सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निरिविरोध होने पर भारी हैरत जताते हुए कहा है कि इससे साफ है कि राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र काम नहीं कर रहा है।
बीती मई में हुए पंचायत चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों की निर्विरोध जीत पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी ने पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निर्विरोध रहने पर अदालत की टिप्पणी राज्य की ममता बनर्जी सरकार के लिए करारा झटका है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अदालत की टिप्पणी और इस केस में होने वाले फैसले का दूरगामी असर हो सकता है।
ध्यान रहे कि पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में चार दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए थे। विपक्षी राजनीतिक दलों ने तृणमूल कांग्रेस पर आतंक व हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि इसी वजह से हजारों उम्मीदवार नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर सके थे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में एक-तिहाई से ज्यादा सीटों पर फैसला निरिविरोध होने पर भारी हैरत जताते हुए कहा है कि इससे साफ है कि राज्य में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र काम नहीं कर रहा है।
मुख्य न्यायाधीश मिश्र ने कहा, “कुछ सौ सीटों पर निर्विरोध जीत की बात तो समझ में आती है। लेकिन इतनी भारी तादाद में सीटों पर फैसला निर्विरोध होने का आंकड़ा हैरान करने वाला है।” खंडपीठ का कहना था कि अदालत जमीनी हकीकत से उदासीन नहीं रह सकती।
इससे पहले राज्य चुनाव आयोग के वकील अमरेंद्र शरण ने दलील दी थी कि पंचायत चुनावों की प्रक्रिया संपन्न हो जाने की वजह से अब इस मामले में अदालत की कोई भूमिका नहीं बचती है।
सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की वकील कल्याण बनर्जी ने भी दलील दी कि बंगाल में पंचायत चुनावों में निर्विरोध जीत का लंबा इतिहास रहा है। लेकिन अदालत का कहना था कि किसी भी चुनाव में निर्विरोध सीटों की इतनी भारी तादाद हैरतअंगेज है।
अदालत ने राज्य चुनाव आयोग को चौबीस घंटे के भीतर निर्विरोध सीटों के सिलसिलेवार ब्योरा देते हुए हलफनामा दायर करने को कहा है।