिसमें फ़सादाद के मुतास्सिरीन की बिप्ताएं सुनाई गयी । जिन्हें सुनने के बाद कोई भी अहल-ए-दिल आँख से आँसू बहाए बगै़र नहीं रह सकता ।

 

गुजरात फ़साद के मुतास्सिरा और नरोडा पाटिया में मुस्लमानों की नस्ल कुशी की कलीदी गवाह शकीला बानो ने बताया कि इनके 8 अफ़राद ख़ानदान को उनकी नज़रों के सामने ज़िंदा जला दिया गया जिनमें दो माह का नदीम भी शामिल है जिसे ज़ालिमों ने आग की नज़र कर दिया ।

 

उन्होंने राजदीप से बातचीत करते हुए कहा कि 2002 ने हर तरह का डर निकाल दिया है और अब मुझे सिर्फ वही याद है जो 2002 में हुआ था । मैं  ना  ही 2002 भूल सकती हूँ और ना ही हुसूल इंसाफ़ तक ख़ामोश रह सकती हूँ । एक और मुतास्सिर नदीम सय्यद ने बताया कि अब भी हमें ऐसा लगता है कि हम मर रहे हैं ।

 

ये सोंच हम में पैदा हो चुकी है कि काश हम 2002 में ही मर गए होते चूँकि 10 साल के दौरान हम रह रह कर मर रहे हैं । उन्होंने बताया कि आज भी गुजरात के मुस्लमान दूसरे दर्जा के शहरी की हैसियत रखते हैं । अहमदाबाद के अबदुल हमीद ने हालात की अक्कासी करते हुए कहा कि गाय भी अगर भागती है तो हमें ख़ौफ़ होता है चूँकि हम यहां बेसहारा हैं । सिग्नल फुलिया इलाक़ा गोधरा के इनायत ने बताया कि 9 साल जेल में गुज़ारने के बाद उन्हें इल्ज़ामात से बरी किया गया तब तक सब कुछ उजड़ चुका था ।

 

मेरे बच्चों का मुस्तक़बिल तबाह हो गया । 16 साला ख़ालिद बाक़िर ने बताया कि वालिद सादिक़ बाक़िर को जब पुलिस ने हिरासत में लिया तब उस की उम्र 6 साल थी उस वक़्त से मैंने तालीम तर्क करके घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ली और रोज़ाना मज़दूरी करते हुए घर सँभालना शुरू कर दिया जबकि मेरी ख़ाहिश पढ़ लिख कर सरकारी ओहदेदार बनने की थी ।

 

गोधरा की एक और मुतास्सिरा नसीम ने बताया कि वो अब भी चार पाँच घरों के बर्तन कपड़े धोकर अपने 10 साला फ़र्ज़ंद आमिर और अपना गुज़र बसर कर रही हैं । उनके शौहर अब भी बेबुनियाद इल्ज़ामात के तहत जेल में है । सिग्नल फुलिया के अवाम ने बताया कि आज भी हमें पाकिस्तान चले जाओ जैसे ताने सुनने पड़ते हैं ।

हमारे लिए आज भी मुलाज़मतों के दरवाज़े बंद हैं । बी जे पी सदर गोधरा राजेश ने दावा किया कि लोग सब कुछ भूल चुके हैं किसी को 2002 की याद ताज़ा नहीं है । हर कोई उसे एक हादिसा समझता है और उसे आगे बढ़ने की फ़िक्र लाहक़ है । इलावा अज़ीं मल्टीनेशनल कंपनी के मुलाज़मीन ने जो तरक़्क़ी याफ्ता समाज का हिस्सा तसव्वुर किए जाते हैं ने बताया कि वो आगे बढ़ना चाहते हैं । उन्हें नहीं लगता कि गोधरा फ़सादाद को मज़ीद याद रखा जाना चाहिये ।

डाक्टर जे एस बंदूक़ वाला परताब गंज बड़ौदा ने बताया कि वो एक से ज़ाइद मर्तबा चीफ़ मिनिस्टर नरेंद्र मोदी को इस बात पर तवज्जा दिला चुके हैं कि चीफ़ मिनिस्टर फ़साद मुतास्सिरीन बिलख़सूस बिलकीस बानो मुआमला में माज़रत ख़्वाही करें और उन्हें हुसूल इंसाफ़ के लिए सरपरस्ती फ़राहम करें लेकिन ऐसा नहीं हुआ । उन्होंने बताया कि फ़सादाद के दौरान उनका घर मुनहदिम कर दिया गया ।

गुलबर्ग सोसाइटी ने एहसान जाफरी के इलावा तक़रीबन 60 लोग मौत के घात उतारे गए इनमें 14 साला एक नौजवान शामिल है या नहीं आज तक इस नौजवान के वालदैन को पता नहीं है । अज़हर के वालदैन ने बताया कि वो इन दिनों को क़तई नहीं भूल सकते चूँकि वो दिन जब भी याद आते हैं सुकून ग़ारत हो जाता है । इस ख़ुसूसी रिपोर्ट में मुमताज़ गानधयाई क़ाइद चुन्नी भाई वैद्या के इलावा वि एच पी और बी जे पी क़ाइदीन से भी राजदीप सरदेसाई ने बात की ।

 

वि एच पी और बी जे पी का ये एहसास है कि 2002 में जो कुछ हुआ वो अमल का रद्द-ए-अमल था और उनका कहना है कि अब इन बातों को भूलने की ज़रूरत है जबकि चुन्नी भाई वैद्या ने बताया कि गुजरात में जो कुछ हुआ वो गांधी के उसूलों के ख़िलाफ़ था अगर गांधी होते तो ये हालात होते या नहीं ये सवाल है चूँकि गांधी एक नज़रियाती क़ाइद थे । आख़िर में राजदीप सरदेसाई ने मुतास्सिरीन से मुलाक़ात के एहसासात के तौर पर चंद सवाल किए जिसमें ये इस्तिफ़सार किया कि कभी आप को लगता है कि एक नया समाज बनेगा ?

 

एक नई ज़िंदगी की शुरूआत होगी ? तो मुतास्सिरीन का जवाब था कि जब तक गुनहगारों को सज़ा नहीं मिल जाती , मुतास्सिरीन को इंसाफ़ नहीं मिलता , मोदी को मज़लूमों के दर्द का एहसास नहीं होता उस वक़्त तक मोदी की सदभावना का कोई मतलब नहीं है ।