सुप्रीम कोर्ट के साबिक जज जस्टिस एके गांगुली पर जिंसी हमले का इल्ज़ाम लगाने वाली लॉ इंटर्न ने एक बार फिर गांगुली को कठघरे में खडा किया है। उसने ने अपने ताजा ब्लॉग में इल्ज़ाम लगाया है कि इस मामले में गांगुली की सफाई सफेद झूठ के सिवा कुछ नहीं है। साबिक लॉ इंटर्न ने इल्ज़ामात से इंकार करने पर जस्टिस गांगुली की सख्त मुज़म्मत करते हुए इशारे दिए हैं कि वह उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है।
इससे पहले जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने एक बार फिर अपनी बेगुनाही की सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने कभी किसी खातून इंटर्न का sexual harassment नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पी सतशिवम को लिखे 12 पन्नों के खत में गांगुली ने sexual harassment या Offensive behavior के इल्ज़ामात से इनकार किया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की तीन रुक्नी जांच की कमेटी पर भी सवाल उठाते हुए लिखा कि उन्होंने किसी भी खातून इंटर्न का इस्तेहसाल नहीं किया और न ही कोई Offensive behavior की कोशिश की। वह इस बात से मायूस हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात ठीक से नहीं सुनी।
जस्टिस गांगुली ने इल्ज़ाम लगाया है कि अपनी सर्विस के दौरान लिए गए कुछ फैसलों की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। मुतास्सिरा लॉ इंटर्न ने अपने ताजा ब्लॉग में लिखा है कि चंद लोग झूठ बोलकर उसे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। लडकी ने लिखा है कि वह इस मामले को सामने इसलिए लेकर आईं, क्योंकि वह नहीं चाहती है कि किसी और लडकी को इसका शिकार होना पडे।
लॉ इंटर्न ने लिखा है, वाकिया के बाद जब मैं कॉलेज लौटी तो मैंने अपने टीचरों से वाकिया का जिक्र किया, लेकिन चूंकि वाकिया इंटर्नशिप के दौरान घटी थी और यूनिवर्सिटी में इंटर्नशिप के दौरान किसी तालिबा के Sexual abuse पर कोई पॉलिसी नहीं है, लिहाजा मुझे सलाह दी गई कि शिकायत करने से कुछ नहीं होगा।
मुझे बताया गया कि बस, एक ही रास्ता है और वह है पुलिस में शिकायत दर्ज करना, और वह मैं नहीं चाहती थी। लेकिन फिर मुझे लगा कि मुझे दूसरी तालीबात को आगाह करना चाहिए कि ऐसी ऊंची जगहों पर भी इस तरह की वाकियात होती हैं इसीलिए मैंने ब्लॉग का सहारा लिया। मैंने कभी जजों की मंशा पर सवाल खडे नहीं किए, मुझे इंसाफ मिलने का पूरा भरोसा था।
मैंने कार्यवाही की प्राइवेसी की बात कही थी ताकि सबकी प्राइवेसी बनी रहे। कमेटी ने अपनी जांच में क्या पाया, यह सबको मालूम है।
सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के सामने मैं पेश हुई इस उम्मीद के साथ कि जांच से सच सबके सामने आएगा। 18 नवंबर, 2013 को मैं पेश हुई और अपनी ज़ुबानी और तहरीरी दोनों बयान दिया। 29 नवंबर, 2013 को मैंने सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को दिए अपने बयान का दस्तख्त किया हुआ हलफनामा एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया, इंदिरा जयसिंह को दिया। उसमें मेरे साथ हुए यौन शोषण का ब्यौरा था, मैंने उनसे गुजारिश की थी कि वह सही कार्रवाई करें। जहां तक मेरे बयान के आवामी होने की बात है तो मैंने कमेटी के सामने अपना बयान दर्ज कराया था और सॉलीसीटर जनरल इंदिरा जयसिंह को एक हलफनामा भेजकर मुनासिब कार्रवाई की मांग की थी।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही कई लोग मेरी शबिया ( इमेज) को गंदा करने में जुट गए। उसके बाद ही मैंने अपनी बदनामी और सुप्रीम कोर्ट की कमेटी पर उठते सवालों के मद्देनजर मैंने एडिशनल सॉलिसिटर इंदिरा जयसिंह को मेरा बयान आवामी करने को कहा।
जो लोग भी यह कह रहे हैं कि मेरा बयान झूठा है, वे सिर्फ मेरा ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का भी तौहीन कर रहे हैं। मेरी गुजारिश है कि मुझे क्या करना चाहिए और कब करना चाहिए, यह मेरे ज़मीर पर छोड देना चाहिए। मैं सही वक्त आने पर इस पर फैसला करूंगी। मैं मांग करती हूं कि मेरी आजादी की कद्र होनी चाहिए। मैं फिर बता देना चाहती हूं कि हालात की संजीदगी के मद्देनजर मैंने पूरे वाकिया में जिम्मेदारी भरा रवैया अपनाया लेकिन चंद लोग जिम्मेदारी और जांच से बचने के लिए मामले पर सियासत करके अफवाह फैला रहे हैं।
मुतास्सिरा लडकी का कहना है कि जस्टिस गांगुली झूठ बोल रहे हैं जबकि गांगुली की दलील है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। मुतास्सिरा ने लिखा है कि जो लोग गलत अफवाह उडा रहे हैं, वे मामले को सियासी रंग दे रहे हैं। वे ऐसा तासुब (Bias) और मनमुटाव की वजह से कर रहे हैं ताकि मामले पर पर्दा डाला जा सके और वह जांच और जिम्मेदारी से बच सकें।