जब नास्तिकों ने करवायी थीं बेगुनाह आस्तिकों की हत्याएं ..

आजकल के दौर में जबकि लोग मुस्लिम आतंकवाद और ब्राह्मणवाद जैसी बातों को सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे सिर्फ़ धार्मिक लोग ही कट्टर होते हैं. कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो कम समझ होने के नाते सोचते हैं कि इस्लाम ही के मानने वाले लोग आतंकवादी होते हैं. बड़ा ही सधा हुआ सा बयान इस्लाम-विरोधी समूह की तरफ़ से सुनने को आता है कि “सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन सारे आतंकवादी मुसलमान ही होते हैं”. असल में कुछ लोग तो इतिहास से नावाकिफ होते हैं और कुछ लोग दुनिया में सिर्फ़ अफ़वाह फैलाने के मक़सद से ही होते हैं लेकिन दोनों ही क़िस्सों में उनकी जानकारी घटिया और बेतुकी होती है क्यूंकि लगभग हर धर्म का नाता कभी ना कभी आतंकवाद से जोड़ा गया है. आरएसएस का सदस्य रहे आतंकवादी नाथूराम गोडसे हिन्दू था, इसी तरह 1980 के दौर में सिख आतंकवाद चला, यहूदी आतंकवाद का सामना बहुत पहले तुर्की ने किया था और आजतक इजराइल जैसे मुल्क इसे बढ़ावा देते आये हैं. ऐसा भी नहीं है कि आज कल के दौर में सिर्फ़ एक ही धर्म के लोग आतंकवाद फैला रहे हैं, हाँ ये ज़रूर है कि बदनाम सिर्फ़ एक ही धर्म के लोग हो रहे हैं.

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बहरहाल मैं आज जो बात कहना चाहता हूँ वो असल में उन नास्तिक लोगों के लिए हैं जो फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर बांग्लादेश और दूसरी जगह हुए आतंकवादी हमलों को लेकर इस्लाम को बुरा कह रहे हैं. तार्किक आधार पर कोई भी बहस मुमकिन है लेकिन लांछन और कीचड उछालने वाली तकनीक अच्छी बात नहीं है, कम अज़ कम उन लोगों के लिए जो ख़ुद को ज़्यादा पढ़ा लिखा समझते हैं. सिर्फ़ मुसलमानों ही के लिए नहीं बल्कि ये हिन्दू और दूसरे मज़ाहिब को भी बदनाम कर रहे हैं. नास्तिक समूह इस तरह से बातें कर रहा है मानो कभी नास्तिकों ने चींटी ही नहीं मारी हो, असल में ये जो मॉडर्न आतंकवाद है इसमें नास्तिकों ने भी अपनी पूरी भूमिका निभायी है. फ़्रांसिसी क्रान्ति के जज़्बे को हड़प लेने वाले नास्तिकों ने चर्च के लोगों पर उस दौर में तमाम अत्याचार किये, क्या ये किसी से छुपा है कि क्रान्ति के बाद “आतंक का शासन” आया था और रोब्बेस्पिएरे जैसे नेताओं ने लाखों लोगों को गिलोटिन कर के सर कलम कर दिया गया था, हज़ारों लोगों को भरे बाज़ार गोलियों की भेंट चढा दिया गया था. एक ही दिन में एक लाख लोगों को मार दिया गया था और फिर और लोगों को रोज़ दर रोज़.. क्या ये किसी हक़ीक़त से अलग है कि “नेशनल रेजर” जैसे शब्द डिक्शनरी में उसी ज़माने में शामिल किये गए थे. वो दौर एक ऐसा दौर था जिसकी कल्पना करना भी भयानक है.फ्रांस के लोगों पर नास्तिक लोगों ने जो क़हर बरपाया वो निहायत ही बर्बर था. फिर भी नास्तिक विचारधारा का इसमें दोष कम था, इसमें तो इंसानी वर्चस्व की लड़ाई की बात थी. एक ही रोज़ में एक लाख लोग मार दिए गए, ना जाने कितने मासूम लोग नास्तिक लोगों की बलि चढ़ गए.
ऐसा नहीं है कि ये एकमात्र ऐसा मौक़ा था इसके बाद भी अक्सर नास्तिक लोग ऐसी गतिविधियों में शामिल रहे, “नाइलीस्ट” लोगों ने रूस में जो आतंक मचाया वो इतिहास की किताबों में बाक़ायदा दर्ज है. एलेग्जेंडर 2 की हत्या करने वाले ये “नाइलीस्ट” लोग अक्सर आम जगहों पर बम फ़ेंक दिया करते थे. 20वीं शताब्दी में नास्तिकों के आतंक ने जो क़हर बरपाया वो आज के धार्मिक आतंक से भी भयावह था और ऐसा भी नहीं है कि आज की सोसाइटी में नास्तिक आतंक बिलकुल समाप्त हो चुका है, दुनिया के कई हिस्सों में मिलिटेंट संस्था नास्तिक भी चला रहे हैं. कट्टरता के मामले में ये भी किसी से पीछे नहीं हैं. मेरा कहना सिर्फ़ इतना है कि जो भी ग़लत होता है उसके पीछे मज़हब नहीं बल्कि उसका दिमाग़ी पागलपन होता है, ना ही इस्लाम में किसी की जान लेने को कहा गया है और ना ही मुसलमान अपने बच्चों को ऐसा सिखाते हैं. मज़हबी किताबों में कुछ ग़लत लिखा होता ऐसा लिखा होता, तो हम भी तो पढ़ते ना.., कौन सी मसखरी करते हैं लोग फेसबुक और ट्विटर पे.. क्या ही कहें.
मुझे पूरा यक़ीन है कि किसी भी धर्म के सच्चे मानने वाले किसी को नुक़सान पहुंचाने की सीख नहीं देते होंगे और ये जो लोग आतंक फैला रहे हैं धर्म के नाम पर इनको तो धर्म से बेदख़ल माना जाना चाहिए.
ऐसा नहीं है कि मैं नास्तिक विचारधारा को कुछ कह रहा हूँ, मुझे किसी विचारधारा से कोई परहेज़ नहीं है लेकिन इस्लाम या किसी और धर्म के बारे में उलटी सीधी बात करना बिलकुल सही नहीं है और प्लीज़ अपने को पढ़ा लिखा समझो दूसरे को अनपढ़ नहीं.
मैं आतंकवाद का पुरज़ोर विरोध करता हूँ, हर क़िस्म के आतंकवाद का चाहे वो पेरिस का हो, पेशावर का, मुंबई का, सीरिया का, इराक का, या ढाका का, या फिर और कहीं का. अल्लाह उन लोगों के परिवार को हौसला दे जिनकी जान ढाका में या कहीं और हुए आतंकी हमले में गयी है.

(अरग़वान रब्बही)
(लेखक के विचार निजी हैं)