जश्न ए यौम सहाफ़त के मौक़ा पर सरकर्दा सहाफ़ीयों का उर्दू की तालीम-ओ-तरक़्क़ी पर इज़हार ख़्याल

उर्दू ज़बान की तालीम और तरक़्क़ी के बगै़र उर्दू सहाफ़त का फ़रोग़ मुम्किन नहीं है। जब तक उत्तर प्रदेश में सरकारी सतह पर उर्दू तालीम का बंद-ओ-बस्त नहीं होगा, उस वक़्त तक ना तो उर्दू अख़बारात के नए क़ारईन पैदा होंगे और ना ही फ़न्नी सतह पर इस फ़न को फ़रोग़ हासिल होगा।

इन ख़्यालात का इज़हार आज यहां मुल्क के सरकर्दा सहाफ़ीयों ने जश्न यौम सहाफ़त की तक़रीब के दौरान टाउन हाल के आडीटोरीयम में किया। रोज़नामा आग लखनऊ के एडीटर और सीनीयर सहाफ़ी अहमद इब्राहीम अलवी ने कहा कि उर्दू अख़बारात को नए क़ारऐन पैदा करने के लिए नई नस्ल की दिलचस्पी का मवाद शाय करना चाहीए और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अख़बारात से जोड़ना चाहीए।

उन्होंने कहा कि उर्दू अख़बारात ने हमेशा अपने क़ारऐन की ज़हनी और शऊरी तर्बीयत का फ़रीज़ा अंजाम दिया है। मेहमान ख़ुसूसी रोज़नामा जदीद ख़बर नई दिल्ली के एडीटर मासूम मुरादाबादी ने इस मौक़ा पर कहा कि मुल़्क की सबसे बड़ी रियासत में सरकारी सतह पर उर्दू मीडियम का स्कूल भी मौजूद नहीं है।

जिसकी वजह से उर्दू के गहवारे में इसकी हालत इंतेहाई ख़राब है। उन्होंने उर्दू सहाफ़त की क़ुर्बानीयों और जज़बा हुर्रियत पर तफ्सीली रोशनी डालते हुए कहा कि मुल़्क की आज़ादी और तामीर-ओ-तशकील में उर्दू अख़बारात ने जो किरदार अदा किया है वो किसी और ज़बान के अख़बारों ने नहीं किया है।

उन्होंने इस बात पर अफ़सोस का इज़हार किया कि शुमाली हिंदुस्तान में उर्दू सहाफ़त की ज़बान ज़वाल आमादा है और इस पर कोई तवज्जा नहीं दी जा रही है।