जलस-ए-मीलादे मुस्तफा (स०अ०व०)से क़ाइदे मिल्लत की ख़िताबत का आग़ाज़

हैदराबाद 25 जनवरी : शहर के एक मुक़ाम पर महफ़िल मीलाद जारी थी एक ख़ूबरू नौजवान इश्क रसूल (स०अ०व०)में डूबे सीरते मुबारका के मुख़्तलिफ़ पहलूओं पर इस दिल नशीं अंदाज़ में रोशनी डालने की सआदत हासिल करता जा रहा था कि हाज़िरीने महफ़िल की नज़रें उसी पर टिकी हुई थीं वो नहीं चाहते थे कि महफ़िल में एक लम्हा के लिए भी वो नौजवान चुप रहे चुनांचे इस आशिक़ रसूल (स०अ०व०)के मुँह से फूल झड़ रहे थे ।

सारी महफ़िल ज़िक्र रसूल से ऐसे मुअत्तर हो चुकी थी हर किसी की आँख से आँसू रवां थे उधर से बादशाह वक़्त की सवारी नमूदार हुई लेकिन ये महफ़िल तो हुज़ूर (स०अ०व०)के ज़िक्र मुबारक की थी जिन के चाहने वालों के क़दमों में हमेशा तख़्त औरताज पड़े रहते उस नौजवान मुक़र्रिर ने बादशाह वक़्त की मौजूदगी की कोई परवाह नहीं की जब कि हुक्मराँ भी आदाब महफ़िल का लिहाज़ करते हुए महफ़िल में एक आम मुसलमान की तरह बैठ गया नौजवान मुक़र्रिर ने अपना ख़िताब जारी रखा और बादशाह वक़्त से मुख़ातब होते हुए पुर जलाल अंदाज़ में कहा मुहम्मदे अरबी के ए तख़्त नशीन ताज पोश ग़ुलाम आ मैं तुझे बतादूं उस शहनशाह कौनेन की नज़र में अंदाज़ मलूकियत क्या थे ।

एक मुताल्लिकुल अनान हुक्मराँ को जिस के एक इशारे पर गर्दन भी कट सकती थी ऐसे अलफ़ाज़ से एक जुरात एक़बाल (रह) का मर्द मोमिन ही मुख़ातब कर सकता था । क़ारईन आप उस नौजवान की क़ाइदाना सलाहियतों जुरात मंदाना ख़िताबत और सब से बढ़कर इश्क नबी और मुसलमानों के लिए अल्लामा इक़बाल जैसी तड़प से अंदाज़ा लगा चुके होंगे कि हम क़ाइद मिल्लत क़ाइद बे बदल हज़रत नवाब मुहम्मद बहादुर ख़ांन बहादुर यार जंग (रह) का ज़िक्र कर रहे हैं।

क्यों कि ना सिर्फ़ हैदराबाद दक्कन बल्कि सारे हिंदुस्तान और बर्रे सग़ीर में बादशाह वक़्त के साथ इस तरह की जुरात कोई नहीं कर सकता क्यों कि लोग ऐसी सूरतों में मसलेहतों का शिकार हो जाते हैं लेकिन क़ाइद मिल्लत का ये अमान था कि दुनिया के तख़्त और ताज मुहम्मद अरबी के इलाक़ों की ठोकर में रहा करते हैं । आप ये भी समझ गए होंगे कि बादशाह वक़्त आसिफ़ साबह नवाब मीर उसमान अली ख़ांन बहादुर थे ।

बहरहाल इस महफ़िल मीलाद में हज़रत क़ाइद मिल्लत ने सीरते तैबा के मख़सूस पहलूओं को ऐसे दिल नशीं पुर असरअंदाज़ में पेश किया कि आला हज़रत नवाब मीर उसमान अली ख़ांन बहादुर की आँखों से आँसू रवां हो गए । हुज़ूर निज़ाम बार-बार अपने ज़ानों पर हाथ मारते जाते और अपने नबी की शान मुबारक में क़ाइद मिल्लत की ज़बान से अदा होने वाले हर जुमला को बार-बार दुहराने की इल्तिजा करते ।

आप को बतादें कि नसीब यार जंग के घर में पैदा हुए उस लड़के का नाम साअदी ख़ांन उर्फ़ मुहम्मद बहादुर ख़ां रखा गया जो आगे चल कर बहादुर यार जंग और क़ाइद मिल्लत से मशहूर हुआ । दुनिया में मासूम जान की आमद के 8 दिन में ही वो माँ जैसी नेअमत से महरूम हो गए और अल्लाह ताला ने चूँकि आप की तरबियत नानी साहिबा की हिक्मत में रखी थी इस लिए नानी साहिबा ने मासूम साअदी ख़ांन की तालीम और तरबियत पर ख़ुसूसी तवज्जा मज़कूर की ।

दरअसल अल्लामा उन का इम्तेहान ले रहे थे कि आया उस लड़के में तालीम का हक़ीक़ी शौक़ है या नहीं । आप रात के दो बजे ऐसे उस्ताद के पास जाते और फ़ज्र तक दर्स लिया करते थे । इश्के रसूल (स०अ०व०)का ये हाल था कि हुज़ूर का ज़िक्र मुबारक आता तो ऐसा लगता कि बहते दरिया में तूफ़ान आ गया हो ।