नई दिल्ली 29 मार्च : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक जाईदाद की वसीत की दस्तावेज़ इसके रजिस्ट्रेशन यह वसीत के तौर पर दो गवाहों के बगैर सिर्फ़ एक काग़ज़ का टुकड़ा ही होगा।
पंजाब – व-हरयाणा हाईकोर्ट के फैसले करते हुए अदालत-ए-उज़्मा ने कहा कि राउ गजराज सिंह की दस्तावेज़ ना ही जाईदाद की मुंतक़ली है चूँकि इंडियन रेजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 की दफ़आत के तहत दरकार रजिस्टर करवाई गई और ना ही ये एक वसीत है चूँकि इस पर दो गवाहों की सबूत नहीं है जैसा कि एक वसीयत के लिए किया जाता है।
जस्टिस आर एम लवधा और जस्टिस अनील आर दावे ने हालिया एक फैसले में हाईकोर्ट के फैसले को बरक़रार रखते हुए कहा कि इस तरह राउ गजराज सिंह की जानिब से लिखी गई तहरीर क़ानून की नज़र में सिर्फ़ एक काग़ज़ का टुकड़ा है जिसकी कोई क़ानूनी वक़ात नहीं है।
अदालत में कहा कि हक़ीक़त में मज़कूरा तहरीर एक वसीत भी नहीं है चूँकि इस पर दो गवाहों की ब्यान नहीं है जैसा कि एक जाइज़ वसीत के लिए गवाहों की दस्तख़त किया जाना ज़रूरी है। ये भी एक हक़ीक़त है कि इस तहरीर को रेजिस्टर भी नहीं करवाया गया।
गजराज सिंह जिन का 29 मार्च 1981 -ए-को देहांत होगया था एक दस्तावेज़ तय्यार की थी जो ये कहती है कि उनकी यह उनकी अहलिया की मौत के बाद उनकी जाईदाद उनके विरसा-ए-की विरासत होगी। उनकी अहलिया सुमित्रा देवी जिनका 6 जून 1989 -ए-को देहांत होगया था। एक जून 1989-ए-को एक वसीत तय्यार करते हुए जाईदाद को अपने आठ बेटों में से एक बेटे नरेंद्र सिंह राउ के नाम हिबा करदी थी।