देश के कट्टरपंथी नेता चाहे देश के लोगों को हरे या भगवें रंग में बांटने का कोई भी मौक़ा न छोड़ते हों लेकिन देश के लोगों खासकर जिन्हें पाकिस्तान चले जाओ कहा जाता रहा है के अंदर अपने देश और लोगों को लेकर जो प्यार है उसे लफ़्ज़ों में ब्यान करने बैठें तो शायद सदियाँ गुज़र जाएँ। देश के इन लोगों को अगर मुसलमान,मोहम्मदन या ऐसे किसी नाम से पुकारा जाए तो यह उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी होगी क्यूंकि वो शख्श खुद को किसी मजहब का मानने से पहले इस देश का नागरिक मानता है और गर्व से कहता है कि मैं भारतीय हूँ।
मजहबों की दीवारों को लांघती ऐसी ही एक मिसाल सामने आई महाराष्ट्र के मलाड में जहाँ लोगों के घरों में काम कर अपना पेट पालने वाली एक अकेली हिन्दू औरत सखुबाई की मौत हो जाने पर उसके मुस्लिम पड़ोस ने पूरे हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक सखुबाई की अर्थी को कन्धा और चिता को आग दी।
ज्यादातर मुस्लिम परिवारों की रिहायश वाले इस इलाके में रहने वाले लोगों के मुताबिक सखुबाई और उनके पति ने इस इलाके में १९६२ में रहना शुरू किया था। इस दम्पति की कोई भी औलाद या रिश्तेदार नहीं थे। कुछ अर्सा पहले जब सखुबाई के पति की मौत हो गई तो सखुबाई ने लोगों के घरों में काम कर अपना पेट पालना जारी रखा। पिछले दिनों सखुबाई के अचानक बीमार पड़ने पर उनके पड़ोसी जावेद शाह, युसूफ बंदूकवाला और मुस्तफा खान उन्हें गोरेगांव के एक हॉस्पिटल में लेगए और वहां उनका इलाज करवाना शुरू किया लेकिन सखुबाई बचा न सकी।
उनके मरने के बाद उन्हें घर लेकर आये उनके इन्ही पड़ोसियों ने बिना किसी मजहबी सोच को सामने लाते हुए सखुबाई को उनके हिन्दू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक रिवाज़ अदा कर अर्थी को कन्धा दिया और शमशान में भी सभी रिवाज़ों को निभाया। मजहबी दूरियों को खत्म करने वाले ऐसे लोगों और उनको ऐसी समझ देने वाले मजहब को हम सलाम करते हैं।