जराइम के ख़िलाफ़ पार्लीमैंट में आवाज़

पार्लीमैंट में अवामी मसाइल पर बातचीत‌ करने केलिए अप्पोज़ीशन को मुकम्मल इख़तियार हासिल है । इस मर्तबा अप्पोज़ीशन के साथ हुकमरान पार्टी और दूसरे हलीफ़ पार्टीयों के अरकान को भी दार-उल-हकूमत दिल्ली में बढ़ते जराइम ख़ासकर ग़लत काम‌ के वाक़ियात पर आवाज़ उठाते हुए देखा गया ।

पार्लीमैंट के सरमाई सैशन में किसी ना किसी मौज़ू पर बातचीत‌ हुई हैं मगर उस वक़्त जो मौज़ू है वो दिल्ली के साथ साथ सारे मुल्क के लिए अहम है । ख़वातीन की बुराई के ग़ैर महफ़ूज़ होने का सुबूत‌ पेश करते हुए बड़ी अप्पोज़ीशन बी जे पी ने कई तजावीज़ पेश की हैं इन में से बी जे पी लीडर सुषमा स्वराज ने ज़ानी को सज़ाए मौत देने की पुरज़ोर वकालत की ।

ज़ना या बुरे काम‌ के वाक़ियात की मज़हब इस्लाम ने सख़्त सज़ाओं और गुनाहों का ख़ास तौर पर तवज्जा दिलाई है । ज़ानी को सख्त सज़ा देने का हुक्म इस्लाम में औरत के तक़द्दुस को एहमीयत देने का सबूत देता है आज जो क़ाइदीन ज़ानी को
सज़ाए मौत देने का मुतालिबा कररहे हैं इस का दरअसल 1400 साल पहले ही क़ुरआन मजीद में अल्लाह ताला ने अपने बंदों की फ़लाह बहबूद और ख़वातीन की बुराई के हिफाज़त‌ केलिए ज़ाहिरी तौर पर हिदायत दी हैं ।

इंसान अल्लाह ताला की नेअमतों और हिदायात के ताबे होता है इस का मुनकिर और ख़िलाफ़वरज़ी करने वाला गुनहगार है । ख़वातीन की इज़्ज़त‌ के बारे में इस्लामी तालीमात पर अमल किया जाये तो ये सारा मुआशरा पाकीज़गी का मज़हरो मुतह्हर होगा लेकिन जिन इंसानों ने कलाम इलाही को मुआशरती ज़िंदगी से दूर रखा इन में बुराईयां जड़ पकड़ने लगी हैं ।

दार‍उल‍ हुकूमत दिल्ली और मुलक के दीगर हिस्सों में आए दिन ख़वातीन की इस्मत रेज़ि और मुतास्सिरा लड़कीयों को इंसाफ़ केलिए अदालतों का दरवाज़ा खटखटाने के बीच‌ जो तवील क़ानूनी परेशानिय़ा होती हैं इस से आसानी से बच कर मुल्ज़िम ख़ुद को बरी-उल-ज़मा क़रार पालेते हैं ।

दिल्ली में पेश आया इजतिमाई इस्मत रेज़ि का वाक़िया ख़तरनाक‌ है इस पर सारा पार्लीमैंट एहतिजाज कररहा है लेकिन सवाल ये है कि सिर्फ़ पार्लीमैंट में अरकान के ग़म-ओ-ग़ुस्सा से इस तरह के वाक़ियात के तदारुक में मदद मिलेगी । कई अरकान ने सख़्त तरीन क़वानीन लाने की तजवीज़ रखी है । इस्मत रेज़ि सब से घिनावना और संगीन जुर्म है जिस में मुतास्सिरा को मुआशरा की बद निगाही और तानों के अलावा दीगर इस्तिहसाली हालात से गुज़रना पड़ता है ।

कई सूरतों में मुतास्सिरा ख़ुदकुशी भी करलेते हैं ता कि वो समाजी बदनामी से बच सके लेकिन इस के बावजूद ये मुआशरा मुतास्सिरा ख़ानदान को बुरी निगाहों से देखता है । इस तरह के ज्रुम‌ के मरतकबीन केलिए सख़्त क़ानून‌ में अब सज़ाए मौत का सख़्त तरीन क़ानून बनाने की भी गुंजाइश निकालने पर ज़ोर दिया जा रहा है । दार‍उलहुकूमत दिल्ली में ख़वातीन का ग़ैर महफ़ूज़ होना मुक़ामी और मर्कज़ी हुकूमत के सरबराहों केलिए अलमीया है ।

इस्लाम ने ज़ानी को सर-ए-आम संगसार करने की हिदायत दी है आज अवामुन्नास की बड़ी तादाद और सियासतदानों में से चंद एक ने सज़ाए मौत या बरसर-ए-आम सज़ा देने का मुतालिबा किया है ता कि आइन्दा कोई भी ऐसा घिनावनी हरकत करने की हिम्मत ना करसके । कई शहरीयों ने ज़ानी को अज़ीयत देने और इस के सर में बरसर-ए-आम गोलीयां मरने की भी तजवीज़ रखी है।

पार्लीमैंट में तक़रीबन अरकान ने दिल्ली में बढ़ते ज्रुम‌ को शर्मनाक क़रार दिया है इस से पहले भी ऐसे कितने वाक़ियात पर सियासतदानों और हुक्मराँ तबक़ो ने अफ़सोस का इज़हार किया था मगर क़ानून के इतलाक़ और पुलिस के रोल में कोताहियों के बाइस ज्रुम‌ का ग्राफ़ बढ़ता जा रहा है । पार्लीमैंट को इख़तियार है कि वो घिनाओने ज्रुम‌ को रोकने केलिए सख़्त क़ानून‌ बनाए लेकिन बाअज़ मुआमलों में पार्लीमैंट के इख़्तयारात को सयासी गोशों या इंसानी हुक़ूक़ की तंज़ीमोंने सल्ब करलिया है ।

अब हर एक को ये शिकायत है कि हमारा पुलिस निज़ाम नाकारा है अगर क़ानून को सख़्ती से नाफ़िज़ किया जाये तो ज्रुम‌ का ग्राफ़ कम होसकता है । पुलिस के रोल पर उंगलियां इस लिए उठती हैं क्योंकि ये महिकमा मुलक के अवाम के तहफ़्फ़ुज़ के बजाय VIP वी आई पी की रखवाली करता है । हिंदूस्तान में अवाम की ज़िंदगीयां और ख़वातीन की इज़्ज़त‌ इस लिए ग़ैर महफ़ूज़ है क्योंकि यहां की पुलिस वी आई पी , सियासतदानों और दीगर क़ौम दुश्मन ,शरपसंदों ,फ़िर्क़ा परस्तों के गैंगस केलिए काम करती है ।

दिल्ली में जराइम के मसले को बी जे पी ने पार्लीमैंट के अंदर परज़ोर तरीक़े से उठाया है तो उसे आख़िर तक जद्द-ओ-जहद करने की ज़रूरत है मगर कुछ देर केलिए ग़म-ओ-ग़ुस्सा करके फिर मामूल की सयासी ज़िंदगी जीने से मसाइल हल नहीं होसकते । पार्लीमैंट में मौजूद हर रुकन अवाम का नुमाइंदा होता है इस का फ़रीज़ा है कि वो अवाम के जां-ओ-माल ,इज़्ज़त और अज़मत के हिफाज़त‌ केलिए सरकारी सिस्टम और पुलिस के रोल को मज़बूत बनाने की फ़िक्र करे ।

जब तक हमारा क़ानून और इस पर अमल आवरी करने वाले ओहदेदार दियानत दारी से काम नहीं करेंगे ,ज्रुम‌ का सद्द-ए-बाब मुम्किन नहीं है । लोग सभा और राज्य सभा में अब तक कई क़ानून‌ मंज़ूर होचुके हैं इन में से किसी भी एक क़ानून पर अगर सख़्ती ,दियानतदारी से अमल आवरी की जाये तो इस मुलक को जराइम से पाक बनाने में मदद मिलेगी ।

सियासतदानों के रवय्या के ताल्लुक़ से इस हक़ीक़त से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिल्ली में इस्मत रेज़ि के वाक़िया में अगर बड़ी शख़्सियतों के रईस ज़ादे मुलव्विस होते तो उस सतह का एहतिजाज नहीं करते जैसा के आज होरहा है ।इस में शक नहीं है कि सियासतदानों के सख़्त गैर मौक़िफ़ की वजह से ही क़ानून और समाज में नज़म-ओ-ज़बत को यक़ीनी बनाया जा सकता है।