जहन्नुम बहुत बुरा ठिकाना है

जब वो इसमें झोंके जाएंगे तो उसकी ज़ोरदार गरज सुनेंगे और वो जोश मार रही होगी। (ऐसा मालूम होता है) गोया मारे ग़ज़ब के फटना चाहती है। जब भी इसमें कोई जत्था झोंका जाएगा तो उनसे दोज़ख़ के मुहाफ़िज़ पूछेंगे क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला नहीं आया था?। (सूरतुल मुल्क ७,८)

यहां पर वो मंज़र बयान किया जा रहा है, जब कुफ़्फ़ार को दोज़ख़ में फेंका जाएगा। फ़रमाया उस वक़्त जहन्नुम की आग भड़क रही होगी, इसके शोले और दहकते हुए अंगारे ग़ुस्से से बेक़ाबू हो रहे हैं और शिद्दत ग़ज़ब से अभी फटना चाहते हैं। आग का अज़ाब वैसे ही नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त हद तक अज़ीयत नाक होता है, लेकिन जब इसके भड़कते हुए शोलों और जोश मारते हुए अंगारों का ये हाल हो कि उन से ख़ौफ़नाक शोर बुलंद हो रहा हो तो फिर इसके अज़ाब की अज़ीयत नाकी का कौन अंदाज़ा लगा सकता है और कौन है जो अपने आपको इसके चंगुल में फंसाने का ख़तरा मोल ले।

दोज़ख़ के मुहाफ़िज़ फ़रिश्ते अपनी बेइल्मी दूर करने के लिए ये सवाल उनसे नहीं पूछेंगे, बल्कि इससे मक़सद इन कुफ़्फ़ार की सरज़निश और तोबैख़ होगा। उस वक़्त वो बदनसीब तस्लीम करेंगे कि ये अन्दोहनाक अज़ाब हमारी हमाक़त और ग़लत कारीयों का नतीजा है।

अल्लाह तआला ने तो हमें समझाने के लिए और गुमराही की राह छोड़कर हिदायत की शाहराह पर चलने की लिए पूरा एहतिमाम फ़रमाया था, अंबिया-ए-किराम भेजे, रसूलाने उज़्ज़ाम मबऊस फ़रमाए। इन अंबिया-ए-किराम ने अल्लाह तआला का कलाम पढ़ कर हमें सुनाया, अज़ीम मोजज़ात से अपनी दावत की सच्चाई को साबित किया, लेकिन सद हैफ़! हम उनकी दावत कुबूल करने से महरूम रहे।