चुनाव आयोग में बगावती सूर ! क्लीन चिट पर लवासा और CEC आमने-सामने

लोकसभा चुनाव के खत्म होते-होते चुनाव आयोग में भी मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं. आयोग के आचार संहिता तोड़ने संबंधी कई फैसलों पर असहमति जताने वाले चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को पत्र लिखकर मांग की है कि आयोग के फैसलों में आयुक्तों के बीच मतभेद को भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर शामिल किया जाए.

अशोक लवासा देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कतार में हैं और सूत्रों के मुताबिक लवासा आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को सीधे-सीधे लगातार क्लीन चिट और विरोधी दलों के नेताओं को नोटिस थमाए जाने के खिलाफ रहे हैं.

21 मई को चुनाव आयोग की बैठक

चुनाव आयोग में फैसले को लेकर हो रहे विवाद और लवासा की ओर से पत्र लिखे जाने को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा, ‘चुनाव आयोग में 3 सदस्य होते हैं और तीनों एक-दूसरे के क्लोन नहीं हो सकते. मैं किसी भी तरह के बहस से नहीं भागता. हर चीज का वक्त होता है.’

चुनाव आयोग में शीर्ष अधिकारियों के बीच जारी विवाद पर के बीच अब 21 मई को आयोग की अहम बैठक होने वाली है. इस बैठक पर अब सभी की नजर है कि इसमें चुनाव आयुक्त अशोक लवासा शामिल होते हैं या नहीं. चुनाव आयोग ने दावा किया है कि ये सब उसका ‘आंतरिक मामला’ है. लेकिन आयोग का ‘आंतरिक मामला’ मीडिया में आने के बाद चुनाव आयुक्त लवासा का बैठक में आना या गैरहाजिर रहना दोनों ही सुर्खियों में तो रहेगा ही.

चुनाव आयोग मोदी का पिट्ठूः कांग्रेस

दूसरी ओर, इस विवाद पर कांग्रेस का कहना है कि चुनाव आयोग मोदी का पिट्ठू बना चुना है, अशोक लवासा की चिट्ठी से साफ है कि सीईसी और उनके सहयोगी लवासा के बीच नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लेकर जो अलग मत है, उसे रिकॉर्ड करने को तैयार नहीं हैं

इससे पहले सूत्रों के मुताबिक चुनाव आयोग की बैठक में अपने अलग मत की वजह से सुर्खियों में रहे अशोक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखी चिट्ठी में कहा है कि 3 सदस्यीय आयोग में एक सदस्य का भी विचार भिन्न हो तो उसे आदेश में बाकायदा लिखा जाए. लवासा चुनाव आयोग में सुप्रीम कोर्ट जैसी व्यवस्था चाहते हैं. जिस तरह से कोर्ट की खंडपीठ या विशेष पीठ में किसी केस की सुनवाई के बाद फैसला सुनाते वक्त अगर किसी जज का फैसला सहमति से लिए गए फैसले के उलट रहता है तो भी  उसका फैसला रिकॉर्ड किया जाता है.

फैसला होने तक बैठक में नहीं

सूत्रों ने यह भी बताया कि अशोक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को लिखे पत्र में यह बात भी कही है कि उनकी मांग के अनुरूप व्यवस्था नहीं बनने तक वह बैठक में ही शामिल नहीं होंगे.

हालांकि, चुनाव आयोग की नियमावली के मुताबिक तीनों आयुक्तों के अधिकार क्षेत्र और शक्तियां बराबर हैं. किसी भी मुद्दे पर विचार में मतभेद होने पर बहुमत का फैसला ही मान्य होगा. फिर चाहे मुख्य निर्वाचन आयुक्त ही अल्पमत में क्यों ना हों.

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव आयोग को अपने अधिकारों का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किए जाने पर डांट चुका है. आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की ओर से आयोग में दाखिल शिकायतों का जल्द निपटारा नहीं किए जाने की आलोचना भी की. चुनाव आयोग नरेंद्र मोदी और अमित शाह को कई मामलों में क्लीन चिट दे चुका है. जबकि इन दोनों नेताओं के खिलाफ अपने चुनावी भाषणों में सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक जिक्र और विरोधियों के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे.

रिकॉर्ड रखने का आदेश

मोदी-शाह क्लीन चिट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के आदेशों को रिकॉर्ड पर रखने को कहा है. इस आदेश के बाद आयोग को अंदेशा है कि अगली सुनवाई में कोर्ट आयोग में होने वाली मीटिंग की प्रक्रिया और फैसले के आधार को लेकर तीखे और सीधे सवाल करेगा.

जारी लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष खुलकर आयोग पर आरोप लगा रहा है कि वह निष्पक्ष रूप से फैसले नहीं ले रहा. बंगाल में अमित शाह के रोड शो में हुई हिंसा के बाद बुधवार को चुनाव आयोग के तय समय से 20 घंटे पहले ही चुनाव प्रचार को रोक दिए जाने की भी तीखी आलोचना हुई थी.

इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि चुनाव आयोग मोदी और शाह के इशारे पर काम कर रहा है तो दूसरी ओर बीजेपी भी ऐसे ही आरोप लगाती रही है.