नोटबंदी से पूरा भारत परेशान है, शहरी भारत तो परेशान है ही वहीँ ग्रामीण भारत बुरी तरह त्रस्त है। उत्तर प्रदेश के हापुड़ ग्रामीण बैंक के मैनेजर अनिल कुमार बताते हैं कि सरकार ने नाबार्ड के ज़रिये सहकारी बैंकों तक 21,000 करोड़ रुपये पहुंचाने का ऐलान तो कर दिया लेकिन अब तक पैसा नहीं आया है। कैश की कमी की वजह से हर रोज़ सिर्फ 125-150 लोगों को 2000-2000 रुपये दे पाते हैं। कैश कम है इसलिए ज़्यादातर लोगों को खाली हाथ वापस भेजना पड़ता है।
बैंक की बैलेंस शीट बताती है कि किस तरह 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद कैश पेमेंट घटा है। 8 नवंबर को ज़िला सहकारी बैंक की धौलाना शाखा में स्थानीय खाताघारकों को 8.5 लाख रुपये की कैश पेमेंट दी गई, जबकि 28 नवंबर को सिर्फ 4.55 लाख की कैश पेमेंट लोगों को करना संभव हो सका, यानी करीब 50% कम. वो भी ऐसे वक्त पर जब रबी सीज़न की बुआई का पीक टाइम है और किसानों को ज्यादा कैश की जरूरत है।
जाहिर है किसानों और स्थानीय लोगों को कैश पेमेंट घटने से उनकी मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। रणवीर दत्त शर्मा काफी बूढ़े हो चुके हैं। इलाज के लिए पैसे निकालने की जद्दोजहद करते-करते थक चुके हैं। कहते हैं, इतना परेशान हो चुके हैं कि अकाउंट रखना ही नहीं चाहते हैं। यानी ग्रामीण इलाकों में कैश की किल्लत बनी हुई है, जो लोगों के लिए बड़े संकट में बदलता जा रहा है।