चिदम़्बरम की बजट तक़रीर में ख़ातून ख़सारा और सरमाया कारी जैसे अलफ़ाज़ का ज़ाइद इस्तिमाल

नई दिल्ली, 01 मार्च: हर साल बजट की पेशकशी पर इस से मरबूत तक़रीर क़ाबिले समाअत होती है। एक ज़माना था कि मशहूर माहिर मआशियात नानी पालकी वाला की बजट तक़रीर की समाअत के लिए हज़ारों लोग शरीक हुआ करते थे। ये बात भी अपनी जगह मुस्लिमा है कि बजट की तक़ारीर में इफ़राते ज़र ख़सारा सरमाया कारी रोज़गार और ग़रीबों का तज़किरा बार बार किया गया जबकि गुज़िश्ता साल की बजट तक़रीर में ख़वातीन नौजवानों और सरमाया कारों की इस्तिलाहात ज़्यादा पेश की गई थीं।

एक ज़माना था जब बोहरान मआशी कसादबाज़ारी मसाइल ग़ैर यक़ीनी सूरते हाल और हैरत अंगेज़ तौर पर फ़रोग़ जैसी इस्तिलाहात का इस्तिमाल हुआ करता था जो अब ना के बराबर है। चिदम़्बरम ने भी अपने आम बजट के दौरान इन ही अलफ़ाज़ का ज़ाइद इस्तिमाल किया। यहां इस बात का तज़किरा दिलचस्पी से ख़ाली ना होगा कि मर्कज़ी बजट की पेशकशी और बादअज़ां अपनी तक़रीर के दौरान चिदम़्बरम ने ख़ातून का लफ़्ज़ 24 बार इस्तिमाल किया और ये उन्होंने उस वक़्त किया जब वो ख़वातीन स्टाफ़ पर मुश्तमिल बेंक का तज़किरा कर रहे थे।

चिदम़्बरम ने कहा कि मुल्क में ऐसे कई बेंक्स मौजूद हैं जिन की सरबराह ख़वातीन हैं, लेकिन ऐसा कोई बेंक नहीं है जो अपनी ख़िदमात सिर्फ़ ख़ातून सारिफ़ीन को ही पेश करे। ख़ातून-ए-ख़ाना के लिए लोन तिजारत के लिए लोन और बेंक मुआमलत से मरबूत तमाम ख़िदमात सिर्फ़ ख़वातीन के लिए ही मुख़तस होंगी।

बजट तक़ारीर की क़रीबी समाअत करने वालों के मुताबिक़ गुज़िश्ता साल मर्कज़ ने बजट के बाद वाली तक़रीर में ख़ातून का लफ़्ज़ 8 बार इस्तिमाल किया गया था। उन्होंने कहा कि मुल्क की आबादी का बेशतर हिस्सा ख़वातीन नौजवानों और ग़रीब अफ़राद पर मुश्तमिल है। इसी तरह उन्होंने ग़रीब और नौजवानों का तज़किरा बिलतर्तीब पाँच और सात बार किया जो गुज़िश्ता साल की तक़रीर से ज़्यादा है। जहां तक मआशी इस्तिलाहात का सवाल है तो लफ़्ज़ सरमाया कारी का इस्तिमाल 36 बार किया गया,जबकि सरमाया कार और फ़रोग़ के अलफ़ाज़ बिलतर्तीब 18 और 19 बार इस्तिमाल किए गए जबकि ख़सारा लफ्ज़ का इस्तिमाल 14 बार किया गया है। याद रहे कि गुज़िश्ता साल बजट तक़रीर मौजूदा सदर जमहूरिया परनब मुकर्जी ने की थी।