चिंताजनक है नोटबंदी के कारण नौकरियों का खत्म होना: अमर्त्य सेन

नोटबंदी का सच अंत में सामने ज़रूर आएगा, परंतु सरकार लोगो के दिलों में लंबे वक्त के लिए वफादारी के बीच बोने में कामयाब हुई है, अमर्त्य सेन ने कहा। दी हिन्दू अख़बार के सुवोजीत बागची को दिए अपने एक इंटरव्यू में अमर्त्य सेन ने विमुद्रीकरण के प्रभावो और इसे लागू करने के पीछे के इरादों के बारे में बात की।

हमनें नोटबंदी का प्राथमिक प्रभाव – लोगो के लंबी कतारो में खड़े और नकद की कमी के रूप में देखा है, पर अब हम प्रभाव सहायक क्षत्रो में देख रहे हैं। पश्चिम बंगाल मे आलू की बोवाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है और कुछ व्यवसाय तो ख़तम हो गए हैं।

 

इन सब का क्या प्रभाव हो सकता है?

आप जिसे सहायक क्षेत्रों पर प्रभाव कह रहे हैं वो बिलकुल भी आश्चर्यजनक नहीं है विशिष्ट रूप से इसलिए क्योंकि इन सभी व्यवसायों के लिए नकद की आवश्यकता पड़ती है। हो सकता है की आगे के वक्त में, बिना नकद का लेनदेन व्यवस्था में संगठन और प्रशिक्षण के माध्यम से शामिल किया जा सके परंतु इसमें अभी वक्त लगेगा। तत्कालीन विद्वता और संस्थानीकरण के अनुमान पर कार्रवाई करना उन लोगो की भावनाओ के साथ खिलवाड़ है जिनका काले धन से कोई सम्बन्ध नहीं है।

आज हमारे पास जो भी नकद है को असलियत में केवल वचन पत्र हैं। इन वचन पत्रो ने औद्योगिक यूरोप की वित्तीय रीढ़ की हड्डी के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अठारवी और उन्नीसवी शताब्दी में अगर ब्रिटैन ने नोटबंदी कर दी होती तो उनकी औद्योगिक प्रगति तबाह हो जाती।

इलेक्ट्रॉनिक खातों और लेन-देन के अल्प विकास को देखते हुए, अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा इसी तरह से कमज़ोर है। विशेष रूप से गरीब लोगो के बीच इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन का कुशल और सही उपयोग होना फिलहाल मुश्किल है। लोगो के बीच अपने पैसो को खोने का डर बना हुआ है ख़ास तोर पर अभी जब नकद की कमी हो रखी है। हैरानी की बात यह है की वो लोग जिन्होंने नोटबंदी का फैसला किया उन्होंने इन समस्याओ के बारे में क्यों नहीं सोचा और उससे भी हैरानी की बात यह है की जो लोग नोटबंदी को बढ़ावा दे रहे हैं वो इतने अंधे हो गए हैं की उन्हें अब भी संकट दिखयी नहीं दे रहा।

८५% नकदी कैसे अचानक से प्रचलन से बहार हो गयी?

भारत सरकार अपने नोटबंदी के निर्णय के उद्देश्यों को लेकर भ्रमित है । नोटबंदी के फैसले को लागू यह कह कर किया गया था की इससे कला धन पकड़ा जायेगा और फिर ख़तम कर दिया जायेगा । परंतु उसके तुरंत बाद सरकार ने कहना शुरू कर दिया की वो एक नकद मुक्त अर्थ्यवस्था चाहती है। सरकार को नकद-मुक्त व्यवस्था के दावे पर इसलिए जाना पड़ा क्योंकि उन्हें मालूम था की नोटबंदी का काले धन की समस्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। काले धन का एक बहुत छोटा हिस्सा नकद के रूप में पाया जाता है। अधिकांश काला धन कीमती धातुओं और विदेशी खातों में अन्य संपत्ति के रूप में है। लोगो को असुविधाओ को झेलना पड़ रहा है और आगे और भी झेलना पड़ेगा जो अपेक्षाकृत छोटी राशि को पकड़ने के लाभ की तुलना में बहुत ज़्यादा है। बहुत सारी नौकरियों का नुक्सान होगा और “ऑल इंडिया निर्माता संगठन” की एक रिपोर्ट के अनुसार बहुत सारी नौकरियों का नुक्सान अब तक हो चूका है।

सरकार की यह अवास्तविक उम्मीद थी की वे नोटबंदी से काले धन को ख़तम कर देंगे और यह बहुत जल्दी उन्हें भी समझ आ गया था। यही कारण है की शुरुवात में उन्होंने “काले धन को ख़तम” करने का जो शोर मचाया था, उसे बदल कर वे उन्हें लोगो के सामने एक नया उद्देश्य घोषित करना पड़ा – “नकद मुक्त व्यवस्था की ओर प्रस्थान” ।

 

क्या आपको लगता है नोटबंदी के निर्णय के पीछे कुछ राजनीतिक कारण हो सकते हैं ? चुनाव निकट हैं और यह भी एक कारण हो सकता है ?

मुझे नहीं पता, क्योंकि किसी भी आर्थिक कारण से इस निर्णय को उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह स्वाभाविक है की लोग यह सोचेंगे की इस फैसले को चुनावो को ध्यान में रखते हुए लिए गया है। हालाँकि इस निर्णय से हमारी अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं हुआ है परंतु कुछ वक्त के लिए इस निर्णय ने प्रधानमंत्री मोदी को भ्रस्टाचार के खिलाफ खड़े एक नेता के रूप में स्थापित कर दिया है।

 

यह मुश्किलो से भरे ५० दिन क्या काले धन को वापिस ले आएंगे ?

यह कैसे हो सकता है? काले धन का केवल एक बहुत छोटा हिस्सा नकद के रूप में पाया जाता है । १० प्रतिशत काले धन की सफाई कैसे पुरे काले धन को ख़तम कर सकती है? १० प्रतिशत भी हम ज़्यादा बोल रहे हैं, क्योंकि jiske पास वास्तविकता में काला धन होता है उन्हें उसे अच्छी तरह से छुपाना आता है।

 

अगर यह सच मे एक बुरी नीति है तो लोगो ने इसका विरोध क्यों नहीं किया है ?

सरकार ने इस बेतुकी नीति को बहुत ही अच्छे तरीके से बढ़ावा दिया है। लोगो को यह कहा गया है की अगर आप नोटबंदी के विरुद्ध हैं तो इसका मतलब यह है की आप काले धन का समर्थन करते हैं। यह एक हास्यास्पद विश्लेषण है और एक शोषणीय राजनीतिक नारा है। यह संकट लोगो को धीरे धीरे समझ आ रहा है। लोगो के सामने सच अवश्य आएगा परंतु इसमें वक्त लगेगा और उत्तर प्रदेश चुनावो तक सरकार को लोगो का समर्थन रहेगा।