जमहूरीयत का जश्न

हिंदूस्तान की 1.3 बिलीयन आबादी आज 63 वां यौम जमहूरीया एक ऐसे वक़्त मना रही है जब जमहूरीयत के नाम पर क़ायम सरकारी इदारे आम आदमी को मुख़्तलिफ़ उनवानात से हरासाँ कर रहे हैं। मज़दूर और ग़रीब अफ़राद की बात करने वालों को क़सूरवार ठहराकर इस पर सयासी इताब नाज़िल होता है। सब से ज़्यादा बुरा हश्र इस मुल़्क की अक़ल्लीयत का है जिस पर तरह तरह के इल्ज़ामात आइद होते रहते हैं।

मुस्लमानों को इस जमहूरी मुल्क में ज़िंदा रहने के लिए सयासी नफ़रत और तंगनज़री पर मबनी मुहिम का शिकार होकर भी चुप रहना पड़ता है । दुनिया की सब से बड़ी जमहूरीयत वाले जमहूरी हिंदूस्तान में कसीर उल-वजूद मुख़्तलिफ़ मज़ाहिब रंग-ओ-नसल की दौलत से मालामाल अवाम रहते हैं। सैंकड़ों ज़बानें बोलने वाले इंसानों के दरमयान प्यार-ओ-मुहब्बत और भाई चारगी पाई जाती है इस के बावजूद ये कौमें तरक़्क़ी के समरात से इस लिए महरूम हैं क्यों कि उन्हें सयासी ख़ानों में बांट कर रख दिया गया है।

सैक्यूलर रूह के साथ हर साल अपनी जमहूरीयत का जश्न मनाने वाले हिंदूस्तान में फिर्कापरस्त ताक़तें दस्तूर हिंद की धज्जियां उड़ाते हुए अक़ल्लीयतों ख़ासकर मुस्लमानों को ज़हनी और जिस्मानी तौर पर अज़ीयत देने, उन की दिल आज़ारी करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखते। जयपुर फेस्टीवल के ज़रीया मलाऊन मुसन्निफ़ सलमान रुशदी को मदऊ करके मुस्लमानों की दिल आज़ारी की कोशिश की गई लेकिन सैक्यूलर किरदार के हामिल हिंदूस्तान में बाअज़ हस्सास किस्म के अदीबों और इंसानों ने इस मलऊन रुशदी को हिंदूस्तान आने से रोक दिया बल्कि इस के वीडीयो ख़िताब को भी नाकाम बना दिया।

26 जनवरी का दिन इस मुल्क के दस्तूर की तदवीन का शानदार दिन है जिस में हिंदूस्तानी अवाम के जमहूरी हुक़ूक़ की पासदारी की गई है हर साल अवाम ज़ात पात, नसल, ज़बान या मज़हब से बालातर होकर हिंदूस्तानी शहरी की तरह जश्न मनाते हैं। 26 जनवरी 1950 -ए-को दस्तूर हिंद नाफ़िज़ उल-अमल हुआ था और हिंदूस्तान एक मुक़तदिर आला मलिक और ताक़तवर जमहूरीयत बन कर उभरा था जिस के बाद इस मुल्क में ख़वातीन को भी मर्दों के मुसावी हुक़ूक़ हासिल हुए हिंदूस्तानी अवाम ने हर शोबा में अपनी सलाहीयतों का लोहा मनवाकर मलिक को दीगर तरक़्क़ी याफ़ता मुल्कों की सफ़ में खड़ा कर दिया है।

यहां के माहिरीन ने मुल्क-ओ-बैरून-ए-मुल्क अपनी ख़ूबीयों के ज़रीया नाम कमाया है। हाल ही में मुनाक़िदा पर दासी भारतीय दीवस के मौक़ा पर वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने ये एतराफ़ किया था कि हिंदूस्तानी अवाम जहां भी होते हैं वो अपनी ख़ूबीयों और सलाहीयतों के ज़रीया मलिक का नाम रोशन करते हैं।

बिलाशुबा ग़ैर मुक़ीम हिंदूस्तानियों की एक कसीर तादाद की वजह से आज हिंदूस्तान को ज़र-ए-मुबादला के तौर पर करोड़ों रुपय वसूल हो रहे हैं एक अंदाज़ा के मुताबिक़ ग़ैर मुक़ीम हिंदूस्तानियों की वजह से हिंदूस्तान को 58 बिलीयन डालर का ज़र-ए-मुबादला हासिल होता है। हिंदूस्तानियों के लिए साल 2011पर कशिश नहीं रहा। इस साल महंगाई और इफ़रात-ए-ज़र ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है इस के बाद साल 2012 के ताल्लुक़ से भी यही आसार पाए जाते हैं कि आलमी मआशी कसाद बाज़ारी या यूरोज़ोन के मसला के बाइस हिंदूस्तान की मईशत भी मुतज़लज़ल रहेगी ताहम हिंदूस्तानियों ने अपनी ज़िम्मेदारीयों को महसूस करते हुए क़ौमी शरह तरक़्क़ी को बेहतर बनाने का अह्द किया है मगर हुकूमत की नाक़िस कारकर्दगी, रिश्वत सतानी के वाक़ियात पर क़ाबू पाने में नाकामी ने सरकारी ख़ज़ाना को अबतर बना दिया दर हक़ीक़त मुल्क में सरकारी निज़ाम की अबतरी की वजह से ही सरकारी ख़ज़ाना को मिलने वाला मालिया रुक गया है।

सेंटर्ल एक्साइज़ को हासिल होने वाला कुलक्षण गुज़श्ता साल नवंबर तक 6.5 फ़ीसद तक गिर गया था अगर क़ौमी सतह पर हर इदारा को हासिल होने वाला टैक्स और मालिया मैं बतदरीज कमी आई तो तरक़्क़ी के इमकानात मौहूम होते हैं। रिश्वतखोरी ने सरकारी ख़ज़ाना को ख़ाली करदिया है जब ख़ज़ाना ख़ाली होतो इस के लिए ज़िम्मेदार हुकूमत अवाम की फ़लाह-ओ-बहबूद बेहतर नज़म-ओ-नसक़ फ़राहम करने में किस तरह कामयाब होगी यही वजह है कि यू पी ए हुकूमत के दूसरे दौर में अवाम को बदतरीन तजुर्बात से दो-चार होना पड़ रहा है।

मुनासिब सड़कें, बर्क़ी की बेहतर सरबराही, रेलवेज़ पर प्रोजेक्टस की वक़्त पर तकमील जैसे इंफ्रास्ट्रकचर का काम ठप होकर रह गए हैं। मुल्क में तरक़्क़ीयाती काम हूँ तो इस से ग़रीबों को रोज़गार मिलता है और उन्हें एक बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के मौक़े हासिल होते हैं। जमहूरी ज़िंदगी के 63 बरस बाद भी हिंदूस्तान के सैंकड़ों बल्कि हज़ारों मवाज़आत बर्क़ी से महरूम हैं और जहां बर्क़ी है वहां मुनासिब सरबराही नहीं है।

मुल्क की अहम सनअतें जैसे तवानाई, लोहा, कोयला, पैट्रोलीयम, बर्क़ी, समनट, क़ुदरती गैस और तेल की पैदावार बतदरीज घट रही है। जब मुल़्क की मईशत घुटने लगती है तो इस का रास्त असर ग़रीबों पर होता है इस लिए मुल्क में 800 मिलीयन हिंदूस्तानी ख़त ग़ुर्बत से नीचे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं।

इस पर सितम ज़रीफ़ी ये है कि आबादी में 2.8 फ़ीसद के हिसाब से इज़ाफ़ा हो रहा है। इस लिए इन अफ़राद के लिए यौम जमहूरीया का जश्न सिर्फ एक तारीख़ी वाक़िया से हट कर कुछ नहीं होता। हुकूमत जब अपने अवाम को बेहतर ज़िंदगी फ़राहम करने में नाकाम हो। रिश्वत के ख़ातमा केलिए एक मज़बूत लोक पाल बिल लाना नहीं चाहती तो वो समाजी तबदीली लाने की पालिसीयों को रूबा अमल लाने में भी कामयाब नहीं हो सकेगी।

ज़िंदगी के हर शोबा में रिश्वत ने इस मुल़्क की अख़लाक़ी और समाजी फ़िज़ा को मुकद्दर करदिया है। इस लिए मुआशरा का हर फ़र्द एक ख़ारदार ख़ुशक झाड़ीयों से भरी ज़िंदगी से दो-चार है। क़ौमी और इलाक़ाई सतह पर सयासी पार्टीयों की कसीर तादाद पाई जाती है मगर दियानतदारी के फ़ुक़दान ने सयासी, समाजी ज़िंदगी को ग़ैर संजीदा बना दिया है। वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने अज़ ख़ुद एतराफ़ किया है कि मुल्क के बच्चे तग़ज़िया की कमी का शिकार हैं तो ग़ौर कीजिए कि इस मुल्क के मुस्तक़बिल की नसल आने वाले दिनों में जमहूरीयत का जश्न किस तरह मनाएगी।