जहां हुज़ूर ( स०अ०व०) हों वहां अज़ाब नहीं

मुतालिबा किया है एक साइल ने ऐसे अज़ाब का जो होकर रहे। (वो सुन ले) ये तैयार है कुफ़्फ़ार के लिए उसे कोई टालने वाला नहीं। (सूरतुल मोआरिज १,२)
सअल के दो मानी हैं। पूछना, दरयाफ्त करना और तलब करना, माँगना। अगर पहला मानी लिया जाये तो आयत का मफ़हूम ये होगा कि अहल मक्का पूछते हैं कि जिस अज़ाब का आप हर वक्त ज़िक्र करते रहते हैं, वो किन लोगों पर नाज़िल होगा तो उन के इस सवाल का जवाब दिया गया कि वो कुफ़्फ़ार पर नाज़िल होगा और जब नाज़िल होगा तो कोई उसको टाल ना सकेगा।

अगर सअल का दूसरा मानी लिया जाये तो फिर इस में एक ख़ास वाक़िया की तरफ़ इशारा है, वो ये कि नुज़र बिन हारिस ने एक दफ़ा ख़ाना काअबा के पास खड़े होकर ये दुआ मांगी इलाही! अगर जो कलाम ये हमें सुनाते हैं, हक़ है और तेरी तरफ़ से नाज़िल हुआ है तो हम पर आसमान से पत्थर बरसा या हम पर कोई दूसरा दर्दनाक अज़ाब नाज़िल कर।

इस आयत में इस नाबकार की इस अहमक़ाना दुआ का ज़िक्र है कि वो हम से दुआएं मांगता है कि इस पर अज़ाब नाज़िल किया जाये। वो सुन ले कि जिस अज़ाब के लिए इस ने दुआ मांगी है, वो बिलकुल तैयार है, उसे और इसके हमनवा कुफ़्फ़ार को ज़रूर इसमें झोंका जाएगा और उस वक़्त दुनिया की कोई ताक़त इस अज़ाब को टाल ना सकेगी।

लेकिन अभी नहीं, अभी तो मेरा महबूब तुम्हारे दरमियान तशरीफ़ फ़र्मा है, इसके होते हुए हम अज़ाब नाज़िल नहीं करेंगे। मेरे रसूल ( स०अ०व०) को यहां से जाने दो, फिर देखो तुम्हारी कैसी ख़बर ली जाती है। चुनांचे जब हुज़ूर स०अ०व० मक्का से हिजरत के तशरीफ़ ले गए तो दूसरे साल ही जंग ए बदर हुई और उसे बरी तरह क़त्ल कर दिया गया और पूरा अज़ाब तो क़ियामत के दिन मिलेगा।