हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) फरमाते हैं- अबू सुफियान ने मुझ से बयान किया कि (रोम के शाह हिरक्ल ने मुझे अपने दरबार में तलब किया और मुझ से नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में पूछा)। हिरक्ल का पहला सवाल यह था कि उस शख्स का नसब कैसा है? मैंने कहा वह निहायत शरीफ खानदान से ताल्लुक रखता है। उसने पूछा क्या तुम में से किसी ने उससे पहले नबूवत का दावा किया था? मैंने कहा नहीं। उसने पूछा क्या उसके बाप-दादा में कोई बादशाह होकर गुजरा है? मैंने कहा नहीं, उसने पूछा- उसकी पैरवी करने वाले बाअसर लोग हैं या कमजोर? मैंने कहा कमजोर। उसने सवाल किया उसके पैरूओं की तादाद में इजाफा हो रहा है या कमी? मैंने अर्ज किया इजाफा हो रहा है।
उसने पूछा उसके पैरूओं में कोई ऐसा भी है जो उसके दीन से बेजार होकर फिर गया हो? मैंने कहा नहीं। उसने पूछा नबूवत के दावे से पहले कभी तुमने उसपर झूट की तोहमत लगाई थी? मैंने कहा नहीं। उसने पूछा वह अहद की खिलाफवर्जी करता है मैंने कहा नहीं। अलबत्ता जो सुलह का मुआहिदा उसके साथ हुआ है उस पर देखे कि वह कायम रहता है या नहीं। अबू सुफियान कहते हैं इस एक बात के सिवा आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में कोई बात भी मैंने अपनी तरफ से दाखिल न कर सका। उसने पूछा क्या तुम्हारी कभी उससे जंग हुई है। मैंने अर्ज किया जी हां, पूछा- जंग का नतीजा क्या रहा? मैंने कहा जंग में कभी उसका पलड़ा भारी रहा और कभी हमारा। पूछा वह किस बात का हुक्म देता है? मैंने कहा वह कहता है एक अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ, बाप-दाद की बातें (जाहिलियत) छोड़ दो, वह हमें नमाज पढ़ने, सच बोलने, पाकदामनी अख्तियार करने और सिला रहमी का हुक्म देता है।
इस बातचीत के बाद हिरक्ल ने तर्जुमान से कहा अबू सुफियान से कहो मैंने तुम से उसके नसब के बारे में पूछा तो तुमने कहा कि वह शरीफुल नसब है और पैगम्बर हमेशा शरीफ खानदान ही में मबऊस होते हैं। मैंने पूछा क्या उससे पहले तुम में से किसी ने नबूवत का दावा किया था? तुमने जवाब दिया नहीं। अगर उससे पहले तुम में से किसी ने दावा किया होता तो मैं समझता कि यह उसी दावे का असर है। मैंने पूछा उसके बाप-दादा में कोई बादशाह हुआ है? तो तुमने कहा नहीं। अगर ऐसा होता तो मैं समझता कि वह बाप दादा की (खोई हुई) सल्तनत हासिल करना चाहता है। मैंने तुमसे पूछा कि नबूवत के दावे से पहले कभी तुमने उस पर झूट की तोहमत लगाई थी? तुमने जवाब दिया नहीं। मैं नही समझता कि जो शख्स लोगों से झूट न बोलता हो वह अल्लाह पर झूट बांद्द सकता है! मैंने तुम से सवाल किया कि बाअसर लोग उसके पैरू हैं या कमजोर? तुम ने जवाब दिया कि कमजोर लोग और पैगम्बरों के पैरू ऐसे ही लोग होते हैं। मैंने पूछा उसके पैरूओं में इजाफा हो रहा है या कमी? तुमने बताया इजाफा हो रहा है और यही हाल ईमान का है कि वह बढ़ता ही रहता है यहां तक कि वह कमाल को पहुंच जाता है।
मैंने तुमसे पूछा कि कोई शख्स उसके दीन को कुबूल करने के बाद उससे बेजार होकर फिर जाता है? तुमने जवाब दिया नहीं और यही कैफियत ईमान की है कि जब वह दिलों में बैठ जाता है तो फिर निकलता नहीं। मैंने पूछा उसने वादा खिलाफी की है? तुमने कहा नहीं और पैगम्बरों का किरदार ऐसा ही होता है। वह कभी वादा खिलाफी नहीं करते। मैंने तुम से पूछा कि वह किस बात की तालीम देता है। तुमने बताया कि वह एक अल्लाह की इबादत करने और उसका किसी को शरीक न ठहराने की तालीम देता है, बुतपरस्ती से मना करता है और नमाज पढ़ने, सच बोलने और पाकदामनी अख्तियार करने का हुक्म देता है। अगर तुम्हारी यह बातें सच हैं तो एक दिन उसका तसल्लुत मेरे इन कदमों की जगह पर भी होगा। मुझे मालूम था कि एक नबी का जहूर होने वाला है। लेकिन मैं नहीं समझता था कि वह तुम में से होगा। अगर मेरे लिए उसकी खिदमत में हाजिर होना मुमकिन होता तो मैं मुश्किलात के बावजूद मुलाकात करता और अगर मैं हाजिरे खिदमत होता तो कदम (मुबारक) द्दोने का शर्फ हासिल करता।
इस बातचीत के बाद हिरक्ल ने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का नामा-ए-गिरामी तलब किया जो वहया (रजि0) ने हाकिमे बसरा के मार्फत भेजा था। पढ़ा तो उसका मजमून यह था -‘‘ बिस्मिल्लाह हिर्रहमानिर्रहीम मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ से जो अल्लाह का बंदा और उसका रसूल है। यह खत हिरक्ल सरबराहे रोम के नाम है। सलाम हो उस पर जो हिदायत की पैरवी करे। मैं तुम को इस्लाम की दावत देता हूं। इस्लाम कुबूल कर लोगे सलामत रहोगे और अल्लाह तुम को दोगुना अज्र देगा। लेकिन अगर तुमने इंकार किया तो अरीसियों (अहले मुल्क) का गुनाह तुम्हारे सर होगा। ऐ अहले किताब ! एक ऐसी बात की तरफ आओ जो हमारे और तुम्हारे बीच मुश्तरिक है यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करे और न किसी को उसका शरीक ठहराएं और न हम में से कोई किसी को अल्लाह के सिवा रब बनाए। अगर यह लोग बात को न मानें तो साफ कह दो गवाह रहना हम मुसल्लम हैं।
अबू सुफियान कहते हैं जब हिरक्ल अपनी बात कह चुका और नामा-ए-रिसालत पढ़कर फारिग हो गया तो दरबार में शोर और कोहराम मच गया और हम लोगों को बाहर निकाल दिया गया। बाहर निकलने के बाद मैंने अपने दोस्तों सेकहा कि इब्ने अबी कब्शा (मुराद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का मामला तो बढ़ता ही जा रहा है। यहां तक कि अब रोम का बादशाह भी उससे डरने लगा है। इस वाक्ये के बाद मुझे यकीन हो गया कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बहुत जल्द गलबा हासिल होगा यहां तक कि अल्लाह तआला ने मुझे कुबूले इस्लाम की तौफीक बख्शी। (बुखारी)
तशरीह:- यह है वह शहादत जो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पैगम्बराना किरदार के बारे में कैसरे रोम के दरबार में एक शख्स ने पेश की जो इस्लाम का कट्टर दुश्मन और कबीला-ए-कुरैश का सरदार था। उसने आप की सच्चाई और अखलाक व सीरत की पाकीजगी का खुले बंदो एतराफ किया और किसी काबिल एतराज बात की निशानदेही न कर सका। जादू वह जो सर चढ़ कर बोले। अबू सुफियान उस वक्त इस्लाम के दुश्मन थे लेकिन बाद में यानी फतेह मक्का के मौके पर उन्होंने इस्लाम कुबूल किया।
कैसरे रोम हिरक्ल ईसाइ था। इसलिए इंजील की पेशीनगोइयों और शहादतों के मुताबिक एक नए रसूल की आमद का मुंतजिर था। उसे जब मालूम हो गया कि हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रिसालत का दावा करते हैं तो उसने जानना चाहा कि आया एक पैगम्बर की जो अलामात और खुसूसियात होती है वह आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) में मौजूद है या नहीं। जब उसे इत्मीनान हो गया कि नबूवत की अलामात और खुसूसियत आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अंदर पाई जाती है तो उसने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को नबी तस्लीम करने में कोई अश्काल महसूस नहीं किया। इस एतराफ के बावजूद वह मुसलमान नहीं हुआ क्योंकि हुकूमत और एक्तेदार की मसलेहत मानअ थी।
इस तरह कितने लोगों पर हक वाजेह हो जाता है लेकिन वह किसी न किसी तरह दुनियावी मसलेहत की बिना पर या इस ख्याल से कि अपने आबाई मजहब को छोड़ देने के नतीजे में मुश्किलात से दोचार होना पड़ेगा, कुबूले इस्लाम के लिए आमादा नहीं होते। नतीजा यह कि अल्लाह तआला की हिदायत और फलाहे आखिरत से वह महरूम रहते हैं।
इस्लाम चूंकि अल्लाह का नाजिल कर्दा दीन है और इंसानी दुनिया की रहनुमाई के लिए नाजिल हुआ है इसलिए इसके मुखातिब शाह व भिखारी सभी हैं।
इसी लिए नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने छः हिजरी बमुताबिक छः सौ अट्ठाइस ईसवीं में कैसर व कसरा और दीगर बादशाहों को दावती खत रवाना किए थे। रोम का बादशाह हिरक्ल था (रोम के बादशाहों का लकब कैसर होता था) वह उस वक्त एलिया मे मौजूद था। सीरिया भी उसी के जेरे हुकूमत था और सीरिया का पाया-ए-तख्त बसरा था। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का नामा-ए-मुबारक आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सहाबी वहया कल्वी ने बसरा के हाकिम को पहुंचाया और उसने कैसर के पास भेज दिया था।
अबू सुफियान उस वक्त तिजारत के सिलसिले में एक काफिले के साथ सीरिया गए थे। कैसर ने उन को अपने दरबार में बुलाया और उनसे नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बारे में सवालात किए जिनकी तफसील खुद अबू सुफियान ने अपने मुसलमान होेने के बाद बयान किया। (जवाहरूल हदीस) (मौलाना शम्स पीर जादा)
—————बशुक्रिया: जदीद मरकज़