जस्टिस मारकंडे काटजू की कोशिशों से मेरी रिहाई की उम्मीद जाग उठी

हैदराबाद 9 अप्रैल- ज़िंदगी के इंतिहाई कीमती 22 साल अपने बीवी , बच्चों , माँ बाप , भाई बहनों , दोस्त अहबाब से दूर रह कर गुज़ार देना कोई मामूली बात नहीं । ऐसा तवील अर्सा उस शख़्स ने किसी दूसरे मुल्क में मुलाज़मत करते हुए नहीं गुज़ारा बल्कि जेल में कैद बामुशक़क़्त बर्दाश्त करते हुए गुज़ार दीए अब वो इंतिहाई बूढ़े हो चुके हैं । शूगर के मर्ज़ ने उन के जिस्म की हड्डियों को बोसीदा कर दिया है।

जिस्म में शूगर बढ़ जाने के बाइस इस मज़लूम का एक पैर भी काट दिया गया है अब तो वो बिना किसी सहारे के एक क़दम भी आगे बढ़ाने से क़ासिर हैं । अपने कमज़ोर वजूद पर इज़हारे तास्सुफ़ करते हुए वो कहते हैं कि ज़िंदगी में यही ख़ाहिश रह गई है कि बचे कुचे दिन अपने घर वालों के साथ गुज़र जाएं ।

क़ारईन ! हम दर्दो अलम में मुबतला जिस कैदी की बात कर रहे हैं वो अब सारे हिंदुस्तान में मज़लूमों की अलामत बन चुका है हमारा मतलब साबिक़ा कांस्टेबल अब्दुल क़दीर हैं । हर इंसाफ़ पसंद शहरी को अब्दुल क़दीर की हालते ज़ार पर तरस आता है।

उन्हों ने जज़बात में आकर जो भी किया इस पर क्या कहा जा सकता है लेकिन इस वाक़िया ने उन से ज़िंदगी की सारी ख़ुशीयां छीन ली हैं गुजिश्ता तीन चार दिन से अब्दुल क़दीर के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है।

एडीटर सियासत जनाब ज़ाहिद अली ख़ान जिन्हों ने हमारे शहर के ज़ईफ़ कैदी को रिहाई दिलाने का बीड़ा उठाया है उर्दू विरासत कारवां से इस्तिफ़ादा करते हुए हिंदुस्तान की इंतिहाई सेक्युलर और हक़पसंद शख्सियत जस्टिस मारकंडे काटजू को अब्दुल क़दीर के साथ रवा रखे जाने वाले सुलूक से वाक़िफ़ करवाया और बताया कि अब्दुल क़दीर 22 सालों से अपने जुर्म की सज़ा भुगत रहे हैं।

इसे में ये इंसाफ़ का तक़ाज़ा है कि इस कैदी की रिहाई के लिए कोशिशें तेज़ की जाएं । जस्टिस काटजू के ज़रीए जो कोशिशें शुरू की गई हैं अल्लाह से दुआ है कि इन कोशिशों में कामयाबी मिले और मुझे बिल आख़िर रिहाई नसीब हो जाए।

जनाब अब्दुल क़दीर ने कहा कि एक कैदी की सब से बड़ी ख़ाहिश और सब से बड़ा ख़ाब रिहाई ही होता है। अपने घरैलू हालात के बारे में उन्हों ने कहा आज मेरी बेटी शादी के काबिल हो गई है जब कि मेरी हालत इस क़दर ख़राब है कि मुझे जेल में डालना भी फ़ुज़ूल है। ज़िंदगी बैसाखियों के सहारे चल रही है।

एक सवाल के जवाब में उन्हों ने बताया कि ज़ाइद अज़ 22 साल कैद में रहने के दौरान तक़रीबन 11 मर्तबा पेरोल पर मेरी रिहाई अमल में आई । वालिद और वालिदा के इंतिक़ाल , बेटी की शादी और ईदैन के मौक़ा पर पेरोल पर रिहाई अमल में आई । इस मर्तबा पेरोल पर रिहाई को एक माह का अर्सा गुज़र चुका है मुझ से मिलने शहर का लीडर तो दूर की बात है , गली का कोई लीडर तक नहीं आया ।

ऐसा लगता है कि ये लोग मुझ बूढ़े माज़ूर शख़्स से मिलने से कतरा रहे हैं । हमारे इस सवाल पर कि आप का वक़्त कैसे गुज़र रहा है ? उन्हों ने अपने पलंग पर रखी किताबों की जानिब इशारा करते हुए बताया कि यही किताबें मेरी दोस्त हैं। हम ने देखा कि इन किताबों में सीरतुन्नबी (सल.) तारीख इस्लाम की किताबें मौजूद थीं।