ढाका में हुई आतंकवादी वारदात के बाद जांच के घेरे में आये धर्म प्रचारक जाकिर नाइक को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रबन्धन इकाई ने ‘एएमयू कोर्ट’ के लिये चुना था।
एएमयू के प्रवक्ता राहत अबरार ने ‘भाषा’ को बताया कि 180 सदस्यीय एएमयू कोर्ट में प्रमुख पेशेवरों, शिक्षाविदों, धार्मिक विद्वानांे तथा विभिन्न रचनात्मक क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाली जानी मानी मुस्लिम हस्तियों को मनोनीत किया जाता है। वर्ष 2013 में नाइक को भी एएमयू कोर्ट में मनोनीत किया गया था। उस वक्त उनके साथ कोई विवाद नहीं जुड़ा था। जब उनका नाम धार्मिक विद्वान की श्रेणी में आया तो उसे मनोनयन के लिये मंजूरी दे दी गयी थी।
उन्होंने कहा कि यह बात दीगर है कि नाइक ने एएमयू कोर्ट की किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया और यहां तक कि वह एएमयू आये भी नहीं।
अबरार ने कहा कि नाइक जिस सलाफी विचारधारा की पैरवी करते हैं, उसका एएमयू से कभी रत्ती भर भी लेना-देना नहीं रहा। इसके अलावा ऐसे कट्टरपंथी विचारों का एएमयू में स्वागत होने की दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है। नाइक का चयन सिर्फ एक धार्मिक विद्वान के तौर पर किया गया था।
इस बीच, एएमयू टीचर्स एसोसिएशन :अमूटा: के सचिव मुस्तफा जैदी ने कहा, ‘‘नाइक को जब एएमयू कोर्ट में चुना गया था, तब उनकी छवि एक चकित कर देने वाले ऐसे मुस्लिम प्रचारक की थी, जो अन्तरधार्मिक समझ के मामले में माहिर थे। वह गीता, बाइबल और अन्य तमाम धर्म शास्त्रों का उद्धरण देकर जिस तरह से लोगों की जिज्ञासाएं शान्त करते थे, उसने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था।’’ जैदी ने कहा कि जब नाइक को एएमयू कोर्ट में जगह दी गयी थी, उस वक्त भी विश्वविद्यालय के कुछ कर्मचारियों ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि नाइक ने इस्लामी विचारधारा की कुछ परम्परागत शाखाओं के खिलाफ विवादास्पद बातें की थीं। हालांकि नाइक के आभामण्डल के आगे उनके विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया था।
इनपुट – भाषा