जमात-ए-इस्लामी हिंद ने जताई सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता

दिल्ली: जमात-ए-इस्लामी हिंद (JIH) ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चिंता जताई है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वोट मांगने के लिए धर्म और जाति के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध लगाया है। जमात-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि इस फैसले का राजनीतिक दलों द्वारा गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।

2 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि धर्म, मूलवंश, जाति, समुदाय या भाषा के चुनावों में दुरुपयोग के लिए अनुमति नहीं दी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर निर्वाचित प्रतिनिधि ने इन आधारों पर वोट की मांग की होगी तो उसके चुनाव को रद्द माना जायेगा।

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने कहा कि इस निर्णय में यह साफ़ नहीं किया गया है कि उन जातियों या सम्प्रदायों, जिन्होंने उत्पीड़न और अन्याय सहा है उनकी आवाज़ चुनाव में कैसे उठाई जा सकती है।

“निर्णय में यह भी नहीं बताया गया है कि विशेष धार्मिक समुदायों के उत्थान के बारे में वैध शिकायतों को चुनाव के दौरान संबोधित किया जा सकता है,” मौलाना ने पत्रकारों से कहा।

“इसकी प्रबल सम्भावना है कि कुछ पार्टियाँ मतदाताओं से हिंदुत्व के बुनियाद पर सांप्रदायिक अपील कर सकती हैं, और वे इसका फायदा यह कह कर उठा सकते हैं कि हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है बस एक ज़िन्दगी जीने का तरीका है,” मौलाना ने कहा।

दिसंबर 1995 में, एक तीन जज की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि हिंदू धर्म के नाम पर वोट मांगना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के तहत एक भ्रष्ट आचरण नहीं था।

“अगर उनका तर्क अदालतों द्वारा स्वीकार किया जाता है तो यह हमारे बहुलवादी राजनीति को काफी नुकसान पहुंचाएगा और बहुसंख्यकवाद के लिए रास्ता साफ़ करेगा।”

जमात-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि उन्हें उम्मीद है की न्यायपालिका उनकी आशंकाओं को संबोधित करेगी और इस निर्णय को अक्षरशः लागू करेगी। न्यायपालिका यह भी सुनिश्चित करेगी की चुनाव पूरी तरह मुद्दों और विचारधारा पर लड़ा जाए।