समन्दरों में मुआफ़िक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते ख़ुदा चलाता है
ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आए
वो हम नहीं हैं,जिन्हें रास्ता चलाता है
वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाज़ों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है
ये लोग पाँव नहीं ज़हन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
हम अपने बूढे चराग़ों पे ख़ूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
(राहत इन्दोरी)