बेंगलुरु में एक खुसूसी अदालत की तरफ से तमिलनाडु की वज़ीर ए आला जयललिता को बदउनवानी (क्रपशन) के मामले में चार साल की सजा सुनाये जाने के बाद तमिलनाडु में मुख्तलिफ मुकामात पर उनके हामियों ने पथराव किया, आवामी प्रापर्टी को फूंक दिया, मीडिया मे मुलज़्मीन पर हमला किया और जबरदस्ती दुकानें बंद करवायी|
जब अन्नाद्रमुक लीडर को मुजरिम ठहराने का फैसला सुनाया गया तो एहतिजाज की शुरूआत द्रमुक चीफ एम करूणानिधि समेत अपोजिशन पार्टी के लीडरों भाजपा लीडर सुब्रह्मण्यम स्वामी के पुतले फूंके जाने से हुई| अदालत ने जयललिता को चार साल की जेल की सजा सुनायी और 100 करोड़ रूपये का जुर्माना भी लगाया| मुजरिम ठहराये जाने के कुछ घंटे बाद चेन्नई की सड़कों पर ज़्यादातर ज़ाती और आवामी गाड़ियों की आवाजाही बंद हो गयी| इसकी वजह से स्टूडेंट्स और दफ्तरजाने वाले अपनी जगहों पर फंसे गये| भीड़ ने दुकानों को जबरदस्ती बंद करवाया|
रियासत में कई जगह मुज़ाहिरा के दौरान तोड़फोड़ हुई जिससे दुकानों को नुकसान पहुंचा|पुलिस ने बताया कि जयललिता के रिहायश्गाह पाश गार्डन के नज़दीक टीवी चैनलों के मुलाज़िम पर हमला किया गया और उनके कैमरों को भी तबाह कर दिया गया|
रियासत के हेडक्वार्टर में मौसूल खबर के मुताबिक रियासत के मुख्तलिफ हिस्सों में तशद्दुद के सबब कई लोग जख्मी हो गये जबकि आवामी और ज़ाती इम्लाक समेत कई गाड़ियों को तबाह किया गया|
जयललिता एक दर्जन से ज्यादा मुकदमे लड़ चुकी हैं| इनमें से ज्यादातर मामलों में उन्हें बरी किया जा चुका है. जयललिता को 21 सितंबर 2001 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद वज़ीर ए आला के ओहदा से इस्तीफा देना पड़ा था| अदालत ने उस वक्त के गवर्नर एम फातिमा बीवी की तरफ से की गई जयललिता की तकर्रुरी इस वजह से रद्द कर दी थी क्योंकि उन्हें तानसी जमीन करार मामले में मुजरिम करार दिया गया था|
जयललिता को मुजरिम ठहराए जाने से नुमाइंदगी कानून के वे नियम लागू हुए थे जिससे किसी को इलेक्शन लड़ने के लिये नाअहल करार दिया जाता है|चेन्नई की एक अदालत की तरफ से 9 अक्तूबर 2000 को तानसी जमीन करार मामले में सुनाई गई सजा की वजह से जयललिता 2001 में इलेक्शन नहीं लड़ सकीं| हालांकि, इस मामले में बाद में उन्हें मद्रास हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था|
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2003 में जयललिता को बरी करने का हाई कोर्ट का फैसला बरकरार रखा था|चेन्नई की खुसूसीअदालत ने जया पब्लिकेशन मामले में जयललिता और उनकी दोस्त शशिकला को तीन साल जबकि शशि एंटरप्राइजेज मामले में दो साल जेल की सजा सुनाई थी|दोनों मामले तानसी जमीन करार से जुड़े थे|
इसके बाद जब 2001 विधानसभा इंतेखाबात में जयललिता ने अंदिपट्टी समेत चार विधानसभा हल्को से नामज़दगी दाखिल किया तो सभी को खारिज कर दिया गया|अन्नाद्रमुक ने इंतेखाबी तश्हीर के दौरान इसे बड़ा मुद्दा बनाया और वह उन 140 में से 132 सीटों पर फतह हुई जिन पर उसने इलेक्शन लड़ी|बाद में 14 मई 2001 को जब स वक्त की गवर्नर फातिमा बीवी ने जयललिता को वज़ीर ए आला का ओहदा दिया तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और अन्नाद्रमुक लीडर को ओहदा से इस्तीफा देना पड़ा|