जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में जावेद अख्तर और गुलज़ार हिट हो गए

जयपुर, २४ जनवरी (पी टी आई) जयपुर लेटरेरी फेस्टिवल में जहां मलऊन मुसन्निफ़ सलमान रुशदी की शिरकत और अदम शिरकत के मौज़ू को लेकर बहस के कशीदा माहौल में जावेद अख़तर और गुलज़ार ने कशीदा माहौल को वाक़ातन गुलज़ार में तब्दील कर दिया जहां उन्होंने अपनी नज़मों और ग़ज़लों के ज़रीया सामीन को मस्हूर कर दिया ।

उन्होंने कहानी कहने के अंदाज़ पर भी रोशनी डाली। फेस्टिवल का चौथा रोज़ आज सामीन के लिए मुबारक साबित हुआ जहां गुलज़ार , जावेद अख़तर और प्रसून जोशी के नग़मे छाए रहे । इस मौक़ा पर गुलज़ार ने जावेद अख़तर की दूसरी किताब लावा का तज़किरा भी किया जो जावेद अख़तर के बेहतरीन कलाम पर मुश्तमिल है ।

गुलज़ार ने लावा नामी इस किताब को मुतआरिफ़ करने के बाद इसी किताब का एक मंजूम हिस्सा पढ़ कर सुनाया जो इस तरह था मेरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है और मेरी चाल का मुंतज़िर है। दोनों कुहना मुश्क शारा-ए-ने कहानी कहने के अंदाज़ पर भी रोशनी डाली और तबादला ख़्याल करते हुए ये भी बताया कि आज कहानी कहने का तरीका कितना बदल चुका है ।

उन्हों ने ख़ुसूसी तौर पर हिन्दी फिल्मों की कहानियों का तज़किरा किया जिस में कहानी बराए नाम होती है । उन्हों ने कहा कि वो ये नहीं जानते कि एसा होना अच्छी अलामत है यह बुरी अलामत लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ कहानियों में हीरो का नज़रिया भी तब्दील हो रहा है ।

जावेद अख़तर ने कहा कि एक ज़माना वो था कि अपनी महबूबा के लिए यह उस की याद मैं ख़ुद को शराब के नशे में डुबो कर मर जाने वाला उस वक़्त के सिनेमा बीनों का हीरो ज़रूर हुआ करता था मगर वही देव दास आज की मौजूदा नसल का हीरो नहीं हो सकता ।

ये एक अलग बात है कि देव दास नामी फ़िल्म जब जब और जिस जिस ज़माने में बनाई गई वो कामयाब रही । के एल सहगल, दिलीप कुमार और शाहरुख ख़ान ने देवादास के रोल को ज़रूर लाज़वाल बनाया लेकिन इस के बावजूद भी ये कहना दरुस्त होगा कि महबूबा के लिए शराब पी कर ख़ुद को फ़ना कर देना दानिशमंदी नहीं है।