जब पैसों के लिए ‘प्रधानमंत्री’ ने किया था प्लेन हाईजैक

हिंदुस्तान का अपने पड़ोसी देश नेपाल के साथ हमेशा से एक अच्छा रिश्ता रहा है इसी रिश्ते की बदौलत दोनों देशों के लोगों को एक दूसरे के देश में आने-जाने और रहने की पूरी आज़ादी है।

आज सुबह ही नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके सुशील कोइराला की मौत के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्र्पति प्रणब मुखर्जी ने गहरा अफ़सोस जाहिर किया है और यह भी कहा है कि देश ने एक बेहतरीन दोस्त गंवा दिया है।

हालांकि ऐसे बयानों की सच्चाई को अगर जानने बैठें तो शायद ऐसे बयान शायद आपको महज फॉर्मेलिटी के इलावा ज़्यादा कुछ न लगें। लेकिन अगर सुशील कोइराला की ज़िन्दगी पर नज़र डालें तो हमें एक ऐसी शख्शियत दिखाई देगी जिसने नेपाल की राजनीति को आज के इस मुकाम तक लाने के लिए काफी कोशिशें की हैं।

सुशील कोइराला का जन्म साल 1939 में भारत के बनारस में हुआ था। राजनीति में सुशील का झुकाव शुरू से ही था लेकिन राजनीति में उनके कदम 1954 में पड़े जब नेपाली कांग्रेस के काम से प्रभावित होकर उन्होंने कांग्रेस के साथ काम करना शुरू किया।

देश में लोकतंत्र लाने के हक़ में लगातार काम करने वाली नेपाली कांग्रेस को उस वक़्त परेशानियों का सामना करना पड़ा जब नेपाल के राजा महेंद्र ने देश की भागदौड़ अपने हाथ में लेने और देश से लोकतंत्र को जड़ से खत्म करने के लिए देश में पंचायती राज को बढ़ावा देकर राजनितिक पार्टियों की देश में हिस्सेदारी खत्म करने की चाल चली; राजा महेंद्र के काले कानूनों के चलते देश के प्रधानमंत्री बी.पी. कोइराला समेत कांग्रेस के कई नेता जेलों में डाल दिए गए थे लेकिन कुछ नेता जिनमें सुशील कोइराला भी एक थे ने हिन्दुस्तान में राजनितिक शरण ले ली और पार्टी के लिए काम करना जारी रखा।

राजा महेंद्र ने नेपाल में तो राजनितिक पार्टियों को बन कर दिया था लेकिन सुशील कोइराला ने राजा के जूते तले कुचली जा चुकी लोकतंत्र की जड़ को ज़िंदा रखने के लिए सींचना जारी रखा। कभी दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर तो कभी सिर्फ कांग्रेस के लोगों को साथ लेकर; सुशील कोइराला ने जान लगा दी पार्टी को मजबूत करने के लिए।

पार्टी को मजबूत करने और देश में लोकतंत्र की बहाली की इसी कोशिश में सुशील ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक ऐसे काम को अंजाम दिया जिसकी वजह से उनका नाम देश के इतिहास के काले पन्नों में भी दर्ज हो गया।

1960 के दशक में देश की जेलों में डाल दिए और देश से निकाल दिए जाने के बाद भी देश और वहां के अवाम के लिए काम करने की चाहत रखने वाले नेपाली कांग्रेस के चंद लोगों ने देश के लिए लड़े जाने वाली लड़ाई को अलग तरीके से लड़ने का फैसला किया। पार्टी के वर्करों की राय के मुताबिक आंदोलनों से उन्हें वह मुकाम नहीं हासिल हो रहा था जिस पर पहुंच कर वो राजा के पंचायती सिस्टम को जड़ से खत्म कर सकें। लिहाजा 1970 के दशक में पार्टी ने फैसला लिया हथियारों की मदद लेने का ताकि राजा पर दवाब बनाया जा सके।

हथियारों के लिए जरुरत थी पैसों की जो कि मौजूदा हालातों में पार्टी के लिए जुटाना मुश्किल था। ऐसे में फैसला लिया गया एक प्लेन हाईजैक का ताकि आंदोलन के लिए पैसा जमा किया जाए और देश में लोकतंत्र फिर से कायम किया जाए। पार्टी ने अपने देश के शाही बेड़े के ही एक हवाई जहाज़ को हाईजैक करने का फैसला किया जोकि शाही खजाने को देश में एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाने का काम करता था। प्लान के मुताबिक बिराटनगर से काठमांडू जाने वाले एक जहाज़ में पार्टी के दो वर्कर चुप कर सवार होने में कामयाब हो गये और टेकऑफ के महज पांच मिनट के अंदर हाईजैक कर लिया।

जहाज़ को काठमांडू की जगह बिहार के फोर्बेसगंज इलाके के घास के मैदानों में उतारा गया जहाँ पर मौजूद सुशील कोइराला और उनके साथियों ने जहाज़ पर मौजूद सारा पैसा (करीब 30 लाख भारतीय रूपये) लूट लिया और तीन गाड़ियों में लादकर वहां से फरार हो गए।

कुछ महीनों तक किसी को भी इन हिजैकर्स की कोई खबर न लगी लेकिन भारत की खुफिआ एजेंसियों ने साल के अंदर ही हिजैकर्स को पकड़ कर जेल में बंद कर दिया और 1975 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद जमानत पर छोड़ दिया।

हाईजैक की यह घटना नेपाल के इतिहास की पहली हाईजैक की घटना थी। हालाँकि कुछ लोग सुशील कोइराला को एक गुंडे की नज़र से देखते थे लेकिन दुनिया उन्हें एक बदलाव लाने वाले महान नेता के तौर पर देखता और सलाम करता है।