इसी चिंता के मद्देनजर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी माह एक बैठक की थी, जिसमें चिकन और मीट को खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के दायरे में लाने पर विचार किया गया था. सब कुछ ठीक रहा तो नये साल तक इस पर रोक संबंधी कानून लागू हो जायेगा. फिलहाल 6 दिसंबर तक विशषज्ञों व आम लोगों से राय मांगी गयी है. ड्राफ्ट में 37 एंटीबायोटिक और 67 अन्य वेटनरी ड्रग्स की अधिकतम मात्रा सुनिश्चित करने की बात कही गयी है
याद दिला दें कि 2014 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) का पॉल्यूशन मॉनिटरिंग लेबोरेटरी में दिल्ली-एनसीआर स्थित मुर्गी फार्मों के 70 चिकन सैंपल इकट्ठा किये थे और उनमें आम तौर पर इस्तेमाल की 6 एंटीबायोटिक्स (ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोर टेट्रासाइक्लिन, डॉक्सीसाइक्लिन, एनरोफ्लॉक्सिन सिप्रोफ्लॉक्सिन, नियोमाइसिन, एमिनोग्लाइकोसाइड) के अंशों की जांच की गयी, जिनमें 40 फीसदी नमूने पॉजिटिव थे. 17 ऐसे एंटीबायोटिक्स थे, जिन्हें डब्ल्यूएचओ ने इंसान के लिए खतरनाक घोषित कर रखा है.
लगातार इस्तेमाल के नुकसान : टेट्रासाइक्लिन और फ्लूरोक्विनोलोंस ऐसे एंटीबायोटिक्स हैं, जिनका इलाज कॉलेरा, मलेरिया, रेस्पायरेटरी और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शंस जैसे मानव रोगों के इलाज के लिए किया जाता है. इनका मनमाने तरीके से जानवरों पर इस्तेमाल किये जाने के परिणाम ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के रूप में सामने आ रहे हैं. भारत में इसका प्रभाव नजर भी आने लगा है. वर्तमान में हर साल लगभग 57000 नवजात शिशुओं की मौत इन्फेक्शन की वजह से हो जाती है, क्योंकि इससे बचने के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले एंटीबायोटिक बेअसर हो चुके हैं.