‘चाय से लेकर जनता के भरोसे तक’ सब बेच गए मोदी

याद करें साल 2014 देश के लिए कितना दुर्भाग्यपूर्ण था जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आया। बड़े-बड़े स्लोगन बनाए गए जिनमें से एक स्लोगन था ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ कांग्रेस से परेशान हुई जनता भी इस मक्कार इंसान की बड़े-बड़े लम्बे भाषणों को उत्सुकता और इस विश्वास पर सुनती रही की मानो अच्छे दिन आने ही वाले है। खुशियों की आस लगाकर बैठी जनता श्रीमान मोदी के प्रधानमंत्री बनने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी कि कुछ नया देखने को मिलेगा, देश में बदलाव आएगा जैसे कि मोदी के हर भाषण में सुनने को मिल ही जाता था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के चुप रहने पर हमेशा सवाल उठाती रही बीजेपी और मोदी जोर-जोर से भाषण तो दे सकते है लेकिन मनमोहन सिंह जैसी इंटेलिजेंस का मुकाबला कभी नहीं कर पाएंगे उदारहण के तौर पर वो कहावत है न ‘अधजल गगरी छलकत जाय’ मतलब मुर्ख आदमी ज्यादा चिल्लाता है,

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जबकि ज्ञानी शांत रहता है। जैसे कि होता है न की मोहल्ले में मदारी बंदरों को लेकर आता है तमाशा दिखाने और भीड़ इकट्ठी हो जाती है उनके करतब देखने। वैसे ही मदारी बने मोदी ने तमाशा दिखाने के लिए भीड़ तो खूब इकट्ठी की बन्दर भी लोगों को दिखाये लेकिन उनसे करतब नहीं करवाए, बस दिखा कर यूं ही ले गए। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने देश की तरफ रुख करने की बजाए देश से ऐसे यू-टर्न लिया कि पीछे मुड़ने का नाम नहीं ले रहे। देश के नाम पर विदेश घूम रहे मोदी को देश के अच्छे दिन देखने का तो वक़्त नहीं मिलता। लेकिन हाँ मन की बात करने मोदी रेडियो पर जरूर आ जाते है जैसे देशवासियों का हंस-हंस मजाक उड़ा रहे हों। आजकल तो मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है नारा लगा रहे मोदी ने शायद बचपन में यह मुहावरा नहीं पढ़ा “आगे दौड़ पीछे चौड़” कि नई योजनाएं शुरू करने से कुछ नहीं होता जब तक जमीनी स्तर पर सही ढंग से उनपर काम न किया जाए। कई तरह के अभियान शुरू तो किये जा रहे है लेकिन सिर्फ नाम के लिए ही। उनका कोई फायदा न तो आम जनता को रहा है और कभी हो भी न पाये क्यूंकि जो देश की आम जनता को बदलाव चाहिए उनपर तो बीजेपी सरकार सोच-विचार भी करती दिखाई नहीं दे रही। अपनी साफ़-सुथरी छवि दिखाने वाले श्रीमान मोदी का हाल तो ऐसा है “मानो सौ चूहे खा के बिल्ली चली हज को”।

गुजरात दंगो को जनता अभी तक भुला नहीं पायी थी की मोदी राज आते ही धर्म के नाम पर फिर से हिंसा और अनबन शुरू करवा दी गई और कहते ये फिर रहे हैं कि देश के विकास के लिए हम किसी गलत रास्ते पर नहीं चलेंगे। देश को धर्म के नाम पर तोड़ने वाली बीजेपी और आरएसएस राजनीति के नाम पर सरासर जो गुंडागर्दी कर रही है उसे कोण रोक सकता है पुलिस भी अपनी और कोर्ट भी अपने ही और अगर “कन्हैया” जैसे कुछ लोग इनके खिलाफ आवाज़ उठाने लगते है तो उनपर इल्जाम डाला जाता है देशद्रोह का। आप ही बताए कि देशद्रोहियों के खिलाफ आवाज़ उठाना कैसे देशद्रोह हो सकता है? अपनी माँ की आँख के तारे नरेंद्र मोदी “अपने मुँह मियाँ मिट्ठू” तो थे ही और सत्ता में आने के बाद बीजेपी के एक मात्र सहारे के साथ “अन्धों में काना राजा” बन गए। “स्वच्छ भारत अभियान” “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान चलाकर तो आम जनता को बेवकूफ ही बनाया जा रहा है असल में मोदी साहब देश के बिजनेसमैन के ही वफादार है। टीवी और न्यूज़ चैनलों में एड देकर ये साबित करना चाहते हैं कि देश का विकास जोरों शोरों से चल रहा है।

ये अपनी तरफ से बिलकुल सच कह रहे हैं क्यूंकि देश के बिज़नेसमैनो का विकास तो ये करते ही जा रहे है लेकिन आम जनता तो पानी के लिए भी तरस रही है और देश को रोटी देने वाला किसान यहाँ खुद आत्महत्या कर रहा हो वहां देश की तरक्की कैसे संभव हो सकती है। स्मार्ट सिटी बनाने की बातें तो कर रहें है ये लेकिन क्या गाँवों में अभी तक पानी और टॉयलेट की सुविधा देने में सफल हुए हैं। बेटी बचाओ की बातें की जाती है लेकिन क्या बेटी को सुरक्षित रखने में कामयाब हुई है सरकार। सोचें और विचार करें की क्या ऐसे होगा देश का विकास।

प्रियंका शर्मा
(लेखिका सिआसत डेली से जुडी हुई हैं)

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