जयपुर महोत्सव में तसलीमा नसरीन के शामिल होने पर मुस्लिम संगठनो ने किया विरोध

जयपुर : सोमवार को जयपुर साहित्य महोत्सव (JLF) य 2017 के आयोजन स्थल के बाहर सैंकड़ो मुसलमानों ने आयोजन में विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के शामिल होने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया |  तसलीमा नसरीन को अपने विवादित उपन्यास  “लज्जा” के लिए 1994 के बाद से निर्वासन झेलने के बाद मुस्लिम जगत के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है |

तसलीमा ने जेएलएफ़ में  ‘निर्वासन’ शीर्षक से एक सत्र में बोलते हुए फिर से  विवादास्पद टिप्पणी की | उन्होंने कहा कि भारत में तत्काल एक समान नागरिक कानून लागू करने की ज़रुरत है जिसका  मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों ने हमेशा विरोध किया है| उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम की आलोचना के ज़रिये ही इस्लामी देशों में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना की जा सकती है |आयोजन में ‘निर्वासन’ सत्र में बोलने के लिए किसी भी वक्ता के नाम का उल्लेख नहीं किया गया था | ऐसा शायद विरोध प्रदर्शन से बचने के लिए किया गया था |

आयोजन स्थल के बाहर राजस्थान मुस्लिम फोरम के संयोजक कारी मोइनुद्दीन के नेतृत्व में विभिन्न मुस्लिम संगठन विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए | जमात-ए-इस्लामी हिंद के राज्य सचिव नज़ीमुद्दीन ने कहा कि तसलीमा नसरीन ने इस्लाम मज़हब और पैगंबर मुहम्मद (स०) की शान में गुस्ताखी की है| उन्होंने कहा कि आयोजकों ने जानबूझ कर अपने कार्यक्रम में उनके नाम का उल्लेख नहीं किया था और पुलिस ने भी इसका समर्थन किया है | इसलिए हमारे पास विरोध करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था | कार्यक्रम के आयोजकों ने प्रदर्शनकारियों के साथ बैठक कर इस बात का आश्वासन दिया कि वे भविष्य में सलमान रुश्दी और तसलीमा नसरीन को जयपुर साहित्य महोत्सव के लिए आमंत्रित नहीं करेंगे |

पश्चिम बंगाल में रह रही तसलीमा नसरीन को 2007 में राज्य सरकार ने राज्य छोड़ने के लिए कहा था | उसके बाद वे जयपुर आ गयीं थी लेकिन  शहर में अल्पसंख्यकों के विरोध के बाद उन्हें ये शहर छोड़ना पड़ा था |नसरीन को शिखा होटल में 30 पुलिसकर्मियों की चौबीसों घंटे की सुरक्षा में रखा गया था | जिसके बाद वह दिल्ली चली गयीं थी और वहां से स्वीडन जाने के बाद कुछ सालों तक वहीं रही थीं |

जयपुर में आयोजित होने वाले साहित्य महोत्सव में दुनियाभर के साहित्यकार भाग लेते हैं|  सबसे पहले साल 2006 में जयपुर साहित्य महोत्सव का आयोजन किया गया|  उस समय महोत्सव प्रतिभागियों की संख्या 2500 थी|  इस साहित्‍य महोत्‍सव में दुनिया भर के बुकर, पुलित्जर और नोबल पुरुस्कार विजेता भी भाग लेते हैं|  यही वजह है कि इसे साहित्य का महाकुम्भ भी कहा जाता है|