जब टीचर के तबादले पर रो रहे थे छात्र और गाँव वाले !

एक तरफ देश के मेट्रो सिटीज और महानगर जहाँ अमीर, मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उनको बड़े-बड़े सरकारी या प्राइवेट स्कूलों में पढाते हैं। वहीँ इस देश के पिछड़े हुए कईं गाँव जहाँ पढाई के नाम पर न तो कोई स्कूल और न ही कोई पढाने वाले टीचर। ऐसे गाँवों के बच्चे अक्सर शहरों के बच्चों से पिछड़े रह जाते हैं और देश का एक तबका ऐसा भी है जोकि बच्चों को सुविधाएं होते हुए भी जानबूझ कर पढाई से दूर रखना चाहते हैं क्योंकि उनका सोचना यह है कि बच्चे पैदा करके उनसे मजदूरी कराना या अन्य काम करवाना ही उनके लिए बेहतर है जिसके जरिये उन्हें पैसे मिल सकें। इस लालच के चक्कर में वे यह भूल जाते हैं कि यही बच्चे पढ़- लिख कर उनका और अपना भविष्य संवार सकते हैं। ऐसी ही कहानी है उत्तर प्रदेश के दो गांवों देवरिया और शाहाबाद की।
इस कहानी के हीरो या ऐसे टीचर जिन्होंने इन गावों के बच्चों के भविष्य सवारने की कई कड़ी चुनोतियों का सामना किया जिनका नाम है अवनीश यादव और मुनीश कुमार।

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अवनीश यादव जिला गाजीपुर के बभनोली निवासी जो 2009 में देवरिया के गौरी बाजार के प्राइमरी स्कूल में बतौर टीचर गए तो वहां स्कूल में मजार ये था कि सिर्फ नाममात्र बच्चे ही पढ़ने आया करते थे। इसे देखते अवनीश ने गाँव में लोगों के घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजने की विनती की लेकिन गरीब मजदूरों की सख्या काफी ज्यादा थी तो उन्हें काफी जोर मशक्कत करनी पड़ी। आखिर में उनकी मेहनत रंग लाई और मजदूरों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। अवनीश ने इन बच्चों पर दिन-रात एक करके इतनी मेहनत की कि बड़े शहरों के कान्वेंट स्कूल के बच्चे भी इनका मुकाबला न कर पाएं। अवनीश से पढ़े हुए बच्चों को इंटरनेशनल राजनीति से लेकर ओलम्पिक खेलों तक हर चीज़ की जानकारी है। ६ सालों में अवनीश ने गाँव की तस्वीर बदल कर रख दी और कई पुरस्कार पाए। गांव के लोग भी अवनीश को अपने बेटे की तरह मानने लगे। अब अवनीश का ट्रांसफर हो गया तो पूरा गाँव आंसू की नदियाँ बहा रहा है मानों बच्चों को ऐसा टीचर और गाँव वालों को ऐसा बीटा कभी नहीं मिलेगा। स्कूल के बच्चे क्या अवनीश भी खूब रोये, मजदूर भी रोये, किसान भी रोये।

दूसरी तरफ बिलकुल ऐसी ही कहानी है मुनीश कुमार की भी है जो शाहबाद के प्राइमरी स्कूल की जहाँ मुनीश को पहले असिस्टेंट टीचर के तौर पर लाया गया और फिर प्रधान अध्यापक बना दिया गया। मुनीश ने अपनी मेहनत के बलबूते इस स्कूल को जिले के सर्वश्रेष्ट स्कूल में बदल दिया। जब मुनीश का ट्रांसफर हुआ तो पूरा गाँव फूट फूट कर रोने लगा ,गाँव वालों का कहना था कि अब हम ऐसा टीचर दुबारा कभी मिल पायेगा ऐसा सोचकर भी हमें डर लग रहा है। मुनीश के बारे में बात करते हुए गाँव वालों का कहना है कि मुनीश ने हमारे बच्चों को ही नहीं हमारी जिंदगी को बदल दिया।