मिस्टर पी चिदम़्बरम चार साल के वक़फ़ा ( Break) के बाद वज़ारत फायनेन्स के दुबारा सरबराह ( व्यवस्थापक) बन गए हैं । उन्होंने आज वज़ीर फायनेन्स की हैसियत से अपनी नई ज़िम्मेदारी का जायज़ा लिया जबकि से मुतास्सिर मईशत को फ़ौरी तौर पर फ़आल-ओ-मुतहर्रिक बनाने की ज़रूरत में इज़ाफ़ा हो गया है ।
सख़्त और अहम फैसलों के लिए मशहूर पी चिदम़्बरम को गुज़श्ता रोज़ काबीना ( Cabinet) में मामूली रद्दोबदल के दौरान वज़ारत-ए-दाख़िला से वज़ारत फायनेन्स को मुंतक़िल कर दिया गया था । मिस्टर चिदम़्बरम आज सुबह वज़ारत-ए-दाख़िला के दफ़्तर पहूंचे थे जहां से वापसी के बाद उन्हों ने वज़ारत फायनेन्स पहूंच कर अपनी नई ज़िम्मेदारी का जायज़ा हासिल कर लिया ।
समझा जाता है कि उन्होंने आज सुबह कांग्रेस की सदर ( अध्यक्ष) सोनिया गांधी से मुलाक़ात भी की थी । मिस्टर चिदम़्बरम फायनेन्स के क़लमदान पर एक ऐसे वक़्त दुबारा वापस पहूंचे हैं जब मुल़्क की मआशी ( आर्थिक) तरक़्क़ी 2011-12में 6.5 फीसद तक घट गई जो गुज़श्ता 9 साल के दौरान सब से कम है और अब फ़ौरी ( शीघ्र) नवीत की ज़रूरत ये है कि बैरूनी-ओ-क़ौमी ( अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय) सरमायाकारों ( निवेशको) का एतिमाद ( यकीन) बहाल किया जाय ।
वाज़िह रहे कि नवंबर 2008 में हुए मुंबई दहशतगर्द हमलों के दौरान उन्हें वज़ारत फायनेन्स से सबकदोश किया गया और वो शिवराज पाटिल के जानशीन (उत्तराधिकारी) की हैसियत से वज़ीर दाख़िला ( गृह मंत्री) के ओहदा पर फ़ाइज़ हुए थे लेकिन सदारती ओहदा पर इंतिख़ाबात (चयन) में मुक़ाबला के लिए वज़ीर फायनेन्स परनब मुकर्जी के 26 जून को मुस्ताफ़ी होजाने के बाद वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने फ़ै नानिस का क़लमदान अपने पास रखा था ।
अमरीकी हॉवर्ड यूनीवर्सिटी फ़ारिग़ अल तहसील क़ानूनदां चिदम़्बरम ने 1996 में एच डी देवेगौड़ा हुकूमत में वज़ीर फायनेन्स का ओहदा सँभाला था और मआशी ( आर्थिक) इस्लाहात ( Reform) को जारी रखा था । इस दौरान अरविंद माया राम ने वज़ारत फायनेन्स के महकमा इक़तिसादी उमोर (economic affairs secretary) के सेक्रेटरी मिस्टर आर गोपालन के जानशीन की हैसियत से आज जायज़ा ले लिया।
मिस्टर माया राम जो वज़ारत देही तरक्कियात ( ग्रामीण विकास) में बहैसियत स्पेशल सेक्रेटरी-ओ-मुशीर मालियात की हैसियत से कारगुज़ार थे और तकरीबन चार साल क़बल वो वज़ारत फायनेन्स में जवाइंट सेक्रेटरी थे जब मिस्टर चिदम़्बरम वज़ीर फायनेन्स थे ।
सुशील कुमार शिंडे ने आज बहैसियत मर्कज़ी वज़ीर दाख़िला अपने नए ओहदा की ज़िम्मेदारी सँभालते हुए दाख़िली सलामती को लाहक़ चैलेंजों से निमटने और एन सी टी सी के क़ियाम जैसे मसाइल ( सम्स्याओं) पर रियासतों से करीबी ताल्लुक़ात-ओ-तआवुन के साथ काम करने का वायदा किया ।
मिस्टर शनडे ने एक दलित को वज़ारत-ए-दाख़िला का ओहदा देने पर वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और यू पी ए की सदर नशीन सोनिया गांधी से तशक्कुर-ओ-ममनूनीयत ( धन्यवाद) का इज़हार करते हुए कहा कि मर्कज़ और रियासतों के दरमियान हाइल ख़लीज ( बीच में आने वाली आढ़/ दूरी) को पार करने की ज़रूरत है ।
मिस्टर शिंडे ने नई वज़ारती ज़िम्मेदारी सँभालने के बाद अख़बारी नुमाइंदों से बात चीत करते हुए कहा कि वो संसद के सेंटर्ल हाल में ये बाअज़ ( कुछ) सयासी हलक़ों ( राजनीतिक दल/ गुटों) को ये कहते हुए सुना हूँ कि मर्कज़ और रियासतों ( केंद्र और राज्य) के दरमियान ताल्लुक़ात में हाइल ख़लीज ( बीच में आने वाली आढ़/ दूरी) को ख़त्म करने के मवाक़े ( मौके) हनूज़ ( अभी) मौजूद हैं।
नए वज़ीर दाख़िला ने कहा कि उन के पेशरू पी चिदम़्बरम ने मर्कज़-ओ-रियासतों के ताल्लुक़ात ( संबंध) में हाइल ख़लीज को ख़त्म करने की भरपूर कोशिश की और वो भी कोशिश करेंगे , हमें मज़ीद पेशरफ़्त करने की ज़रूरत है। इस ज़िमन रियासतों के साथ बेहतर ताल्लुक़ात की ज़रूरत है ।
अगरचे रियासतों में मुख़्तलिफ़ जमातों की हुक्मरानी है । लेकिन में तमाम चीफ मिनिस़्टरों को ये वाज़िह पैग़ाम देना चाहता हूँ कि हम तमाम हिंदूस्तानी हैं और ख़ाह कोई भी मुश्किल हो इस से निमटने की लिए हम मुशतर्का कोशिश कर सकते हैं ।
वाज़िह रहे कि दहशतगर्दी से मुक़ाबला के लिए क़ौमी मर्कज़ (एन सी टी सी ) के क़ियाम की कोशिशों में माज़ी करीब के दौरान मर्कज़ी वज़ारत-ए-दाख़िला (गृह मंत्री) को मुख़्तलिफ़ रियासतों की मुख़ालफ़तों के तनाज़ुर (हालात) में उन्होंने ये रिमार्क किया है । मिस्टर शिंडे ने उन्हें वज़ारत-ए-दाख़िला की ज़िम्मेदारी दीए जाने पर वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और यू पी ए की सदर नशीन सोनिया गांधी से इज़हार-ए-तशक्कुर किया और कहा कि इस कलीदी ओहदा पर फ़ाइज़ होने वाले दूसरे दलित हैं ।
इन से पहले 1980 की दहाई में राजीव गांधी ने बूटा सिंह को इस जलील अल क़द्र ( स्म्मानित) ओहदा पर फ़ाइज़ किया था । उन्होंने कहा कि गांधी ख़ानदान ने हमेशा ही दलितों और दीगर पसमांदा तबक़ात की फ़लाह-ओ-बहबूद पर तवज्जा दी है । दलित भी भारी ज़िम्मेदारी सँभाल सकते हैं ।
वज़ारत-ए-दाख़िला एक हस्सास-ओ-नाज़ुक वज़ारत होती है । माज़ी में मैं (महाराष्ट्रा में ) ये ज़िम्मेदारी सँभाल चुका हूँ और अब मर्कज़ी ( केंद्रीय) सतह पर ख़ुद को एक कामयाब वज़ीर-ए-दाख़िला ( गृह मंत्री) साबित कर सकता हूँ । इस सवाल पर कि आया आप एन सी टी सी के क़ियाम के मंसूबा पर पेशरफ़्त करेंगे जिस को बाअज़ रियासतों ( कुछ राज्यों) की सख़्त मुख़ालिफ़त ( विरोध) का सामना है ।
मिस्टर शिंडे ने जवाब दिया कि मैंने इस का जायज़ा नहीं लिया है। सब से पहले वो हुकूमत में शामिल अपने रफ़क़ा से और फिर रियासतों से बात चीत करना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि इस मसला ( समस्याओं) पर मैं खुला ज़हन रखता हूँ ।