‘ज़ाकिर नायक को रोको, वरना इस्लाम फैल जाएगा’

क्या जाकिर नाईक भगोड़ा हैं?

क्या वह डर गए?

क्या वह भारत पहुंचने पर गिरफ्तार कर लिए जाएंगे?

क्या उनके टीवी चैनल्स और सोशल वेबसाइटों पर प्रतिबंध हो सकता है?

क्या वह आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार हैं?

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ऐसे कई सवाल इन दिनों मीडिया ने उठाए हैं और जवाब भी खुद दे रहे हैं? बल्कि जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने संयुक्त रूप से ” परीक्षण ” शुरू किया है और व्यवस्थित उनके खिलाफ जनमत शिकनी की जा रही है ‘इससे यह लगता है कि बांग्लादेश बम विस्फोट में शामिल रोहन’ भेदभाव का यह बयान वे जाकिर नाइक के भाषणों से प्रभावित थे ‘महज एक बहाना है। जाकिर नाईक को शिकंजे में फंसा कर ‘उनकी जबान बंद करने की योजना बहुत पहले कर दी गई थी’ आखिर क्यों? इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि सारी दुनिया में मीडिया पर नियंत्रण यहूदी शक्तियों का है। जिन देशों में यहूदी लॉबी न भी हो तब भी हम विचार और पदचिह्न शक्तियों को मीडिया नियंत्रण कर रही है जिसकी वजह से सारी दुनिया में मुसलमानों के खिलाफ भ्रामक प्रचार किया जाता है और समय-समय पर उन्हें आतंकवादी के रूप में पेश किया जाता है। भारत कुछ गैर उर्दू अखबारों को छोड़कर सभी मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं। मुसलमानों की आवाज या प्रवक्ता की भूमिका अधिकतर उर्दू अखबार ही करते रहे हैं। और जो बाकी मुस्लिम प्रवक्ता हैं ‘उन्हें हर दौर में विभिन्न सरकारों की ओर से विभिन्न तरीकों से परेशान किया जाता रहा है और वे समाचार पत्रों जो खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करते रहे उन्हें सम्मानित किया जाता रहा।

मुस्लिम मुद्दों को राष्ट्रीय समाचार पत्रों चाहे किसी भी भाषा में क्यों न हो ‘तोड़ मड़ोर कर पेश करते रहे हैं जिसके कारण समस्याओं की यकसूई के बजाय उन्हें बढ़ावा मिलता रहा। इन हालात के मद्देनजर मुसलमानों ने कई बार अपने एक राष्ट्रीय अखबार का प्रकाशन शुरू करने का इरादा करके पर्याप्त राशि भी जमा की गई मगर जो आंदोलन शुरू किया गया था इसमें प्रख्यात हस्तियां शामिल जरूर थीं लेकिन दबदबा मिल्लत के विक्रेता, और स्वार्थी लोगों का था जिसकी वजह से जो राशि जमा की गई थी वह भी गायब हो गई और राष्ट्रीय अंग्रेजी अखबार के प्रकाशन का सपना भी अधूरा रह गया। पिछले 15 वर्षों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और पिछले पांच साल के दौरान सोशल मीडिया के प्रभाव बढ़ गए हैं। चूंकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा अनपढ़ जाहिलों तक भी अपनी बात पहुंचाई जा सकती है जिसके कारण इसकी लोकप्रियता में जबरदस्त वृद्धि हुई जिसे देखते हुए भारत के अरबपति औद्योगिक संस्थानों ने इस पर कब्जा किया और यह कहना या लिखना कतई गलत नहीं होगा कि इन संस्थाओं की मानसिकता भी यहूदी ही है जिसका सबूत विभिन्न टेलीविजन चैनल्स वे शोज़  हैं जो मुसलमानों के सुलगते समस्याओं को इस तरीके से पेश किया जाता है कि मुसलमान अन्य स्टेट व वतन की नज़रों से गिर जाते हैं। इस पृष्ठभूमि में 2000 में डॉ। जाकिर नाइक ने हैदराबाद में आयोजित विश्व चिकित्सा नबवी पैगंबर सम्मेलन के मौके पर मीडिया से बात करते हुए मुसलमानों के एक सेटेलाइट टीवी चैनल की जरूरत पर जोर दिया था। यह वास्तव में पीस टीवी की शुरुआत का संकेत था और कुछ समय बाद पीस टीवी प्रसारण का औपचारिक शुभारंभ हुआ।

सारी दुनिया पहले से ही यह बात जानती है कि डॉ जाकिर नाइक धर्मों के तुलनात्मक समीक्षा के लिए प्रतिष्ठा रखते हैं। पीस टीवी की शुरुआत से पहले दुनिया भर में अपने प्रोग्राम द्वारा प्रश्न और उत्तर सत्र द्वारा उन्होंने इस्लाम की सत्यता साबित करने की कोशिश की। चूंकि उनके लक्ष्य दर्शकों और दर्शकों में मुसलमानों से ज्यादा शिक्षित गैर मुस्लिम हैं। इसीलिए उन्होंने अंग्रेजी ज़बान इख़्तियार किया। और यह कहना गलत न होगा कि अहमद दीदात की जीवन ही में जाकिर नाइक ने एक तरह से उनकी विरासत संभाली और उनसे कहीं अधिक लोकप्रियता और प्रतिष्ठा प्राप्त की और हजारों उनके शिष्य पैदा हुए जो देश-विदेश में उन्हीं के अंदाज में धर्मों का तुलनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हैं और यह कोई मामूली क्षमता वाली बात नहीं है। जाकिर नाइक सभी धर्मों के विद्वानों के साथ बहस में भाग लेते हैं और उन्हें धार्मिक पुस्तकों के हवाले से इस्लाम की सत्यता को सिद्ध करते हैं।

हर अवसर पर दूसरे धर्मों के विद्वान जाकिर नाईक की क्षमताओं को स्वीकार करते हैं और कुछ मौकों पर वह भयानक हो जाते हैं। अल्लाह तआला ने उन्हें असाधारण याददाश्त से सम्मानित किया है। विभिन्न धर्मों के पवित्र पुस्तकों के हवाले वह पृष्ठ संख्या के साथ देते हैं। और यही क्षमता विरोधी को मुग्ध कर दिया है। अपनी क्षमताओं की बदौलत जाकिर नाइक सारी दुनिया में मशहूर भी हुए और लोकप्रिय भी। वे विश्व स्तर पर कुछ गिने चुने मुसलमानों में से हैं जिन्हें दुनिया उनके नाम से जानती है। और यही बात मुस्लिम दुश्मन ताकतों को बुरी लगी। जाकिर नाईक ने क़ादियानियत के बारे में भी बहुत प्रभावी ढंग से तथ्यों का वर्णन किया। उन्हें बहाना चाहिए था जाकिर नाइक की ज़बान बंद करने का। अगर जाकिर नाइक के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होती भी है तो उनके खिलाफ कोई सबूत पेश करना मुश्किल होगा। क्योंकि जाकिर नाइक जहां धर्मों का तुलनात्मक समीक्षा में विशेषज्ञता रखते हैं वहीं संवैधानिक और कानूनी मामलों में भी उनकी जानकारी कुछ कम नहीं है। निष्पक्षता के साथ अगर जांच होती है तो जाकिर नाइक का दामन बेदाग रहेगा और अब जो उनके खिलाफ भ्रामक अभियान जारी है वह भविष्य में उनके लिए बोनस साबित होगी। गुमराह प्रचार के परिणाम में वे लोग भी जाकिर नाइक के यूट्यूब लेक्चर्स देखने लगे हैं जिन्होंने केवल उनका नाम सुना होगा या वह उनसे परिचित नहीं थे और यह संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि जाकिर नाइक के चाहने वालों और क्षेत्र बगोश इस्लाम वालों की संख्या में अधिक वृद्धि होगी।

बहरहाल इस समय सभी शक्तियां जिनमें कुछ नाम के मुसलमान भी शामिल हैं ‘और कुछ वे भी जिन्हें जाकिर नाईक जैसे लोगों से अपनी धार्मिक दुकानें बंद होने का खतरा दिखाई देता है’ एक दूसरे को यही संदेश दे रहे हैं. रोको, रोको इस जाकिर नाइक को, बंद करो पीस टीवी, बंद करो, वरना इस्लाम फैल जाएगा। (यूएनएन)