कहते हैं कि ख़ाब देखना इंसानी फ़ित्रत का एक लाज़िमी हिस्सा होता है.लेकिन ख़ाब और उसकी ताबीर(हकीकत) के दरमियान जो फ़ासले होते हैं , इस फ़ासले को उसी वक़्त तए किया जा सकता है जब कोई ख़ाब अज़म मुसम्मम ओर जहद मुसलसल (मोसलसल कोशिश)के साथ देखा जाय।एक छोटी सी मस्जिद के इमाम साहिब की बेटी , तैबा फ़ातिमा उन्ही सैंकड़ों बच्चीयों में से एक है जो अपनी बेसर-ओ-सामानी के बावजूद अपने अज़म मुसम्मम ओरजहद मुसलसल के सहारे अपना एक नसबुल ऐयन(मकसद) ,और अपनी मंज़िल का एक हदफ़ (निशाना)मुतय्यन कर रखा है,
और उसे यक़ीन है कि वो अपने ख़ाबों की ताबीर(हकीकत) ज़रूर हासिल करेगी।ईदगाह मीर आलम के नज़दीक बस्ती नबी करीम में बाड़ों से घिरी हुई वाक़ै एक मस्जिद ,मस्जिद बाक़र हुसैनी के इमाम साहिब की बेटी दस साला तैबा फ़ातिमा अभी महज़ पांचवें जमात में ज़ेर तालीम है,मगर उसकी ज़हनी सलाहियत और ग़ैरमामूली ज़हानत , ख़ुदाद सलाहियत की अक्कासी (जाहिर)करती है ।
बेसर-ओ-सामानी का आलम ये है कि इस लड़की के पास कभी भी मुकम्मल किताबें और कॉपियां नहीं रहीं, वालिद की क़लील आमदनी की वजहा से कभी भी स्कूल फीस वक़्त पर अदा नहीं की जा सकी, फीस की बरवक़्त अदम अदाइगी के सबब पूरा तालीमी साल मुश्किलात ,यानी टीचर के ताने सुनना , क्लास के बाहर खड़ा कर देना,इमतिहान में शिरकत से रोकना, अगर इजाज़त मिल भी गई तो इमतिहान के आख़िरी निस्फ़ घंटे बैठने की इजाज़त देना,वक़फ़े वक़फ़े से तुम गर्वनमैंट स्कूल में क्यों नहीं चले जाते जैसे तंज़ आमेज़ मश्वरे सुनने में गुज़रता है
…मगर अज़म-ओ-इस्तिक़लाल और ज़हनी सलाहियत का हाल ये है कि नर्सरी से लेकर अब तक इस ने फ़रस्ट डे वीज़न से कभी नीचे क़दम नहीं रखा और हमेशा 96,98 और99 फीसद नंबरात हासिल किए और बेपनाह मुश्किलात के बावजूद अब की बार भी इस ने 97% मार्क्स हासिल की है जबकि मुस्तक़बिल में वो सद फीसद नंबरात से कम हासिल करने की तमन्ना नहीं रखती।
इक़रा मिशन हाई स्कूल में ज़ेर तालीम तैबा फ़ातिमा से राक़िम उल-हरूफ़ ने जब उन से उन के मुस्तक़बिल के अज़ाइम के बारे में पूछा तो इस ने एक ही सांस में जिन ख़्यालात का इज़हार क्या इस से उनके बुलंद हौसले और अज़म मुहकम का इज़हार होता है ,बाक़ौल तैबा फ़ातिमामें डाक्टर बनना चाहती हूँ ,इसलिए नहीं कि सिर्फ पैसे कुमाऊं , इसलिए कि मैं अपने जैसे गरीब लोगों की ख़िदमत कर सकूं मेरे इस सवाल पर कि इस छोटी सी उम्र में उन्हों ने अपने करिएर का इंतिख़ाब क्यों करलिया और वह भी डाक्टर बनने का ?
तो इस का कहना थामें और मेरे भाई बहन या वालिदा जब कभी बीमार पड़ते हैं तो मैं ने देखा कि घर में दवाखाने जाने केलिए पैसे नहीं होते , इसे में सरकारी दवाखाने का रुख करना पड़ता है मगर वहां ईलाज की मुनासिब सहूलत और बाअज़ दवाएं भी नहीं मिलती हैं,इसलिए मुझे लगा मेरे घर के हालात की तरह कई घरों के हालात होंगे जिसे मुफ़्त ईलाज की ज़रूरत है और अगर मैं डाक्टर बन गई तो में अपने इस ख़ाब को ज़रूर पूरा करूंगी
तैबा फ़ातिमा के ख़ाबों और उसकी ताबीरों के दरमियान आ ने वाली माली रुकावटों की तरफ़ जब मैंने उसकी तवज्जा दिलाई तो कुछ देर केलिए उसकी पेशानी पर मायूसी की लकीरें उभर आएं मगर फिर जल्द ही सँभलते हुए इस ने कहा अल्लाह मालिक है कोई ना कोई रास्ता निकल ही जाऐगा तैबा फ़ातिमा की ज़हनी सलाहियत और उसकी कमज़ोर माली हालात के मुताल्लिक़ मालूम हुआ तो नुमाइंदा सियासत ने इस मासूम बच्ची के अज़म इस्तिक़लाल और उसकी छोटी सी आँखों में पलने वाले ख़ाब से क़ारईन सियासत को वाक़िफ़ कराने का इरादा क्या ,
इस उम्मीद के साथ कि इस हस्सास मुस्लिम मुआशरे में उसे मुस्लमानों की कमी नहीं जो माहाना 1500 रुपये तनख़्वाह पाने वाले इमाम साहिब की इस मासूम लड़की के ख़ाब को हक़ीक़त में बदलने अपना दस्त तआवुन दराज़ (मदद)करे और क़ौम-ओ-मिल्लत के एसे हीरे को जो महज़ पैसों के ख़ातिर ना कुंदा तराश बन कर रह जाता है , तराश कर उसे अनमोल हीरा बनादे । मुआवनीन की सहूलत केलिए तैबाफ़ा तिमा का बैंक एकाऊंट नंबर दफ़्तर सियासत से हासिल किया जा सकता है ।