ज़िक्र ख़ुदा से ज़िक्र मुस्तफ़ा (स०अ०व०) को अलग नहीं किया जा सकता ,यही असल ईमान

(सियासत न्यूज़) अल्लाह तबारक-ओ-ताला ने अपनी इताअत के साथ रसूल अकरम (स०अ०व०) की इताअत को अपनी इताअत की तरह मुतल्लिक़न वाजिब कर दिया है।

ज़िक्र ख़ुदा से ज़िक्र मुस्तफ़ा जुदा नहीं किया जा सकता और यही असल ईमान भी है। शेख़ उल-इस्लाम अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने आज रात क़ुली क़ुतुब शाह स्टेडीयम मैं दरस हदीस के दौरान इन ख़्यालात का इज़हार किया। तंज़ीम मिनहाज उल-क़ुरआन इंडिया की जानिब से दो रोज़ा दरस हदीस का एहतिमाम किया गया है।

प्रोफेसर ताहिर उल-क़ादरी ने सहाह सत्ता की मुंतख़ब अहादीस की शरह के ज़रीया हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) के वसीला को साबित किया। अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी के दौरा हैदराबाद के मौक़ा पर इस पहले दरस हदीस में हज़ारों की तादाद में आशीक़ान मुस्तफ़ा ने शिरकत की। स्टेडीयम में वक़्फ़ा वक़्फ़ा से नारा तकबीर और नारा रिसालत के फ़लक शि्गाफ़ नारे गूंज रहे थे।

स्टेडीयम अपनी तंग दामिनी का शिकवा कर रहा था और इसके बाहर भी उतनी ही तादाद में सामईन दरस हदीस की समाअत कररहे थे। प्रोफेसर ताहिर उल-क़ादरी ने क़ुरआन-ए-करीम की आयात और बुख़ारी शरीफ़ की अहादीस के हवाला से मुस्लमानों को तलक़ीन की कि वो अल्लाह तबारक-ओ-ताला के अहकामात के साथ आक़ाए नामदार हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) की संतों पर अमल आवरी को अपना शआर बना लें।

उन्होंने कहा कि अल्लाह ताला ने क़ुरआन हकीम में फ़रमाया है कि अल्लाह और इसके रसूल की इताअत करो और उनकी जो तुम में साहिब अमर हो । जब तुम में कोई तनाज़ा पैदा हो तो उसे अल्लाह और इसके रसूल से रुजू कर दो। एक और मुक़ाम पर इरशाद बारी ताला है कि रसूल अल्लाह (स०अ०व०) जो तुम्हें दीं उसे ले लो और जिससे मना करें इस से रुक जाओ।

अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने बताया कि क़ुरआन मजीद में 150 आयात में हदीस मुबारका और संत मुबारका के हुज्जत होने को साबित किया गया है और अल्लाह ताला ने अपनी इताअत के साथ रसूल अकरम (स०अ०व०) की इताअत को भी वाजिब कर दिया।

क़ुरआन मजीद में आया है कि मुनाफ़िक़ों की पहचान ये है कि वो अल्लाह के अहकाम को तो क़बूल करते हैं लेकिन उन्हें रसूल अकरम (स०अ०व०) की बात मानने से इनकार होता है। यही वजह है कि अल्लाह ताला ने फ़रमाया कि रसूल जो कुछ तुम्हें अता करें तुम पर वाजिब है कि उसे क़बूल कर लो और जिस चीज़ से मना करें तुम पर वाजिब है कि इस से रुक जाओ।

प्रोफेसर ताहिर उल-क़ादरी ने सही बुख़ारी की हदीस नंबर 1010 की तफ्सीली तशरीह ब्यान की। उन्होंने इस हदीस के हवाला से जय्यद मुहद्दिसीन की तशरीहात का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) से उम्मत मुहम्मदी का जो ताल्लुक़ है वो कसीरा लज़्हात है। इसकी लातादाद जिहतें हैं।

हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) से उम्मत के ताल्लुक़ की पहली जिहत आक़ाए मदीना पर ईमान है। आप (स०अ०व०) पर ईमान लाना मुस्लमान होने की बुनियाद है। हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) से ईमान लाने से ही इस्लाम के तमाम बुनियादी अक़ाइद नसीब होंगे। उन्होंने कहा कि उम्मत मुहम्मदी का हुज़ूर-ए-अकरम से दूसरा ताल्लुक़ मुहब्बत है। ना सिर्फ आप (स०अ०व०) से बल्कि आप (स०अ०व०) की ज़ात से निसबत रखने वाली हर शए से मुहब्बत लाज़िमी है।

तीसरा ताल्लुक़ इताअत का है। हर मुस्लमान पर आप (स०अ०व०) के जमी अहकाम की इताअत वाजिब है। चौथा ताल्लुक़ इत्तिबा और पैरवी है, जिसके तहत हर मुस्लमान को उस्वा हसना की कामिल पैरवी करनी होगी। पांचवां ताल्लुक़ हुज़ूर-ए-अकरम(स०अ०व०) की ज़ात मुबारका के साथ अदब, ताज़ीम और तौक़ीर है। इस ताल्लुक़ के तहत आप (स०अ०व०) के अस्हाब, आल-ओ-औलाद-ओ-इतरत, आप की सुन्नत और हर वो शए और ज़ात जिससे आप ( स०अ०व०) की निसबत हो उसकी ताज़ीम और तौक़ीर ज़रूरी है।

प्रोफेसर ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि उम्मत मुहम्मदी ( स०अ०व०) का हुज़ूर-ए-अकरम (( स०अ०व०) ऐसे ताल्लुक़ का तक़ाज़ा ये भी है कि हम हर वक़्त आक़ा पर सलात-ओ-सलाम पढ़ते रहें और अल्लाह का ज़िक्र भी हो साथ में आप ( स०अ०व०) का ज़िक्र शामिल किया जाए। इसी लिए अल्लाह ताला ने नमाज़ में भी सलात-ओ-सलाम को शामिल किया है।

हुज़ूर-ए-अकरम ( स०अ०व०) ऐसे ताल्लुक़ की सातवीं जिहत नुसरत-ओ-जाँनिसारी है कि आप के लाये हुए दीन की सरबुलन्दी के लिए मुस्लमान हर किस्म की क़ुर्बानी के लिए तैयार रहे।

अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि आठवीं जिहत तोसल है कि बंदा अल्लाह के हुज़ूर आक़ा ए नामदार का वसीला पेश करते हुए फ़ैज़ और इनामात तलब करे। नवां ताल्लुक़ तबर्रुक है, जिसका मतलब ये है कि आप ( स०अ०व०) की और आप की निसबत से ताल्लुक़ रखने वाली हर शए से बरकत हासिल की जाए। इसका सिलसिला रोज़ क़ियामत तक जारी रहेगा।

दसवीं जिहत अल्लामा ने कहा कि तशफ़ा है जिससे आप ( स०अ०व०)की शफ़ाअत से फ़ैज़याब हो सकते हैं। हुज़ूर-ए-अकरम ( स०अ०व०) से ताल्लुक़ की ग्यारहवीं जिहत के तहत अल्लाह ताला को हक़ीक़ी मुस्तआन-ओ-मददगार मानते हुए हुज़ूर-ए-अकरम ( स०अ०व०) से भी मदद तलब करना है।

ताल्लुक़ की बारहवीं जिहत ये है कि कायनात की हर शए पर अल्लाह ताला के बाद हुज़ूर-ए-अकरम ( स०अ०व०) को मुक़द्दम रखा जाय। अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने तोसल की जिहत पर अहदीस के हवाला से दरस दिया और कहा कि हुज़ूर-ए-अकरम ( स०अ०व०) को वसीला जानना इमाम बुख़ारी का अक़ीदा था और उन्होंने बाब इस्तिस्क़ा-ए-में इस सिलसिला में दो अहदीस ब्यान की हैं।

पहली हदीस में कहा गया कि हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाह ताला अन्हा के ज़माने में जब क़हत पड़ा तो आप ने दुआ की ऐ अल्लाह जब भी क़हत पड़ता तो हम तेरे प्यारे हबीब ( स०अ०व०)के वसीला से बारिश तलब करते और आज हम तेरे तरफ़ नबी अकरम ( स०अ०व०) के चचा को तेरे हुज़ूर वसीला बना रहे हैं।

अल्लामा ने कहा कि हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व्०) के चचा अब्बास बिन अबदुल मुतालिब रज़ी० बक़ैदा हयात थे और हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी० ने बारिश की दुआ के लिए आप का वसीला इस्तेमाल किया और इससे बारिश हुई। इस हदीस मुबारका में इमाम बुख़ारी ने दो बार लफ़्ज़ तोसल का इस्तेमाल किया है।

उन्होंने कहा कि तोसल का अक़ीदा नया नहीं है बल्कि जमी सहाबा ए कराम, ख़ुलफ़ाए राशिदीन रजि० का इस पर अक़ीदा था। इस हदीस मुबारक से बाअज़ मुस्लमान ग़लतफ़हमी का शिकार होचुके हैं और वो समझने लगे कि हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) की हयात में तो आप (स०अ०व०) का वसीला लिया जा सकता है लेकिन आप (स०अ०व०) के विसाल के बाद ये मुम्किन नहीं।

इसीलिए हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी० ने हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) के चचा का वसीला लिया। अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि हदीस शरीफ़ में एक लफ़्ज़ भी ऐसा नहीं है कि जिससे ये नतीजा अख़ज़ किया जाए कि विसाल के बाद हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) को वसीला नहीं बनाया जा सकता।

उन्होंने कहा कि बुख़ारी शरीफ़ की दुनिया में जितनी शरह मौजूद हैं दुनियाए इल्म में जितनी किताबें दस्तयाब हैं इनमें से किसी एक शरह में भी हुज़ूर-ए-अकरम (स०अ०व०) के वसीला की मुख़ालिफ़त नहीं की गई। किसी शारह इमाम ने भी इस तरह का मानी ब्यान नहीं किया कि विसाल के बाद तोसल नहीं लिया जा सकता।

सिर्फ अल्लामा इब्न तीमीह ने इस तरह की तशरीह की है और उनके मानने वालों ने इस तरह का अक़ीदा इख्तेयार कर लिया। अल्लामा ताहिर उल-क़ादरी ने कहा कि आमाल सालहा का वसीला हक़ है इस किसी को इनकार नहीं क्योंकि जो आमाल अल्लाह को महबूब हैं इनका वसीला देते हुए दुआ की जा सकती है, लेकिन जो हस्तीयां अल्लाह को महबूब हैं उनके वसीला से इनकार क्यों।

उन्होंने कहा कि क़ुरआन मजीद और सही अहदीस से इस अक़ीदा की नफ़ी नहीं की जा सकती। मौलाना ख़्वाजा शरीफ़ शेख़ अलहदीस जामिआ निज़ामीया ने भी मुख़्तसिर ख़िताब किया। इबतदा-ए-में हाफ़िज़-ओ-क़ारी ज़बीह-उल्लाह ने क़रा॔त कलाम पाक पेश की जबकि एहसान अली एहतेशाम ने नाअत शरीफ़ का नज़राना पेश किया।