जहेज़ मांगने वालों की शादियों के बाईकॉट पर ज़ोर

इस्लाह मुआशरा सोसाइटी जद्दा यूनिट की तरफ़ से क़ायम कर्दा इंसिदाद जहेज़ (जहेज़ निवारण) मुहिम के 25 बानी अरकान ने दुल्हन के वालिदैन पर इसराफ़ (खर्च) का बोझ डालने वालों और जहेज़ का मुतालिबा करने वालों की शादियों के बाईकॉट करने का ऐलान किया है और अह्द किया है कि इस मुहिम से वाबस्ता ( सम्बंधित )अरकान और उन के हामी कभी भी इसी शादियों में शिरकत की दावत क़बूल नहीं करेंगे ।

इंसिदाद जहेज़ (जहेज़ निवारण) मुहिम के बानी अरकान में डाक्टर हारून सय्यद , सलीम फ़ारूक़ी , अबदुल क़ादिर वरनगली , मुहम्मद अब्बास ख़ां , सईद उद्दीन सदर, एस आई बी एफ , अबदूर्रज़्ज़ाक़ , सिकन्दर अली , दिलशाद अहमद और दूसरे शामिल हैं। ममलकत सऊदी अरब के शहर जद्दा में मुख़्तलिफ़ समाजी-ओ-तालीमी तनज़ीमों के अरकान ने भी इस मुहिम की भरपूर ताईद की है ।

मुक़र्रिरीन (प्रवक्ताओं) ने कहा कि इस्लाम में जहेज़ दुल्हन का हक़ ( महर ) है जो दूल्हा को चाहीए कि बरवक़्त अदा करे । लेकिन बर्र-ए-सग़ीर में इस अमल के बरअक्स-ओ-बरख़िलाफ़ रस्म चल पड़ी है जहां दुल्हन को महर की रक़म देने के बजाय इस के ख़ानदान पर जहेज़ के अलाओआ चौथी और दीगर (दुसरे) फ़र्सूदा दावतों का भारी बोझ डाला जाता है ।

शादाब रैस्टोरेंट में मुनाक़िदा इजतिमा से अलीम ख़ां फल्की ने भी ख़िताब किया। उन्हों ने मुस्लिम मुआशरा (सोसाइटी) से जहेज़ के मुतालिबा की लानत के मुकम्मल ख़ातमा की सिम्त पहले क़दम के तौर पर ऐसी शादियों का बाईकॉट करने पर ज़ोर दिया । फल्की ने मज़ीद कहा कि बहनों और बेटियों की शादी के मौक़ा पर भाईयों और वालिद को भारी बोझ उठाना पड़ता है

लेकिन वो अपने भाईयों और बेटियों की शादीयों के मौक़ा पर ऐसा ही बोझ दुल्हन वालों पर डालने से पीछे नहीं हटते जिस की तकालीफ़ पहले ही वो ख़ुद बर्दाश्त कर चुके हैं। फल्की ने कहा कि शादी के रोज़ दुल्हन वालों की तरफ़ से डिनर का एहतिमाम आए दिन लाज़िमी हो गया है । इस ग़ैर इस्लामी और ग़ैर अख़लाक़ी अमल से बोझ में मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ है ।