जर्मनी आना गलती थी, अब वापस कैसे जायें?

बर्लिन: पिछले साल जब अली और इमरान पाकिस्तान से निकले तो उनकी आंखों में यूरोप में एक बेहतर जीवन का सपना था। वह जर्मनी पहुंचे, अस्थायी रिहाइश भी मिली, लेकिन यहाँ की जिंदगी उनकी उम्मीदों के विपरीत निकली। अब वह घर लौटना चाहते हैं।

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जर्मन की राज्य बावेरिया में जोंटहोफन नामक एक छोटे से गांव में आबादी से दूर कंटेनरों की मदद से प्रवासियों के लिए एक शिविर बनाया गया है। इस शिविर में रहने वाले दो पाकिस्तानी प्रवासी ऐसे भी हैं जो वापस पाकिस्तान जाना चाहते हैं लेकिन उन्हें इस बारे में कठिनाइयों का सामना।

डी डब्ल्यू की खबरों के अनुसार पारा चिनार से संबंध रखने वाले पैंतीस वर्षीय अली (फर्जी नाम) से पूछा गया कि वह वापस पाकिस्तान क्यों जाना चाहता है तो उसका कहना था, कि” कारोबार करने वाला आदमी हूँ। मैंने सोचा था कि जर्मनी पहुंचकर कुछ साल काम करूंगा और इतने पैसे कमा सकूंगा कि मैं अपने बच्चों को एक अच्छा भविष्य दे सकूँ लेकिन यहाँ तो काम नहीं मिलता इसलिए वापस जाना चाहता हूँ। ”

आपको बता दूँ कि अली सन 2015 सत्ताईस जून को जर्मनी पहुंचा था। उसका कहना है कि पाकिस्तान से जर्मनी पहुंचने तक उसके तकरीबन बारह लाख पाकिस्तानी रुपये खर्च हुए। राजनीतिक शरण आवेदन जमा करने के तीन महीने बाद उसे जर्मनी में छह महीने तक रहने के लिए परमिट दे दिया गया और काम करने की अनुमति भी।

लेकिन नौकरी पाने में अपने रास्ते में सब से बड़ी बाधा जर्मन भाषा साबित हुई। कई महीनों तक नौकरी पाने की लगातार कोशिश करने के बाद अब वह थक चुके हैं और वापस पाकिस्तान जाना चाहता है। लेकिन उसके पास वापस जाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।

पच्चीस वर्षीय इमरान (फर्जी नाम) का संबंध अटकसे है लेकिन इसकी परवरिश कराची क्षेत्र के लीआरी में हुई। इमरान ने डी डब्ल्यू को बताया कि कुछ साल पहले उसके पिता का निधन हो गया जिसके बाद परिवार के प्रायोजन का बोझ अपने कंधों पर आन पड़ा।

कराची में सुरक्षा की स्थिति से परेशान होकर इमरान अपने परिवार के साथ अटक के इलाके में स्थित अपने गांव ले गया। कराची में वह दर्जी का काम करता था लेकिन गांव वापस आकर उसे अपने घर का खर्च चलाने में कठिनाई पेश आ रही थीं।
इमरान का कहना है कि सन् 2015 में गर्मियों में उसे दोस्तों से पता चला कि जर्मनी की सीमाएं खुली हैं और वहाँ शरण दी जा रही है तो उसने भी अवैध यात्रा पर निकलने का इरादा किया।
दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर वह भी उस भयानक रास्ते पर निकल पड़ा और आखिरकार उसी साल जून के महीने में जर्मनी पहुंचा। अली की तरह उसे भी आउगसबर्ग के इस उपनगरीय में स्थापित आप्रवासियों के शिविर में आवास प्रदान कर दी गई।

इमरान को भी जर्मनी में छह महीने तक रहने और काम करने की अनुमति मिल गई थी लेकिन यह भी काम नहीं मिल सका। तीन महीने पहले अली और इमरान ने जर्मन अधिकारियों को आवेदन किया था कि उन्हें स्वदेश वापस भेज दिया जाए। दोनों ने पाकिस्तानी दूतावास से एक महीने का अस्थायी पासपोर्ट भी हासिल किया था जिनकी अवधि अब समाप्त हो चुकी है।

इन दोनों की स्वदेश वापसी में वास्तविक बाधा यह है कि उनके पास वापस जाने के लिए टिकट खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। उन्होंने जर्मनी से स्वैच्छिक वापसी के लिए आवेदन कर रखा है जिसके बाद जर्मन अधिकारी शरणार्थियों को देश वापस भेजने की व्यवस्था करते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ समय लग रहा है।