इस हक़ीक़त से कोई इनकार नहीं करसकता कि फ़सादात मुल़्क की तरक़्क़ी में सब से बड़ी रुकावट हैं। समाज का शुऊर काफ़ी हद तक बेदार हो चुका है, मगर कुछ मुफ़ाद परस्त अनासिर अपने नापाक अज़ाइम के तहत सादा लौह शहरीयों को आपस में लडाकर अपने मक़ासिद की तकमील करते हैं।
ऐसे गिनाउने जुर्म में मुलव्वस अफ़राद को जब तक सख़्त से सख़्त सज़ा नादी जाये, इस किस्म के हालात रौनुमा होते रहेंगे, क्योंकि चार दिन क़बल सिंगा रेड्डी में जो दरिंदगी के वाक़ियात पेश आए हैं और मुस्लमानों की मईशत को मुनज़्ज़म अंदाज़ में जिस तरह तबाह किया गया है, इस में मुलव्वस शरपसंदों के साथ साथ जिम्मेदार ओहदेदारों के ख़िलाफ़ भी सख़्त कार्रवाई की ज़रूरत है।
अगर हुकूमत सरमाया दारों या बा असर लोगों के दबाउ में आजाए तो अवाम का एतिमाद हुकूमत और क़ानून से उठ जाएगा। आज सिंगा रेड्डी से दूर दराज़ के इलाक़ों में रहने वाले सिर्फ़ मुसल्मान ही नहीं, बल्कि हिन्दू भाई इस वाक़िया की शदीद मुज़म्मत करते हुए अफ़सोस का इज़हार कर रहे हैं और कहा जा रहा है इस किस्म की हरकत मुक़ामी अफ़राद नहीं करसकते, बल्कि ये दूर दराज़ के लोगों की कारस्तानी होसकती है।
हर ज़हन में बार बार एक सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस दौर-ए-हकूमत का कोई हिस्सा ऐसा भी है, जिस में फ़िर्कावाराना फ़सादाद ना हुए हूँ?। इसी वजह से कहा जाता है कि चेहरा बदलना आसान है, लेकिन फ़ित्रत बदलना मुश्किल है। हुकूमत को चाहीए कि ग़ैर जानिबदाराना अंदाज़ में अपनी कारकर्दगी के ज़रीया हक़ायक़ का पता लगाए, क्योंकि अवाम और अवामी अम्लाक की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी हुकूमत पर आइद होती है।
कहा जाता है कि ज़ालिम ख़ाह कितना ही ताक़तवर क्यों ना हो, मगर उस की उम्र बहुत कम होती है। जो लोग तलवार के ज़ोर पर ज़िंदा रहते हैं, एक दिन इसी तलवार से उस की गर्दन कट जाती है। हुकूमत को चाहीए कि वो फ़सादाद के मुतास्सिरीन को फ़ौरन मुआवज़ा अदा करे और इस मुनज़्ज़म तबाही का गहराई के साथ जायज़ा लेते हुए ख़ातियों को गिरफ़्तार करे, ताकि शरपसंदों को इस बात का एहसास हो जाये कि गंगा जम्नी तहज़ीब को कोई भी फ़िर्का परस्त तार तार नहीं करसकता।