मध्य प्रदेश: सुप्रीम कोर्ट ने कहा “जमीन के बदले कैश नहीं चलेगा”

स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

सरदार सरोवर परियोजना के भूमिहीन पीड़ितों की व्यथा को समझते हुए सर्वोच्च न्यालय ने मंगलवार को कहा की इन किसानों के लिए ज़मीन के बदले पैसा नहीं चलेंगे । इन सभी किसान, जिन्होंने इस परियोजना के कारण अपनी उपजाऊ ज़मीने खो दी हैं उनके लिए “परीक्षात्मक रूप से” पैसा नहीं चलेगा ।

हम आज ही बता रहे हैं की, ज़मीन के बदले पैसा “परीक्षात्मक रूप से” नहीं चलेगा। यह स्वीकार्य नहीं है”, देश के मुख्य न्यायधीश जे.स.खेहर ने तीन न्यायधीशों की एक बैंच का नेतृव करते हुए मध्य प्रदेश के नर्मदा अधिकारियों और वकील से कहा ।

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वकील संजय पारीख ने पूछा की जिन किसानों से उनकी उपजाऊ ज़मीन ले ली गयी है वे सारी ज़िन्दगी क्यों पीड़ित रहे? इन किसानों को ज़मीन के बदले ज़मीन मिलनी चाहिए।

श्री पारीख ने कहा की “किसानों के पास न तो ज़मीन है न ही आजीविका कमाने का कोई जरिया वो भी तब जब सर्वोच्च न्यायलय के बाध्यकारी आदेश हैं जो इन किसानों को भूमि का अधिकार देता है” ।

मुख्य न्यायधीश खेहर मंगलवार को याचिका सुनना चाहते थे परूंतु सरकारी अधिकारियो द्वारा अपनी तैयारी करने के लिए कुछ समय मांगने के बाद उन्होंने सुनवाई १९ जनवरी तक स्तगित कर दी ।

इससे पहले, सर्वोच्च न्यायलय ने मध्य प्रदेश सरकार और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा दायर किये गए एक आवेदन को ख़ारिज कर दिया था जिसमे उन्होंने २००० और २००५ के सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय जिसमे सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित किसानों के वयस्क बेटों के लिए भूमि का अधिकार कायम किया गया था उससे संशाधित करने का निवेदन किया था।

सर्वोच्च न्यायलय के सामाजिक न्याय बेंच का नेतृत्व कर रहे न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने कहा था “राज्य ने यह आवेदन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के कई वर्षो बाद दायर किया है”।

श्री पारीख ने यह प्रस्तुत किया था कि नर्मदा ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, सभी वयस्क पुत्रों को निर्विवाद रूप से पांच एकड़ कृषि और सिंचाई योग्य भूमि मिलनी चाहिए ,और विस्थापितों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।