चीन में तेजी से फलफूल रहा है शिआन मुसलमान

चीन में अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों को अकसर प्रताड़ित किए जाने की खबरें आती हैं। लेकिन चीन में रहने वाला सबसे बड़ा मुस्लिम समुदाय है हुई, जो तेजी से फलफूल रहा है।

शिआन के मुस्लिम इलाके में चलते हुए आपको कई चीजें एक साथ दिखती हैं। सड़कों पर चलते हुए कबाब की खुशबू महसूस होती है। सिर पर स्कार्फ बांधे चीनी जैसी दिखने वाली महिलाएं नूडल्स फैला रही हैं जबकि सिर पर टोपी लगाए एक मुसलमान बुजुर्ग मस्जिद के सामने खड़ा है।

यह शिआन है, जहां पहली बार 7वीं सदी में इस्लाम धर्म आया था। चीन की मुस्लिम आबादी अब 2.3 करोड़ है जिसमें लगभग एक करोड़ हुई समुदाय के लोग हैं जबकि उइगुर एक करोड़ से कुछ कम हैं।

शिनचियांग में रहने वाले उइगुर मुसलमानों को जहां कई तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है, वहीं हुई लोग अपने धार्मिक रीति रिवाजों पर खुल कर अमल कर सकते हैं. इसकी वजह है सदियों से अन्य लोगों के साथ उनका घुलना मिलना. साथ ही, उन्होंने अपनी पहचान को भी बनाए रखा है।

ऐतिहासिक रूप से हुई लोग सिल्क रूट के जरिए कारोबार करने वाले फारसी, अरब और मंगोल व्यापारियों की संतानें हैं, जो 1200 साल पहले चीन पहुंचे थे। सदियों से हान और हुई लोग कमोबेश शांति से एक दूसरे का साथ रहे हैं। हुई लोग मैंडरिन भाषा बोलते हैं और उन्होंने अपनी परंपराओं को स्थानीय रीति रिवाजों के अनुरूप ढाल लिया है।

कैलिफॉर्निया के पोमोना कॉलेज में प्रोफेसर द्रू ग्लैडने ने हुई लोगों पर रिसर्च की है। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि आज चीन में 1950 के दशक के मुकाबले दोगुनी मस्जिदें हैं. इनमें से ज्यादातर हुई मुसलमानों ने बनाई हैं। उनका कहना है, “अब हुई समुदाय में धार्मिक नियमों पर चलने वाले मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है. मिसाल के तौर पर हिजाब पहनने वाली हुई महिलाओं की संख्या में बहुत इजाफा हुआ है। इसके अलावा हज पर जाने वाले हुई समुदाय के लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।”

हज से लौटने वाले विद्वान और मध्य पूर्व के देशों से बढ़ते कारोबारी संबंध भी इसका कारण हैं। मध्य पूर्व के देशों के साथ चीन का कारोबार बढ़ रहा है. अरब कारोबारियों को लुभाने के लिए निंगशिया प्रांत की राजधानी इंछुआन में 3.7 अरब डॉलर की लागत से इस्लामिक थीम पार्क बन रहा है।

अमेरिका की फ्रोस्टबर्ग यूनिवर्सिटी में एक हुई विद्वान हाययुन मा हुई लोगों के साथ चीन सरकार की नजदीकी को अलग तरह से देखती हैं। उनका कहना है कि इसका धार्मिक सहिष्णुता से कोई लेना देना नहीं है। बल्कि यह व्यापारिक हितों को साधने की कोशिश है।