सीबीआइ के खुसुसि जज पीके सिंह की अदालत में चारा घोटाले के कांड नंबर आरसी 20 ए/96 में पीर को बिहार के साबिक़ वज़ीरे आला लालू प्रसाद की तरफ से हक़ रखा गया। जबलपुर हाइकोर्ट के सीनियर वकील सुरेंद्र सिंह ने लालू का हक़ रखते हुए खुसुसि अदालत में कहा कि जब घोटाले की जानकारी एजी और महकमा खज़ाना को ही देर से मिली, तो बिहार के मौजूदा वज़ीरे आला (लालू प्रसाद) को पहले कैसे मिल जाती। लालू प्रसाद ने घोटाले को दबाया नहीं, बल्कि उजागर किया है. यह ऐसा मामला है, जिसमें सीबीआइ ने सनाह दर्ज करानेवाले को ही मुल्ज़िम बना दिया।
लालू की हिदायत पर पुलिस ने 41 सनाह दर्ज की थी : लालू प्रसाद का हक़ रखते हुए सीनियर वकील सुरेंद्र सिंह ने कहा, रियासत के मुखतलिफ़ कोषागारों से ज़्यादा इनखिला की इत्तिला पर लालू ने इसकी जांच करायी।
घोटालेबाजों के खिलाफ सनाह दर्ज करने का हुक्म दिया। अपने मातहत अफसरों को सनाह दर्ज कराने के बाद उन्हें इत्तिला करने की हिदायत दिया। उनके हिदायत पर ही पशुपालन घोटाले में पुलिस ने 41 सनाह दर्ज की। इसके बाद जांच की जिम्मेवारी सीबीआइ को सौंप दी गयी। पर सीबीआइ ने चाईबासा खज़ाना से हुई इनखिला में लालू प्रसाद को ही मुल्ज़िम बना दिया।
लालू को चारा घोटाला के बारे में कोई जानकारी नहीं थी : वकील
लालू प्रसाद की तरफ से कहा गया कि सीबीआइ ने इल्ज़ाम लगाया है कि घोटाले की जानकारी उन्हें पहले से थी। यह इल्ज़ाम गलत है, क्योंकि चाईबासा खज़ाना घर से जालसाजी कर इंखिला करने की जानकारी जब वहां के डीसी और रियासत के फाईनेंन्स कमिशनर को ही बाद में मिली, तो इसकी जानकारी लालू प्रसाद को पहले से कैसे हो सकती है। यहां तक कि इस मामले की सही जानकारी महालेखाकार (एजी) को भी बाद में मिली। एजी तो सरकारी खजाने के रखवाले हैं। एजी की तरफ से सिर्फ ज़्यादा इंखिला और उसे नियमित करने की बात कही जाती रही। लालू प्रसाद की तरफ से सनाह दर्ज कराये जाने के बाद एजी ने फरजी इंखिला की बात कही। फिर भी सीबीआइ यह कह रही है कि लालू को इस घोटाले की जानकारी पहले से है। गुजिशता ही दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआइ को ‘ पिंजरे का तोता’ कहा है। इससे बात समझी जा सकती है।