जाति हिंसा के खिलाफ दलित प्रतिरोध में भाजपा नए उत्साह की उपेक्षा नहीं कर सकती

वर्तमान समय में भारत उस दौर से गुज़र रहा है जहाँ जातिवाद ने हमें चारों तरफ से घेर रखा है| ऊंची जाति वाले नीची जाति के लोगों को दबाने में लगे हैं| ज़्यादातर दलित और मुसलमानों को शोषित किया जाता है| जिनके ख़िलाफ़ कहीं कहीं क्रूरता की सारी हदें पार होती नज़र आ रही हैं| जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते| भारत विश्व में अनेकता में एकता के लिए प्रसिद्ध है| जहाँ पर कई जाति सम्प्रदाय के लोग अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं| लेकिन पिछले कुछ दिनों से कुछ जाति वर्ग के लोग अपने से छोटी जाति वाले को नीच दबे कुचले समझकर उनके साथ शोषण करते नज़र आये| ऊंची जाति धीरे धीरे नीची जाति पर ग़ालिब होती नज़र आ रही है| भारत में पिछले कुछ दिनों से अलग अलग क्षेत्रों से ऐसी घटनाएँ सुनने को मिली हैं जिनसे इंसानियत को शर्मसार कर दिया है| ख़ासकर ऐसे हादसे 3,4 सालों से ज़्यादा बढ़े हैं जब से भाजपा की सरकार आयी|

हालाँकि इससे पहले भी होता था लेकिन इतना नहीं था जितना अब हो रहा है| अपने वोट बैंक के चक्कर में पड़ी जातिवाद की लड़ाई धीरे धीरे दलितों में क्रोध गुस्सा दिखता नज़र आ रहा है| इसलिए हम कह सकते हैं कि भाजपा जीतने के लिए मुसलमानों को नज़रंदाज़ कर सकती है और उसके बाद भी जीत जीत सकती है लेकिन दलितों को नज़रंदाज़ करना भारी पड़ सकता है| दलितों के साथ बढ़ रही घटनाएँ रुकने का नाम नहीं ले रही| अभी पिछले दिनों ने एक दलित को कुछ राजपूतों ने मिलकर मारा कसूर ये था की उसने मूंछे रखी थी| क्या हो गया है मेरे देश को कि अब किसी को मूंछ के चक्कर में पीटा जायेगा,उसको धमकाया जायेगा| क्या अब मूंछे सिर्फ राजपूतों की जागीर हैं|

मीडिया के एक पत्रकार की मुलाकात 24 वर्षीय परमार से हुई जो गुजरत के गांधीनगर का रहने वाला है वो भी एक राजपूत के द्वारा शिकार हो चुका है| पत्रकार के सवाल पर उस पीड़ित व्यक्ति ने कहा कि उनका यह मानना ​​था कि नीच जाति साफ सफाई वाली जातियों के पुरुषों को मूंछें रखने का कोई अधिकार नहीं है| हालाँकि उसने कहा की मैं अपनी मूंछे रखूँगा काटूँगा नहीं| उसके एक 17 वर्षीय चचेरे भाई पर भी हमला हुआ है जिसके 15 टाँके लगे हैं| कारवान ए मोहब्बत के अनुसार उसने लगभग 8 राज्यों का दौरा किया इस दौरान पाया कि हर जगह जन हिंसा में फसे लोग न्याय की आस में बैठे हैं और इस घृणात्मक हिंसा से मुसलमान सबसे बड़ा समुदाय लक्षित हैं। नफरत के हमलों के हर रोज डर के साथ रह रहे हैं| उन्हें  राज्य द्वारा न्याय या सुरक्षा की बहुत कम उम्मीद थी। दलितों पर भी हमला किया गया, लेकिन एक अंतर था। हर जगह वे वापस लड़ रहे थे| उनके अन्दर न्याय न मिलने से रोज़ रोज़ शोषण से गुस्सा, निर्बाध था।

अप्रैल में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शब्बीरपुर में दलितों ने अपने रवीदास मंदिर के परिसर के भीतर, समुदाय के स्वामित्व वाली जमीन पर बाबासाहेब अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय लिया। उन्होनें अपने मानक मुद्रा में अम्बेडकर की एक प्रतिमा की स्थापना की| लेकिन गांव में राजपूत गुस्से में थे। हिंसा का माहौल बन गया उनका कहना है कि “यह हमारी सरकार है”, उन्होंने कहा है कि योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने सत्ता हासिल करने के बाद कहा था। “हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि अम्बेडकर को जिस सार्वजनिक सड़क पर गांव के ऊपरी जाति भी चलते हैं, उसे इंगित कर देना चाहिए?”

देखते देखते  5 मई को आस-पास के गांवों से राजपूत ट्रैक्टर, जीप और मोटरसाइकिलों में दलित एन्क्लेव पर चढ़ गए, तलवारें और चाकू लेकर उन्होंने दलित बस्ती में आये लोगों को फटकारा,  पुरुषों को पीटा और कई महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की। हालाँकि इसके बाद पुलिस ने कुछ राजपूत पुरुषों को गिरफ्तार किया गया, लेकिन पुलिस ने दलित नेताओं के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए, जिनमें से कई को जेल भेजा गया। जब हम उनसे मिले, तो हमने पाया कि दलितों ने एकजुट होकर उनके खिलाफ क्रोध और लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया।

हम नागौर, राजस्थान में दांगवास गांव भी गए। यहां मई 2015 में दलितों पर हमले ने अपनी जमीन को पुनः प्राप्त करने के लिए अपनी लड़ाई से प्रज्वलित किया, और छह लोगों के नुकसान के लिए नेतृत्व किया। करीब 40 साल पहले, दलितों ने अपनी जमीन जाट मकान मालिक को गिरवी रखी थी। कई बार ऋण और ब्याज चुकाने के बावजूद  और एक लंबी लड़ाई लड़ी और कई अदालतों में जीत गई, जाट ने जमीन वापस करने से इनकार कर दिया। आखिरकार वे इसे बलपूर्वक कब्जा कर लिया, लेकिन केवल एक महीने के लिए। जाट ने उन्हें ट्रैक्टरों के नीचे कुचल दिया, अपने शरीर को विकृत कर दिया, और महिलाओं पर हमला किया। पुलिस ने अपना फोन बंद कर दिया, और बाद में दलितों के खिलाफ पंजीकृत आपराधिक आरोप लगाए। उसको काफी दिनों तक डराया धमकाया गया|

गुजरात में दलितों के साथ बहुत अन्याय हुआ| एक मामले में एक दलित युवक को कुछ लोगों ने मार मार के अधमरा कर दिया| उसका कसूर था की वह एक मरी गाय की खाल निकाल रहा था जो की उसका पेशा है| लेकिन कुछ लोगों ने उसको बुरी तरह पीटा उसने शिकायत दर्ज़ की और कहा कि अब वह आज से ये काम छोड़ रहा है| अब वही लोग ये काम खुद कर लेंगे| दलितों के साथ अकथनीय हिंसा क्रूरता लगातार बरक़रार हैं| हर जगह सताया जाता है| लेकिन भाजपा भारत के मुसलमानों को नज़रअंदाज़ कर सकती है और सत्ता पर बैठ सकती है लेकिन वे ऊपरी जाति के खिलाफ बढ़ते हुए दलित प्रतिरोध क्रोध को अनदेखा नहीं कर सकते हैं|

शरीफ़ उल्लाह